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एक घर ऐसा जहां जंजीरों में बंधे रहते हैं चार बेटे, बिलखते रहते मां-बाप, जानिए मामला

रोहतास जिले में एक परिवार ऐसा है जहां चार बेटों को जंजीरों से जकड़कर रखा जाता है। ऐसा करना माता-पिता की मजबूरी है। बेटों को जंजीरों से जकड़ने के बाद माता-पिता बिलखते रहते हैं।

By Kajal KumariEdited By: Published: Mon, 19 Aug 2019 02:38 PM (IST)Updated: Tue, 20 Aug 2019 10:23 AM (IST)
एक घर ऐसा जहां जंजीरों में बंधे रहते हैं चार बेटे, बिलखते रहते मां-बाप, जानिए मामला
एक घर ऐसा जहां जंजीरों में बंधे रहते हैं चार बेटे, बिलखते रहते मां-बाप, जानिए मामला

रोहतास [उपेंद्र मिश्र]।  रोहतास जिले के डेहरी शहर का एक मोहल्ला बारह पत्थर है। यहां एक घर के अहाते में चार युवक-किशोर जंजीरों से बंधे हुए हैं। सरफुद्दीन अंसारी और परवीन बीबी के ये बेटे मानसिक दिव्यांग हैं। इस दंपती के आठ औलाद हैं, जिनमें चार बच्चे चार साल की उम्र के बाद ही मानसिक बीमारी के शिकार होते गए।

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पांचवें के लक्षण भी अब उन्हीं जैसे होते जा रहे हैं। सरफुद्दीन की मजदूरी से परिजनों का भरण-पोषण होता है और कमाई इतनी नहीं कि इलाज करा पाएं। इसलिए मानसिक और शारीरिक रूप से दिव्यांग अपने बेटों का बचपन जंजीरों में जकड़ दिया गया है। इन्हें रात-दिन जंजीरों में बांधकर ही रखा जाता है।

मौका मिलते ही भागने लगते हैं, इसलिए बांधकर रखा 

सरफुद्दीन अपना दुख सुनाते हैं। थोड़ा-सा मौका मिलते ही ये घर से भाग जाते और उपद्रव करने लगते थे। एक साथ चार-चार मानसिक दिव्यांगों को नियंत्रण में रखना इस मजदूर परिवार के वश की बात नहीं रह गई। थक-हार कर इन लोगों ने चारों भाइयों के पैरों में लोहे की बेड़ियां पहना दीं। 

जन्म के समय रहते हैं स्वस्थ, फिर घेर लेती है बीमारी 

पिता सरफुद्दीन कहते हैं कि जन्म के समय उनके बच्चे स्वस्थ थे, लेकिन जब चार साल की उम्र हुई तो धीरे-धीरे मानसिक स्थिति बिगड़ गई। कहते हैं कि एक बच्चे को बीमारी हो तो किसी तरह इलाज भी करवा देते। एक साथ चार-चार बच्चे मानसिक रोग से ग्रसित हो गए, तो मुझ जैसे मेहनत-मजदूरी कर घर चलाने वाले के पास इनका इलाज कराना अब संभव नहीं है। 

अभी तक नहीं मिली है सरकारी सहायता 

इन लोगों को किसी प्रकार की कोई सरकारी सुविधा अबतक नहीं मिल सकी। यहां तक कि दिव्यांगों को दिए जाने वाले पेंशन तक भी मयस्सर नहीं हो सका। अब आयुष्मान भारत का कार्ड आधार कार्ड से लिंक होने की प्रक्रिया में है। पहले मनोचिकित्सकों से इलाज भी कराया, लेकिन गरीबी में महंगे इलाज के चलते बेहतर उपचार नहीं करा सके।

मनोचिकित्सक डॉ उदय कुमार सिन्हा ने कहा कि पहले उन चारों को जंजीरों से मुक्त किया जाए। वे नि:शुल्क सलाह देने को तैयार हैं। उन्हें इलाज की जरूरत है।  बिहार मेंटल हेल्थ एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के अनुसार, राज्य में केवल कोइलवर मेंटल हॉस्पिटल और पीएमसीएच निबंधित हैं।

एक्ट के अनुसार, पुलिस को उन्हें अस्पताल में पहुंचाने का प्रबंध करने का प्रावधान किया गया है। वहीं, एसडीएम लाल ज्योतिनाथ शाहदेव का कहना है कि प्रशासनिक स्तर से जल्द ही चारों के इलाज की व्यवस्था कराने का प्रयास किया जाएगा। फिलहाल दिव्यांगों को दी जाने वाली पेंशन की शुरुआत करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी जाएगी।


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