शहरवासियों को मिली है 'काले' पानी की सजा
पूर्णिया। कभी आयरनयुक्त पानी की वजह से कालापानी के नाम से जाना जाने वाले पूर्णिया के लोगों
पूर्णिया। कभी आयरनयुक्त पानी की वजह से कालापानी के नाम से जाना जाने वाले पूर्णिया के लोगों इन दिनों व्यवस्था ने 'काले' पानी की सजा दी है। यह बारिश का पानी है जो कई दिनों से जमा होकर काले रंग में परिवर्तित हो चुका है।
वर्तमान 'काले' पानी की सजा से पूरा शहर कराह रहा है। पूरे शहर मे 72 घंटे से अधिक समय से बारिश के पानी से भरा हुआ है। इसमें नाली का गंदा पानी मिलकर इसके रंग को और गहरा काला कर रहा है। शहर के अधिकतर लोगों अभी इसी गंदे पानी होकर कहीं भी आना-जाना पड़ रहा है। भुक्तभोगियों में आम-खास सभी हैं। नगर निगम की ओर से जलनिकासी की व्यवस्था एक तरह से फेल हो चुकी है।
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10 वर्ष में भी नहीं बदल पाया स्थिति
पूर्णिया शहर को नगर परिषद से नगर निगम में प्रोन्नति मिलने को 10 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन जलजमाव इसके कामकाज के तरीके अवनति का प्रमाण माना जा रहा है। दस वर्षों में नगर निगम प्रशासन ने अनियोजित तरीके से करोड़ों रुपये के नाले बनवाए हैं जो जलनिकासी नहीं कर पा रहे हैं। करोड़ों रुपये वापस भी लौटे। ऐसे में सवाल लाजिमी है कि जिन नालों पर करोड़ों रुपये क्यों बर्बाद क्यों किए गए, करोड़ों वापस क्यों हुए, जबकि मूलभूत समस्या में सुधार नहीं होने के कारण आज शहरवासी त्राहि-त्राहि हैं। काला गंदा पानी शहर के बाहर निकासी के बजाय हर ओर फैला हुआ है।
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जिम्मेदार हैं जनप्रतिनिधि और अधिकारी
समुचित जलनिकासी की व्यवस्था नहीं होने की समस्या ऐसा नहीं है कि कुछ दिनों में उत्पन्न हुई है। समय के साथ धीरे-धीरे नाला अतिक्रमण होता रहा और जिम्मेदार प्रशासनिक पदाधिकारी और जनप्रतिनिधि नजारा देखते रहे। नाला को विकसित करने के बजाय नाला को अतिक्रमण होने दिया गया। नतीजा है कि शहरवासी गंदे काला पानी का सजा भुगत रहे हैं। नाला से जलनिकासी की समुचित व्यवस्था नहीं होने से शहर में जलजमाव से उत्पन्न बाढ़ जैसी भयावह स्थिति शायद ही पहले लोगों ने देखा होगा। ऊंचा-नीचा हर इलाका गंदे पानी से भरा है और अब पानी दुर्गंध देने लगा है। लोगों को बीमारी की आशंका सताने लगी है।
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नाला निर्माण के वापस हुए 11 करोड़
शहर में 2008 में मास्टर प्लान के तहत नाला निर्माण के लिए कई चरण में नगर निगम को 11 करोड़ राशि आवंटित हुई थी। इस राशि को पीएचईडी के माध्यम से नाला निर्माण में खर्च किए जाने की योजना तैयार की गई। तत्कालीन डीएम एन सरवन कुमार के समय में फैसला लिया गया था। राशि आवंटित हुई लाखों की लागत से डीपीआर तैयार हुआ इसके बाद निर्माण कार्य में कुछ न कुछ अड़चन फंसते रहा और सालों से जमा वह राशि कुछ माह पूर्व विभाग को वापस हो गया।
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तीन साल से फाइलों में घूम रहा ड्रैनेज सिस्टम
शहर से जलनिकासी के लिए ड्रैनेज सिस्टम तैयार करने योजना पिछले तीन वर्ष से फाइलों में घूम रहा है। बुडको द्वारा पूरा किए जाने वाले प्रोजेक्ट का एक डीपीआर तैयार होकर विभाग में पहुंचकर रद हो गया। दो चरण में पूरा होने वाले प्रोजेक्ट का डीपीआर 667.83 करोड़ की बनाई गई थी। इसके पहले चरण में 49120.72 नीटर नाला 273.49 करोड़ और दूसरे चरण में 36285.68 मीटर नाला 394 करोड़ से किया जाना था। डीपीआर के लेआउट में उलटफेर के कारण विभाग में मामला फंस गया और इसके बाद फिर से नया डीपीआर बनाने की कवायद शुरू हुई और आज फिर फाइल नगर विकास एवं आवास विभाग में पहुंचकर रुका हुआ है।
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शहर से जलनिकासी के लिए सभी उपाय किए जा रहे हैं। जलजमाव की भीषण समस्या क्यों उत्पन्न हुई इस पर विचार-विमर्श कर स्थाई समाधान निकालने का काम शुरू कर दिया गया है।
विजय कुमार सिंह, नगर आयुक्त