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टमाटर पहले से लाल, आलू भी दिखाने लगा आंख

पूर्णिया। टमाटर तो पहले से लाल है। इसके भाव आसमान छू रहे हैं। अब तो आलू भी आंख ि

By JagranEdited By: Published: Mon, 21 Sep 2020 06:13 PM (IST)Updated: Mon, 21 Sep 2020 07:06 PM (IST)
टमाटर पहले से लाल, आलू भी दिखाने लगा आंख
टमाटर पहले से लाल, आलू भी दिखाने लगा आंख

पूर्णिया। टमाटर तो पहले से 'लाल' है। इसके भाव आसमान छू रहे हैं। अब तो आलू भी 'आंख' दिखाने लगा है। इसकी कीमत भी 40 रुपये किलो तक पहुंच गई है। सौ रुपये जोड़ी में बिकती फूलगोभी का साइज इतना छोटा कि खरीदने वाले भी सौ बार सोचते हैं। बाकी हरी सब्जियां भी लोगों के हरे-हरे नोट हजम करने में लगी है।

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मध्यम आय वर्ग के लोगों के घरों में जहां पहले दो-तीन तरह की सब्जियां पकती थी वहां अब एक ही सब्जी से काम चलाया जा रहा है। गरीबों की थाली से तो सब्जियां ही गायब हो गई है। इससे लोगों का पोषण भी प्रभावित होने की आशंका है। दाल पहले से ही महंगा है। ऐसे में हरी सब्जियां ही गरीबों को पौष्टिकता प्रदान करती रही हैं। अभी उनके पास इसका कोई अन्य विकल्प भी नहीं है।

हरी सब्जियों की कीमत बढ़ने का मुख्य कारण बाढ़ है। इलाके में आई बाढ़ ने सब्जियों के अधिकतर खेत को अपनी चपेट में ले लिया है। कुछ दिन पहले तक लहलहा रही सब्जियां पानी में डूबकर सूख गई हैं। इस कारण सब्जी किसानों को भारी नुकसान पहुंचा है। इसका सीधा असर बाजार पर दिख रहा है। सब्जियों के भाव में लगभग दोगुनी वृद्धि हुई है। इधर, आलू और टमाटर के आवक में कमी के कारण इसके भाव चढ़ गए हैं। एक माह से अधिक समय से टमाटर 70 से 80 रुपये किलो बिक रहा है। आलू की कीमतों पांच से दस रुपये प्रतिकिलो उछाल आया है। नया आलू तो 50 रुपये किलो में बिक रहा है।

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बाहर से आने के कारण बढ़े भाव

सब्जी विक्रेता सुरेश कुमार, लक्ष्मण आदि का कहना है कि आलू, टमाटर, मूली आदि बाहर से आते हैं। उन्हें यह होलसेल में ही अधिक रेट पर खरीदना पड़ रहा है। बैगन, भिडी, करैला, घेरा, नींबू भी बाजार में कम आ रहे हैं। कोई भी सब्जी 30-40 रुपये से कम है ही नहीं। स्वभाविक है कि वस्तु की आमद कम है तो कीमत अधिक हो ही जाएगी।

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रसोई का बिगड़ा बजट

बाजार में सब्जी खरीदने आई आरती देवी, गृहणी शंकुतला देवी कहती हैं कि पहले सप्ताह भर की सब्जी खरीदती थीं। अब रोज के हिसाब से सब्जी लेना होता है। मीना देवी ने बताया कि उसके पति मजदूरी करते हैं। सब्जी के दाम की कीमत में आई उछाल ने रसोई का बजट बिगाड़ दिया है। अभी तो सप्ताह में दो-तीन दिन माड़-भात खाना पड़ जाता है।


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