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नीतीश के बाद कौन का आ गया आंशिक जवाब, 62 के आरसीपी सिंह ने 23 साल बिताए सीएम के साथ

रामचंद्र प्रसाद सिंह को जदयू में नीतीश का उत्तराधिकारी बना दिया है। बिहार की राजनीति में अक्सर पूछे जाने वाले इस सवाल का जवाब भी मिल गया कि नीतीश के बाद कौन? हालांकि अबतक यह आंशिक जवाब ही है।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Mon, 28 Dec 2020 07:22 AM (IST)Updated: Mon, 28 Dec 2020 07:22 AM (IST)
नीतीश के बाद कौन का आ गया आंशिक जवाब, 62 के आरसीपी सिंह ने 23 साल बिताए सीएम के साथ
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जदयू अध्यक्ष आरसीपी सिंह। जागरण आर्काइव।

अरुण अशेष, पटना: वफादारी और नेतृत्व के निर्देश को बिना सवाल किए लागू करने की खासियत ने रामचंद्र प्रसाद सिंह, जो आरसीपी के नाम से अधिक मशहूर हैं, को जदयू में नीतीश का उत्तराधिकारी बना दिया है। लगे हाथ बिहार की राजनीति में अक्सर पूछे जाने वाले इस सवाल का जवाब भी मिल गया कि नीतीश के बाद कौन? हालांकि अबतक यह आंशिक जवाब ही है। यह सवाल विधानसभा चुनाव के प्रचार के आखिरी दिन तेजी से उभरा था, जब नीतीश ने कहा कि यह उनका आखिरी चुनाव प्रचार है। बाद में इसके आशय को समझाया गया कि यह कथन सिर्फ इस विधानसभा चुनाव के लिए था।

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आरसीपी का राजनीतिक सफर बहुत लंबा नहीं है। राज्यसभा सदस्यता के लिहाज से देखें तो महज 10 साल। लेकिन, उससे पहले भी, प्रधान सचिव की हैसियत से वे नीतीश कुमार के हरेक बड़े राजनीतिक फैसले के सहभागी रहते थे। नीतीश कुमार के बारे में मान्यता है कि वे वन टू वन की गोपनीय वार्ता से परहेज करते हैं। हरेक राजनीतिक या आधिकारिक मुलाकात में उनके बीच तीसरे की मौजूदगी भी रहती है। मौजूद रहने वालों में आरसीपी का नंबर पहला है।

62 की उम्र है, इसमें 23 साल नीतीश के साथ

अधिकारी या राजनीतिक सहयोगी के तौर आरसीपी नीतीश कुमार के साथ लगातार जुड़े रहने वाले शायद पहले शख्स हैं। वे 1998 में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के तौर पर नीतीश से जुड़े। फिर कभी अलग नहीं हुए। आरसीपी की उम्र 62 साल है। इसमें से 23 साल से वे नीतीश से लगातार जुड़े रहे हैं। हां, कोरोना के चरम काल में वे करीब महीने भर अपने गांव में रहे। उस दौरान नीतीश के साथ उनकी रोज मुलाकात नहीं हो सकी। उनकी उस गैर-हाजिरी पर सवाल भी उठे। कहा गया कि दोनों के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। नीतीश और आरसीपी-दोनों इस तरह के सवालों का जवाब नहीं देते हैं। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का जब जदयू में रूतबा बढ़ा, उस समय भी आरसीपी के कद को कम करने की चर्चा होने लगी। मझोले कद के आरसीपी से जब यह सवाल पूछा गया, उन्होंने अपनी ओर इशारा करते हुए सवाल कर दिया-इससे छोटा कौन मेरा कद कर सकता है? इसके कुछ महीने बाद ही प्रशांत किशोर जदयू से विदा हो गए।

सामान्य परिवार के हैं

आरसीपी सामान्य परिवार के हैं। उनका गांव मुस्तुफापुर नालंदा जिला में है। पिता सुखदेव नारायण सिंह मध्य वर्गीय किसान थे। पत्नी गिरिजा देवी विशुद्ध गृहिणी हैैं। स्कूली शिक्षा हुसैनपुर हाई स्कूल और उच्च शिक्षा पटना एवं जवाहरलाल नेहरू विवि में हुई। भारतीय प्रशासनिक सेवा में उन्हेंं यूपी कैडर मिला। 1996 में वे तत्कालीन केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा से जुड़कर दिल्ली आए तो फिर कभी सामान्य प्रशासन में नहीं लौटे। केंद्रीय मंत्री रहने के दौरान नीतीश कुमार के विशेष सचिव बने। नीतीश कुमार जब बिहार के मुख्यमंत्री बने तो वह मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव बने। फिर 2010 में वीआरएस ले लिया। जदयू ने उन्हें राज्यसभा भेजा। राजनीति में आने के बाद भी उनकी अधिकारियों वाली दिनचर्या नहीं बदली। पार्टी कार्यालय या आवासीय कार्यालय में वे दिन के 10 बजे बैठ जाते हैं।

साहब के रामचंद्र बाबू

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उन्हेंं रामचंद्र बाबू कहते हैं। आरसीपी आज भी निजी बातचीत में नीतीश कुमार को साहब ही कहते हैं। पहले मंच से बोलने में उन्हेंं हिचकिचाहट होती थी। अब धड़ल्ले से बोलते हैं। भाजपा और आरएसएस के नेताओं के साथ उनके अच्छे संबंध हैं। बोलचाल में विनम्रता उनकी पूंजी है। मातहतों से बातचीत के दौरान उनके स्वर में आगाह के बदले आदेश का भाव होता है। पार्टी के सांगठनिक महासचिव के तौर पर उन्होंने जदयू के कोर वोटर का हमेशा ख्याल रखा। यही वजह है कि नीतीश उनमें अपने उत्तराधिकारी की छवि देख रहे हैं।


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