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कभी रोज नहीं नहाते थे लालू, लड़कियां कहतीं थीं महात्‍मा; डॉक्‍टर बनते-बनते बन गए नेता

आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव भले ही जेल में हों लेकिन उनका क्रेज बरकरार है। मंगलवार को वे 72वां जन्‍मदिन मना रहे हैं। इस अवसर पर नजर डालते हैं उनके जीवन के कुछ खास प्रसंगों पर।

By Amit AlokEdited By: Published: Tue, 11 Jun 2019 11:45 AM (IST)Updated: Tue, 11 Jun 2019 10:55 PM (IST)
कभी रोज नहीं नहाते थे लालू, लड़कियां कहतीं थीं महात्‍मा; डॉक्‍टर बनते-बनते बन गए नेता
कभी रोज नहीं नहाते थे लालू, लड़कियां कहतीं थीं महात्‍मा; डॉक्‍टर बनते-बनते बन गए नेता

पटना [अमित आलोक]। राष्‍ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) मंगलवार को अपना 72वां जन्‍मदिन मना रहे हैं। भले ही वे जेल में हों, उनके साथ कई विवाद जुड़े हों, लेकिन देश की सियासत में उनके खास स्‍थान से इनकार नहीं किया जा सकता। कम लोग ही जानते हैं कि लालू डॉक्‍टर बनाना चाहते थे, लेकिन नेता बन गए। गरीबी भरे दौर में उनके पास स्‍कूल की फीस देने के लिए भी पैसे नहीं थे। रोटी के जुगाड़ में उन्‍हाेंने रिक्‍शा भी चलाया। कॉलेज के दौर में वे लड़कियों के बीच काफी मशहूर थे। वे उन्हें 'लालू महात्मा' कहतीं थीं।
रोज नहा नहीं पाते थे, फीस देने के नहीं थे पैसे
लालू का जन्‍म गोपालगंज जिले के फुलवरिया गांव में हुआ था। गरीबी के दौर में लालू के पास इतने कपड़े नहीं थे कि रोज नहा सकें। ठंड के मौसम में गर्मी लिए वे पुआल के बिस्तर पर सोते थे। उन्‍होंने माड़ीपुर गांव के स्कूल से पढ़ाई शुरू की। तब लालू के पास फीस देने के लिए पैसे नहीं थे। इस कारण वे हर शनिवार को रस्सी-पगहा और गुड़-चावल फीस के रूप में शिक्षक को देते थे।

शरारतों के कारण गांव से भेजे गए पटना
लालू बताते हैं कि बचपन में वे शरारती थे। एक बार गांव में आए एक हींग बेचने वाले के झोले को उन्‍होंने कुएं में फेंक दिया। हींग बेचने वाले ने काफी शोर मचाया। तब मां ने उनकी शरारतों से तंग आकर उन्हें बड़े भाई मुकुंद के साथ पटना भेज दिया।
पटना आए तो पहली बार पहने जूते
लालू के भाई मुकुंद चौधरी पटना में मजदूरी करने आए। वे लालू को भी साथ लेते आए। पटना के शेखपुरा मोड़ के मध्‍य विद्यालय में लालू का नामांकन कराया गया। स्कूल में जब उन्होंने एनसीसी की सदस्‍यता ली, उन्हें पहली बार जूता पहनने को मिला। एनसीसी में गए भी इसीलिए कि शर्ट-पैंट व जूते मिल सकें। उन दिनों एनसीसी कैडेट्स को ड्रेस व जूते मिलते थे।
लालटेन के तेल के लिए नहीं थे पैसे
पूरा परिवार पटना वेटरनरी कॉलेज के एक कमरे के शौचालयविहीन क्वार्टर में रहने लगा। परिवार के पास लालटेन के लिए केरोसिन तेल खरीदने का पैसा नहीं था, इसलिए रूम में अंधेरा पसरा रहता था। ऐसे में लालू वेटरनरी कॉलेज के बरामदे में पढ़ते थे।
रिक्‍शा चलाया, चाय की दुकान पर मजदूरी भी की
स्कूल के पुअर ब्वायज फंड से पैसे मिले तो पढ़ाई में सुविधा हुई। पढ़ाई जारी रहे, इसलिए लालू कभी रिक्शा चलाते थे। वे चाय की दुकान पर मजदूरी भी करते थे।
डॉक्‍टर बनने का था सपना, बन गए नेता
लालू प्रसाद ने पटना विवि से बीए-एलएलबी किया। हालांकि, वे बचपन में डॉक्टर बनने का सपना देखते थे। यह सपना टूट गया तो दोस्‍तों की सलाह से एलएलबी में एडमिशन ले लिया और वकील बन गए।
अपनी आत्मकथा ‘गोपालगंज से रायसीना’ में लालू लिखते हैं, 'स्कूल में दाखिले के बाद मैं डॉक्टर बनना चाहता था, लेकिन मेरे दोस्त बसंत ने बताया कि डॉक्टर बनने के लिए बायोलॉजी से पढ़ाई करनी  होगी।  इसके बाद पता चला कि प्रैक्टिकल के लिए मेंढकों की चीरफाड़ करनी पड़ेगी, जिससे मुझे नफरत थी। इसके बाद मैंने डॉक्टर बनने का इरादा छोड़ दिया।'

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जेपी आंदोलन में हुए शामिल
लालू छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे। 1971 में लालू प्रसाद पटना विवि छात्र संघ के चुनाव में शामिल होकर संघ के महासचिव बने। फिर, जयप्रकाश नारायण (Jai Prakash Narayan) की संपूर्ण क्रांति से जुड़े। आपातकाल (Emergency) के दौरान गिरफ्तार होकर जेल भी गए। संपूर्ण क्रांति के दौरान एक बार उनके मरने की अफवाह फैल गई थी।
18 मार्च 1974 को आंदोलन हिंसक हो गया था। छात्र सड़कों पर उतर आए थे। उनमें लालू भी शामिल थे। आंदोलन रोकने के लिए सेना के जवान सड़क पर उतर आए और लालू की पिटाई की। इसी दौरान अफवाह फैल गई कि सेना की गई पिटाई में लालू की मौत हो गई है।

कॉलेज में लड़़कियों के लिए 'महात्‍मा' थे लालू
लालू भाषण देने और दूसरों की नकल उतारने में बचपन से माहिर हैं। इस कला से वो स्कूल और फिर कॉलेज में प्रसिद्ध हुए। कॉलेज में वे लड़कियों के बीच काफी मशहूर रहे। वे उन्हें 'लालू महात्मा' कहतीं थीं। कॉलेज के छात्र जीवन में वे खास तौर पर लड़कियों की खूब मदद करते थे। कॉलेज के दिनों में उनकी छवि कुछ ऐसी ही थी।
धीरे-धीरे बनाते गए राजनीति में मुकाम
जेपी आंदोलन (JP Movement) के दौरान लालू ने अपनी छवि एक जुझारू नेता के रूप में बना ली। आगे 1977 में आम चुनाव हुआ तो लालू सांसद चुने गए। फिर,1980-1985 में विधायक रहे। 1990 में लालू बिहार के मुख्‍यमंत्री बन गए।

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