Move to Jagran APP

लालू को एक मामले में जमानत क्या मिली, बेजान राजद उम्मीदों से भर गया

महज एक मामले में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद को जमानत क्या मिली लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद बेजान नजर आ रहा राजद उम्मीदों से भर गया। एक आस जगी है- लालू जेल से निकलेंगे...

By Rajesh ThakurEdited By: Published: Sat, 13 Jul 2019 08:19 PM (IST)Updated: Sun, 14 Jul 2019 04:32 PM (IST)
लालू को एक मामले में जमानत क्या मिली, बेजान राजद उम्मीदों से भर गया
लालू को एक मामले में जमानत क्या मिली, बेजान राजद उम्मीदों से भर गया

पटना [अरुण अशेष]। महज एक मामले में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद को जमानत क्या मिली, लोकसभा चुनाव के नतीजे के बाद बेजान नजर आ रहा राजद उम्मीदों से भर गया। एक आस जगी है- लालू जेल से निकलेंगे और पार्टी के ढीले पड़े पूर्जे को कसकर सब ठीक कर लेंगे। बेशक अभी राजद सुप्रीमो को निकलने में देरी है। फिर भी राजद की कतारों का मनोबल अचानक बढ़ गया है। परिवार के झगड़े से आजिज हो चुके नेताओं-कार्यकर्ताओं को भरोसा हो रहा है कि भाई-भाई और भाई-बहन के बीच बिगड़ चुके रिश्ते सुधर जाएंगे, क्योंकि उनके बीच वह शख्स जल्द आ रहा है, जिसके आदेश की अनदेखी करने की हैसियत राजद में किसी की नहीं है।

loksabha election banner

चुनावी हार ने कार्यकर्ताओं को हताश कर दिया था

लोकसभा चुनाव में राजद की बुरी पराजय और उसके बाद के पारिवारिक विवाद ने पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं को हताशा में डाल दिया था। तेजस्वी यादव महीने से अधिक दिनों तक राजनीतिक परिदृश्य से गायब थे। इधर तेज प्रताप को उटपटांग हरकत करने का पूरा मौका मिल गया था। तेज प्रताप और ऐश्वर्या की लड़ाई से भी पार्टी को नुकसान पहुंचा। रही-सही कसर तेज प्रताप ने अपने ही उम्मीदवारों का विरोध करके पूरी कर दी। इस अवधि में राजद ऐसा राजनीतिक संगठन बना हुआ है, जिसकी दिशा के बारे में दावे के साथ कोई कुछ नहीं कह सकता है। कभी जदयू से तो कभी भाजपा से उसके हाथ मिलाने की चर्चा होती है। चर्चा इतनी तेज कि तेजस्वी का सफाई देनी पड़ी-हमें कहीं से दोस्ती का प्रस्ताव नहीं मिला है। राजनीतिक हलके में उनकी सफाई को गोल मटोल मान लिया गया। हां, अब जबकि लालू प्रसाद को एक मामले में जमानत मिली है, इसे तेजस्वी की गैर-हाजिरी की उपलब्धि के तौर पर देखने वाले भी कम नहीं हैं। इस उम्मीद के साथ कि आने वाले दिनों में कुछ और बेहतर होगा। 

सांगठनिक चुनाव से पहले आने की उम्मीद

राजद का सांगठनिक चुनाव 11 अगस्त से शुरू हो रहा है। यह अगले साल 20 फरवरी तक चलेगा। इसी में प्रखंड, जिला, प्रदेश और राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होगा। उम्मीद की जा रही है कि चुनाव की प्रक्रिया के अंतिम दौर तक लालू प्रसाद बाहर आ जाएंगे। अगर यह संभव हुआ तो प्रखंड से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक की चुनावी प्रक्रिया बगैर विवाद के संपन्न हो जाएगी।  लालू की गैर-हाजिरी में इस प्रक्रिया को शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न करा लेने की क्षमता किसी और में नहीं है। जहां तक तेजस्वी का सवाल है, व्यवहार में वे अपने भाई तक को नियंत्रित नहीं कर पाते हैं। 

बहुत कुछ बदल जाएगा

यह ठीक है कि मुलाकातियों के जरिए और उनके मोबाइल फोन से लालू प्रसाद अपनी राय पार्टी नेताओं के साथ साझा करते रहते हैं। लेकिन, वह आमने-सामने की बातचीत की तरह असरदार नहीं हो पाता है। इस संवाद में कहीं न कहीं ट्रांसमिशन लॉस जैसी स्थिति पैदा हो जाती है। यानी लालू का संदेश गंतव्य तक हू ब हू नहीं पहुंच पाता है। नतीजा यह निकलता है कि महागठबंधन के घटक दल अपने हिसाब से तेजस्वी यादव को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं और कामयाब भी हो जाते हैं। लालू प्रसाद के सामने यह सब संभव नहीं है। 

विरोधियों के लिए भी फायदेमंद हैं

लालू प्रसाद का बाहर रहना महागठबंधन के लिए ही नहीं, विरोधियों के लिए भी फायदेमंद है। एनडीए के घटक दल जदयू और भाजपा भले ही विकास के नाम पर वोट लेने का दावा करें, लेकिन सच यह है कि लालू प्रसाद का विरोध भी इन दलों के लिए एक सुरक्षित वोट बैंक की गारंटी भी करता है। यह ऐसा वोट बैंक है, जिसके पास लालू प्रसाद को सत्ता से अलग रखने के सिवा कोई और एजेंडा नहीं है। बिहार में एनडीए की कामयाबी की बुनियाद इसी मनोदशा वाले वोटरों पर पड़ी है। जाहिर है, मैदान का लालू सिर्फ अपने समर्थकों को ही गोलबंद नहीं करता है, विरोधियों को भी किसी एक खेमे में डटे रहने के लिए मजबूर करता है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.