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धूमधाम से हुई भगवान विश्‍वकर्मा की पूजा, जानिए पूजा मुहूर्त व और भी बहुत कुछ

भगवान विश्वकर्मा की पूजा सोमवार को धूमधाम से की गई। विश्‍वकर्मा पूजा के अवसर पर आइए जानते हैं पूजा को लेकर कुछ खास बातें और इसके श्‍ुाभ मुहूर्त।

By Amit AlokEdited By: Published: Sun, 16 Sep 2018 10:40 PM (IST)Updated: Mon, 17 Sep 2018 08:23 PM (IST)
धूमधाम से हुई भगवान विश्‍वकर्मा की पूजा, जानिए पूजा मुहूर्त व और भी बहुत कुछ
धूमधाम से हुई भगवान विश्‍वकर्मा की पूजा, जानिए पूजा मुहूर्त व और भी बहुत कुछ
पटना [जेएनएन]। संपूर्ण सृष्टि में जो भी कर्म सृजनात्मक हैं, जिन कर्मो से जीवन संचालित होता है, उन सभी के मूल में भगवान विश्वकर्मा को माना जाता है। शिल्प के भगवान विश्वकर्मा की पूजा सोमवार को पूरे भारत में धूम-धाम से की गई। इस अवसर पर मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार ने भी भगवान विश्‍वकर्मा की पूजा की।
सोमवार को जयेष्ठा नक्षत्र और आयुष्मान योग में भगवान विश्वकर्मा की पूजा की गई। कर्मकांड विशेषज्ञ पंडित राकेश झा शास्त्री ने पंचांगों के हवाले से कहा कि भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष में ज्येष्ठा नक्षत्र में पूजा संपन्‍न हुई। भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
निर्माण के देवता हैं भगवान विश्वकर्मा
ज्योतिषी पंडित राकेश झा ने बताया कि भगवान विश्वकर्मा ने सतयुग के स्वर्ग लोक, त्रेता युग में लंका, द्वापर युग में द्वारिका और कलयुग में हस्तिनापुर की रचना की थी। वहीं भगवान कृष्ण के आग्रह पर कृष्ण के परम मित्र सुदामा के लिए भवन का निर्माण किया था। भगवान विश्वकर्मा की पूजा वैसे तो सभी लोग करते हैं, लेकिन कलाकारों, बुनकरों व शिल्पकारों के लिए इसका खास महत्व हैं।
पंडित झा ने कहा कि सृष्टि के रचियता ब्रह्मा के सातवें धर्मपुत्र के रूप में अवतार लेकर भगवान विश्वकर्मा ने दुनिया को वास्तु शिल्प की महत्ता से परिचित कराया। भगवान विश्वकर्मा देवताओं के शिल्पकार, वास्तुशास्त्र के देवता और देवताओं के इंजीनियर कहे गए हैं। मान्‍यता है कि उनकी पूजा करने से व्यापार में वृद्धि होने के साथ कला में निखार आता है।
पूजन के ये रहे शुभ मुहूर्त
संक्रांति काल मुहूर्त - सुबह 7:00 बजे
अभिजीत मुहूर्त - दोपहर 11:19 बजे से 12:08 बजे तक
गुली काल मुहूर्त - दोपहर 1:36 बजे से 2:47 बजे तक
सृष्टि के निर्माता हैं विश्‍वकर्मा
मान्‍यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने सृष्टि का निर्माण किया, इसलिए उन्‍हें सृष्टि का निर्माणकर्ता कहते हैं। देवताओं के लिए अस्त्र-शस्त्र, आभूषण और महलों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया। इंद्र का सबसे शक्तिशाली अस्त्र वज्र भी उन्होंने ही बनाया था।
हस्तिनापुर से ले स्वर्ग लोक तक का निर्माण
प्राचीन काल में जितनी राजधानियां थीं, प्राय: सभी विश्वकर्मा की ही बनाई मानी जाती हैं। यहां तक कि सतयुग का ‘स्वर्ग लोक’, त्रेता युग की ‘लंका’, द्वापर की ‘द्वारिका’ और ‘हस्तिनापुर’ आदि जैसे प्रधान स्थान विश्वकर्मा के ही बनाए माने जाते हैं। ‘सुदामापुरी’ भी विश्वकर्मा ने ही तैयार किया था।
बनाए सुदर्शन चक्र व पुष्पक विमान
मान्यता है कि सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोग की वस्तुएं विश्वकर्मा ने ही बनाई थीं। कर्ण का कुंडल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, महादेव का त्रिशूल और यमराज का कालदंड भी उन्हीं की देन हैं। कहते हैं कि पुष्पक विमान का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था।
भगवान के हैं ये पांच रूप
धर्मशास्त्रों में भगवान विश्वकर्मा के पांच स्वरूपों और अवतारों का वर्णन है। विराट विश्वकर्मा, धर्मवंशी विश्वकर्मा, अंगिरावंशी विश्वकर्मा, सुधन्वा विश्वकर्मा और भृगुवंशी विश्वकर्मा।
ऋग्वेद में विश्वकर्मा सूक्त के नाम से 11 ऋचाएं
ऋग्वेद में विश्वकर्मा सूक्त के नाम से 11 ऋचाएं लिखी गई हैं, जिनके प्रत्येक मंत्र पर लिखा है ऋषि विश्वकर्मा भौवन देवता आदि। ऋग्वेद में ही विश्वकर्मा शब्द एक बार इंद्र व सूर्य का विशेषण बनकर भी प्रयुक्त हुआ है।

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