Bihar Politics: मुकेश सहनी के तेवर तल्ख; लहजा और उन्हें मिले सियासी ऑफर के क्या हैं मायने, आप भी जानिए
Bihar Politics वीआइपी के नेता मुकेश सहनी के तेवर आजकल तल्ख हैं। उनका लहजा बता रहा है कि वे संतुष्ट नहीं हैं। दरभंगा में उनके बयान ने बिहार की सियासत को एक बार फिर गर्म कर दिया है। ऐसे में उन्हें मिले सियासी ऑफर का क्या मतलब है जानिए...
पटना, राज्य ब्यूरो। Bihar Politics विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार सरकार के पशुपालन मंत्री मुकेश सहनी (Mukesh Sahani) आजकल अपने बयानों की वजह से लगातार चर्चा में हैं। सहनी के बयान सहज नहीं हैं और न हीं उनकी हरकतें। वे साफ तौर पर ऐसा कोई बयान तो नहीं देते, लेकिन यह हमेशा जताते रहते हैं कि सब कुछ ठीक नहीं है। ऐसा तब से है, जब भाजपा ने उन्हें विधान परिषद में उप चुनाव वाली सीट से सदन में जाने का ऑफर दिया था। तब सहनी मान भले गए, लेकिन ऐतराज उन्होंने खुलेआम जताया था और कम कार्यकाल वाली सीट पर चुने जाने का मलाल उन्हें अभी तक है। सोमवार को उन्होंने कहा कि वे किसी के रहमोकरम पर नहीं हैं तो लगे हाथ कांग्रेस ने उन्हें फटाफट ऑफर दे दिया।
मुकेश सहनी के इन बयानों पर गौर करें
मुकेश सहनी ने अपनी पार्टी के प्रवक्ता के जरिये बयान दिलवाया था कि वे उप चुनाव में दो साल से भी कम कार्यकाल वाली सीट से विधान परिषद में नहीं जाएंगे। हालांकि बाद में डायरेक्ट अमित शाह के दखल के बाद सहनी मान गए। हालांकि, भाजपा के इस फैसले को लेकर वे अब भी सहज नहीं हैं, इसका संकेत वे कई बार देते रहे हैं। अपने भाई से कई सरकारी योजनाओं का उद्घाटन कराने को लेकर जब विपक्ष ने सरकार को घेरा, तब भी उनके तेवर सहज नहीं थे। बिहार विधान परिषद में राज्यपाल कोटे की 12 सीटों पर शपथ ग्रहण के दिन मुकेश सहनी अचानक अपनी पार्टी के सभी विधायकों के साथ राज्यपाल से मिलने चले गए और हल्ला मच गया कि वे सरकार से समर्थन वापस ले सकते हैं। उस दिन मुकेश सहनी ने कहा था कि ऐसी कोई बात नहीं है, लेकिन अगर जरूरत हुई तो वे फैसला लेने में देरी भी नहीं करेंगे।
जीतन राम मांझी के दावे और दरभंगा वाले बयान पर गौर करें
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के संयोजक औरि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने पिछले दिनों दावा किया था कि राज्यपाल कोटे की सीटों पर केवल भाजपा और जदयू के नेताओं को भेजे जाने के मसले पर उनकी सहनी से मुलाकात हुई थी। सहनी इस प्रकरण से खुश नहीं हैं। सोमवार को दरभंगा में सहनी ने एक बार फिर कहा कि वे किसी के रहमोकरम पर नहीं हैं। उन्होंने खुले तौर पर अपने सहयोगी दलों पर कोई हमला नहीं किया, लेकिन अगर वे एनडीए में सहज होते तो ऐसे बयान बार-बार देने की जरूरत ही क्यों पड़ती।
कांग्रेस ने दिया मांझी और सहनी को महागठबंधन में आने का न्योता
एनडीए के सहयोगी जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी को कांग्रेस ने महागठबंधन में शामिल होने का न्यौता दिया है। कांग्रेस विधान मंडल दल के नेता अजीत शर्मा ने कहा कि यदि विकास करना है तो एनडीए के दोनों सहयोगियों को गठबंधन में शामिल होना चाहिए। वैसे भी एनडीए में उनकी कद्र नहीं। कांग्रेस विधान मंडल दल के नेता अजीत शर्मा कहते हैं कि किसी भी दल के लिए अपमानजनक है कि उसके सहयोगी ही उसकी कद्र ना करें। राज्यपाल मनोनयन वाली 12 सीटें जदयू-भाजपा बराबर-बराबर बांट ली। ना तो हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को सीट दी गई ना ही विकासशील इंसान पार्टी को, जबकि गठबंधन धर्म का पहला सिद्धांत ही त्याग होता है।
जले पर नमक छिड़कने का काम कर रही कांग्रेस
कांग्रेस नेता अजीत शर्मा ने कहा कि एनडीए के दोनों घटक दलों का कम से कम एक-एक सीट पर अधिकार था जो इन्हें नहीं मिला। उन्होंने कहा यदि सहनी और मांझी अपने अपमान के साथ एनडीए में नहीं रहना चाहते हैं तो उन्हें महागठबंधन में शामिल होना चाहिए। वैसे भी बिहार की जनता ने महागठबंधन को अपना जनादेश दिया था, जिसका प्रशासनिक सहयोग से अपहरण कर लिया गया।
चुनाव से ठीक पहले एनडीए में आए थे मुकेश सहनी
मुकेश सहनी बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एनडीए में आए थे। चुनाव के कुछ दिनों पहले तक वह राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन का हिस्सा थे। महागठबंधन की ओर से सीटों की हिस्सेदारी में भाव नहीं मिलने पर सहनी, तेजस्वी यादव समेत सभी बड़े नेताओं की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में सार्वजनिक ऐलान कर उनके एलायंस से बाहर हो गए थे। तब भी मुकेश सहनी ने निषाद समाज के अपमान का आरोप लगाया था। सहनी दिसंबर 2018 में महागठबंधन में शामिल हुए थे। वे दो साल से कम राजद के गठबंधन में रहे। इससे पहले वे एनडीए का समर्थन करते रहे थे। सहनी बिहार की सियासत में सक्रिय होने के बाद लगातार पाला बदलते रहे हैं।
अगर नाराजगी बढ़ती है तो सहनी के सामने क्या है विकल्प
एनडीए में अगर मुकेश सहनी की नाराजगी बढ़ती है तो महागठबंधन की ओर से उन्हें लगातार ऑफर दिया जा रहा है। हालांकि ऐसा करना आसान नहीं होगा। फिर भी अगर सहनी एनडीए का साथ छोड़ते हैं तो सरकार जरूर मुश्किल में आ सकती है। सरकार के साथ तब चुनौती अधिक गंभीर होगी, जब मांझी और सहनी एक साथ एनडीए को छोड़ते हैं। वजह यह कि बिहार विधानसभा में महागठबंधन और एनडीए की सीटों में बहुत अधिक का अंतर नहीं है।
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