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कौमी एकता की मिसाल है वैशाली मीरनजी की दरगाह, रघुवंश बाबू ने भी बेहतरी के लिए किए प्रयास

वैशाली की ऐतिहासिक धरोहरों में से एक मीरनजी की दरगाह कौमी एकता की मिसाल है। इन दिनों ये बाढ़ के पानी से घिरी हुई है पर लोगों को बेहतरी की उम्मीद है।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Tue, 15 Sep 2020 12:33 PM (IST)Updated: Tue, 15 Sep 2020 12:33 PM (IST)
कौमी एकता की मिसाल है वैशाली मीरनजी की दरगाह, रघुवंश बाबू ने भी बेहतरी के लिए किए प्रयास
कौमी एकता की मिसाल है वैशाली मीरनजी की दरगाह, रघुवंश बाबू ने भी बेहतरी के लिए किए प्रयास

अनिज कुमार सिंह, वैशाली। वैशाली की ऐतिहासिक धरोहरों में से एक और कौमी एकता की मिसाल मीरनजी की दरगाह इन दिनों बाढ़ के पानी से घिरी है। स्थिति ऐसी है कि कोई दरगाह तक जा नहीं सकता। वैशाली गढ़ के दक्षिण पश्चिम कोण पर गढ़ एवं वामन पोखर के बीच स्थित यह स्थल अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्षरत है। करीब 43 मीटर रेडियस में बनी दरगाह करीब सात मीटर ऊंची है। इसके चारों तरफ ईंट से बनी दीवार है, जो चारो तरफ से ढह रही है।

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इसके दक्षिणी भाग में ऊपर जाने के लिए एक सीढ़ी बनी हुई है। कहते हैं कि वर्ष 1495 ई. में सूफी परंपरा के धर्मगुरु औलिया अल रहमत शेख काजिन सुत्तारी के निधन के बाद यहीं एक टीले पर उन्हें दफनाया गया था। मध्यकालीन युग में सूफी संत शेख मोहम्मद काजिन फैजुल्लाह सुत्तारी  (1434-95) तक वैशाली में इस्लाम काफी फला-फूला।

हिन्दू एवं मुस्लिम एक साथ मनाते हैं त्योहार

वहीं इनकी मजार के बगल में हनुमानजी की एक पीढ़ी है, जिस पर प्रतिवर्ष हिन्दू रामनवमी को पूजा अर्चना करते हैं। सूफी संत शेख मोहम्मद काजिन फैजुल्लाह सुत्तारी का जन्म वर्ष 1434 ई0 में मनेर में हुआ था। सूफी मत के प्रचार-प्रसार के लिए वे वैशाली में रहे। एक ही स्थल पर हिन्दू एवं मुस्लिम समुदाय के लोग जिस धार्मिक सहिष्णुता के साथ मिलकर त्योहार मनाते हैं। हर वर्ष यहां चैत रामनवमी को तीन दिवसीय मेला लगता है, जो बौना मेला के नाम से जाना जाता है। हिंदू सौर गणना पर आधारित यह मेला कब से लगता है, इसके विषय में किसी को सही जा 

सच्चे मन से प्रार्थना करने पर उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ती

जब 1861 ई. में पुरातत्ववेत्ता कनिंघम यहां आए थे, तब यहां रामनवमी को लगे मेले को देखा था। लोगों में आस्था है कि सच्चे मन से प्रार्थना करने पर उन्हें मनोवांछित फल प्राप्त होता है। वर्ष 2010 में अपने वैशाली प्रवास में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यहां चादर चढ़ायी थी। उन्होंने इस स्थल के विकास का निर्देश भी दिया था। इस स्थल के विकास के लिए वैशाली के सांसद रहे डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी अपने सांसद मद की राशि दी थी, लेकिन सरकारी कागजात में यह निजी जमीन में स्थित है, इसलिए इसमें सरकारी राशि का उपयोग नहीं किया जा सका। 


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