एम्स, पटना में दो से छह वर्ष के पांच बच्चों पर वैक्सीन का ट्रायल आरंभ, प्लेसिबो के बाद दिया जा रहा टीका
बच्चों को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए पटना एम्स में स्वदेशी वैक्सीन (कोवैक्सीन) का ट्रायल चल रहा है। दो दिन पूर्व दो से छह वर्ष के पांच बच्चों पर वैक्सीन का ट्रायल शुरू हो गया है। अब तक 55 बच्चे ट्रायल में भाग ले चुके हैं।
जागरण संवाददाता, पटना : बच्चों को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए पटना, एम्स में स्वदेशी वैक्सीन (कोवैक्सीन) का ट्रायल चल रहा है। दो दिन पूर्व दो से छह वर्ष के पांच बच्चों पर वैक्सीन का ट्रायल शुरू हो गया है। अब तक 55 बच्चे ट्रायल में भाग ले चुके हैं। 12 से 18 तथा छह से 12 आयुवर्ग के बच्चों पर पहले राउंड का ट्रायल पूरा हो चुका है। दूसरे राउंड में 12 से 18 वर्ष के कुछ बच्चों को भी डोज दी गई है।
एम्स, पटना के निदेशक डा. प्रभात कुमार सिंह के अनुसार, अब तक 55 बच्चों ने ट्रायल में भाग लिया है। 110 से अधिक बच्चों ने इसके लिए रजिस्ट्रेशन करा रखा है। 12 से 18 उम्र के 28 बच्चे, छह से 12 वर्ष के 22 बच्चों पर ट्रायल पूरा हो चुका है। अब दो से छह वर्ष के बच्चों पर ट्रायल किया जा रहा है। इसमें अब तक पांच बच्चे पहुंचे हैं। जैसे-जैसे और बच्चे पहुंचेंगे, उन्हें ट्रायल में शामिल किया जाएगा।
ट्रायल में शामिल सभी बच्चे स्वस्थ
निदेशक ने बताया कि ट्रायल में शामिल 55 बच्चों में किसी पर कोई साइड इफेक्ट नहीं दिखा है। सभी स्वस्थ हैं। सभी को वैक्सीन की पहली डोज लग चुकी है। 12 से 18 वर्ष के कुछ बच्चों को दूसरी डोज भी दी गई है। जैसे-जैसे पहली डोज के बाद 28 दिन का अंतराल आ रहा है, सभी को दूसरी डोज दी जाएगी। वयस्कों पर कोरोना वैक्सीन का ट्रायल सबसे पहले एम्स, पटना में हुआ था। उसी तरह शिशुओं में भी पहले यहां ट्रायल आरंभ हुआ है।
जिन्हें प्लेसिबो दी गई, अब उन वालंटियर को दी जा रही वैक्सीन
एम्स, पटना के निदेशक के अनुसार, वयस्कों पर हुए ट्रायल में आधे लोगों को वैक्सीन व आधे को प्लेसिबो दी गई थी। ट्रायल पूरी तरह आइसीएमआर की निगरानी में किया गया था। इसके बाद दोनों का असर देखा गया। पहली बार में जिन-जिन लोगों को प्लेसिबो दी गई थी, उन्हें बुलाकर अब वैक्सीन दी जा रही है।
क्या है प्लेसिबो
प्लेसिबो दवा या वैक्सीन के रूप में दिया गया ऐसा पदार्थ होता है, जिसमें कोई सक्रिय तत्व नहीं होता है। यह सेहत पर सीधा असर नहीं डाल सकता। मरीजों को यह भ्रम होता है कि जो दवा या वैक्सीन उन्हें दी जा रही है, इसका असर शरीर पर पड़ रहा है। ट्रायल के दौरान किसी को यह पता नहीं होता है कि उसे प्लेसिबो दी जा रही है या वैक्सीन।