यूपी चुनाव में बिहार की पार्टियां, जीतने से तगड़ा जमानत गंवाने का रिकार्ड; केवल एक दल को मिली कामयाबी
बिहार केंद्रित कई पार्टियां यूपी में चुनाव लड़ने के लिए बेताब हैं। बीते 20 बरस में हुए उप्र विधानसभा के चार चुनावों के आंकड़ों का विश्लेषण यही बताता है कि इन पार्टियों की जीत कम या एकदम से नहीं हुई।
अरुण अशेष, पटना: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बिहार केंद्रित कई पार्टियां चुनाव लड़ने के लिए बेताब हैं। जदयू, लोजपा और विकासशील इंसान पार्टी के नेता इस चुनाव में अपनी भागीदारी चाह रहे हैं। इन दलों के विकल्प खुले हुए हैं। भाजपा या किसी अन्य दल से गठबंधन अथवा स्वतंत्र भागीदारी। बीते 20 बरस में हुए उप्र विधानसभा के चार चुनावों के आंकड़ों का विश्लेषण यही बताता है कि इन पार्टियों की जीत कम या एकदम से नहीं हुई। हां, जमानत गंवाने का रिकार्ड जरूर तगड़ा हुआ। सांकेतिक ही सही, तीन में से दो चुनावों में जदयू को क्रमश: दो और एक सीट पर कामयाबी मिली।2017 के चुनाव में बिहार की कोई पार्टी शामिल नहीं हुई थी।
2002 के विधानसभा चुनाव में जदयू को दो सीटों पर कामयाबी मिली थी। गुन्नौर से अजित ऊर्फ राजू यादव और हसन बाजार सुरक्षित सीट से सदल प्रसाद जीते। 16 में आठ उम्मीदवार की जमानत जब्त हो गई। उस चुनाव तक लोजपा का जन्म नहीं हुआ था। राजद के 25 उम्मीदवार खड़े थे। सबकी जमानत तो पिटी ही, वोट भी सिर्फ 0.04 प्रतिशत मिला। 2007 में बिहार की तीन पार्टियां चुनाव लड़ीं। जदयू के उम्मीदवारों की संख्या 16 थी। एक रारी सीट पर धनंजय सिंह की जीत हुई। तीन की जमानत बची। 12 जमानत की रकम गंवा बैठे। 2007 के चुनाव में राजद और लोजपा के साथ बहुत बुरा हुआ। लोजपा के सभी 72 उम्मीदवारों की जमानत पिट गई। राजद के एक उम्मीदवार की जमानत बच पाई। उसके 66 में से 65 उम्मीदवार जमानत की रकम वापस नहीं ले पाए। बिहार की पार्टियां आखिरी बार 2012 के उप्र विधानसभा चुनाव में शामिल हुईं। उस चुनाव में तीनों दलों के किसी उम्मीदवार की जमानत नहीं बच पाई। राजद के चार, लोजपा के 212 और जदयू के 219 उम्मीदवार मैदान में उतरे। अपवाद के तौर पर भी इनमें से किसी की जमानत नहीं बच पाई।
2012 में लोजपा की हुई बुरी हार
पांच साल पहले (2012) हुई इतनी बुरी हार के बावजूद लोजपा 2017 के विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों की सूची बना चुकी थी। कुछ उम्मीदवार क्षेत्र में भी चले गए थे। पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राम विलास पासवान (अब दिवंगत) से भाजपा नेतृत्व ने उम्मीदवार न देने का आग्रह किया। वह राजी हो गए। राजद ने समाजवादी पार्टी की मदद में उम्मीदवार न देने का फैसला किया। जदयू के चुनाव न लड़ने के अपने कारण थे।