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Bihar Chunav 2020 Results: रालोसपा को महंगा पड़ा खोखली जमीन पर बड़ी आकांक्षा पालना, गलत फैसलों ने किया बंटाधार

Bihar Chunav 2020 Results चुनाव के नतीजे ने प्रदेश में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) को जमीनी हकीकत का एहसास करा दिया। स्पष्ट रूप से यह बता दिया कि खोखली जमीन पर बड़ी आकांक्षा पालना हमेशा महंगा पड़ता है।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Thu, 12 Nov 2020 05:10 PM (IST)Updated: Thu, 12 Nov 2020 06:01 PM (IST)
Bihar Chunav 2020 Results: रालोसपा को महंगा पड़ा खोखली जमीन पर बड़ी आकांक्षा पालना, गलत फैसलों ने किया बंटाधार
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा। जागरण आर्काइव।

दीनानाथ साहनी, पटना। चुनाव के नतीजे ने प्रदेश में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) को जमीनी हकीकत का एहसास करा दिया। स्पष्ट रूप से यह बता दिया कि खोखली जमीन पर बड़ी आकांक्षा पालना हमेशा महंगा पड़ता है। पार्टी ने अंतिम समय तक महागठबंधन से तालमेल में अधिक सीटों की रट लगाई, मगर महागठबंधन ने उसे भाव नहीं दिया तब रालोसपा ने जमीनी हकीकत से वास्ता नहीं रखने वाले दलों के साथ आनन-फानन में गठबंधन बनाया और खुद 104 सीटों पर चुनाव लड़ा। मगर कोई करिश्मा नहीं दिखा पाया।

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इतने खराब प्रदर्शन की नहीं थी उम्मीद

अब रालोसपा के कई नेता स्वीकार करने लगे हैं कि पार्टी के एक के बाद एक गलत फैसलों ने भी बंटाधार किया। पार्टी सूत्रों ने बताया कि इतने खराब परिणाम की किसी को आशंका नहीं थी, मगर परिणाम आने के बाद आत्ममंथन से तस्वीर साफ होने लगती है। रालोसपा ने जिन बाहरी उम्मीदवारों पर ने दांव लगाया, वे कोई करिश्मा नहीं दिखा पाए। रालोसपा को केवल प्रत्याशियों का ही टोटा नहीं था, बल्कि प्रदेश में इसके पास उपेंद्र कुशवाहा को छोड़ कर कोई ऐसा नेता भी नहीं था जो जनता के बीच बहुत लोकप्रिय हो। पार्टी केवल उपेंद्र कुशवाहा की छवि के बूते चुनाव में उतरी थी। 

बाहरी उम्मीदवारों पर जताया भरोसा

पार्टी सूत्रों ने बताया कि महागठबंधन से अलग होने का रालोसपा के फैसले ने भी चुनाव में बंटाधार किया। जनता की नब्ज पकड़ने का एक अच्छा मौका पार्टी को तब हाथ से निकल गया जब इसने गठबंधन बनाने में देर की और बाहरी उम्मीदवारों पर भरोसा जताया। इसके कारण कई नेता पार्टी छोड़ गए। रालोसपा के प्रदेश अध्यक्ष भूदेव चौधरी कई महत्वपूर्ण समर्थकों व कार्यकर्ताओं के संग राजद में चले गए और राजद से टिकट भी पा गए। वे चुनाव भी जीत गए। इधर, रालोसपा अपने प्रचार अभियान को साइंटिफिक नहीं बना सकी, जबकि राजग व महागठबंधन ने मतदान के हर चरण में अपने प्रचार अभियान की अलग-अलग आक्रामकता दिखाई। चुनाव परिणाम के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने स्वीकार किया हम अपने मुद्दों को जनता तक सशक्त ढंग से नहीं ले जा सके। महागठबंधन से अलग होने पर हमारे पास चुनाव की तैयारी का समय नहीं था। हमें  मतदाताओं तक जिस स्तर से पहुंचना था, मगर हम इसकी रणनीति नहीं बना पाए। 

ग्रैंड यूनाइटेड सेक्यूलर फ्रंट का नहीं था जनाधार

रालोसपा के नेतृत्व में बना ग्रैंड यूनाइटेड सेक्यूलर फ्रंट में शामिल दलों का कोई जनाधार भी नहीं था। बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी जनता दल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) का बिहार में कोई आधार भी नहीं है। हां, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम (आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) ने अपने बुते सीमांचल में मुस्लिम बहुल इलाके में पांच सीटें जरूर जीतने में सफल रही।


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