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करोड़ों रुपये के JPO घोटाले में दो छुपे रुस्तम, बेनामी खाते की दी थी सूचना Patna News

पटना जीपीओ में हुए करोड़ों रुपये के घोटाले में दो छुपे रुस्तम की खोज सीबीआइ अब भी नहीं कर सकी है। मामले में एसबीसीओ के कर्मी भी रडार पर हैं।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Sun, 13 Oct 2019 09:56 AM (IST)Updated: Sun, 13 Oct 2019 09:56 AM (IST)
करोड़ों रुपये के JPO घोटाले में दो छुपे रुस्तम, बेनामी खाते की दी थी सूचना Patna News
करोड़ों रुपये के JPO घोटाले में दो छुपे रुस्तम, बेनामी खाते की दी थी सूचना Patna News

पटना, जेएनएन। जनरल पोस्ट ऑफिस (जीपीओ) के बेनामी खाताधारकों की सूचना देने वाले दो छिपे रुस्तम तक केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) की पड़ताल नहीं पहुंच सकी है। सेविंग बैंक कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (एसबीसीओ) से वैसे खाताधारकों की सूचना लीक की गई थी, जिसके दावेदार करीब 25 वर्षों से सामने नहीं आए थे। सीबीआइ ने पांच लोगों को ही नामजद आरोपित बनाया है, जो घोटाले में संलिप्तता के आरोप में निलंबित हो चुके हैं। एसबीसीओ के जिन पदाधिकारियों ने घोटाले की मोटी रकम नकद और बैंक खाते में जमा कराई, उन तक कार्रवाई अभी नहीं पहुंच सकी है।

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जीपीओ में 5.42 करोड़ रुपये के घोटाले में सबसे बड़ी भूमिका एसबीसीओ की रही है। बीते तीन अगस्त को उजागर होने के बाद अब तक दो करोड़ रुपये संलिप्त कर्मियों से वापस जमा कराए गए हैं। करीब 1.42 करोड़ रुपये सरकारी खजाने में जमा हुआ है और करीब 60 लाख रुपये कर्मियों व उनके आश्रितों के बैंक खाते में जमा धनराशि के रूप में जब्त की गई है। दरअसल, पुराने और बेनामी खातों से संबंधित दस्तावेज सिर्फ एसबीसीओ के पास रहता है। घोटाले के लिए नीचे के कर्मियों को दस्तावेज सुलभ कराए गए, जिसके आधार पर करोड़ों रुपये की निकासी संभव हो सकी।

तीन अगस्त को घोटाला सामने आने के बाद काउंटर क्लर्क मुन्ना को निलंबित किया गया था। पांच अगस्त को विभागीय जांच आगे बढ़ी तो राजेश कुमार व सुजय कुमार तिवारी निलंबित किए गए। बाद में दो अन्य कर्मियों को भी निलंबन की सजा मिली। सूत्रों के अनुसार पटना जीपीओ के एसबीसीओ से आरा स्थानांतरित किए गए एक पदाधिकारी के बैंक खाते में लाखों रुपये उस वक्त जमा हुए, जिस अवधि में घोटाला हुआ। इसी तरह एक अन्य पदाधिकारी को करीब 35 लाख मिले थे, जिसका नाम विभाग की निगरानी जांच में आया है।

लिहाजा, एसबीसीओ की मिलीभगत के बिना घोटाला संभव ही नहीं है, क्योंकि बेनामी खाते का सारा रिकॉर्ड इसी के पास रहता है। सूत्रों की मानें तो मुख्य पर्यवेक्षक स्तर के एक पदाधिकारी के बैंक खाते में औसतन पांच-पांच लाख रुपये घोटाले की राशि जमा होती रही है। डिजिटल रिकॉर्ड के आधार पर इसकी कुछ हद तक तस्दीक भी हो चुकी है। इसी के आधार पर माना जा रहा कि सीबीआइ अपनी प्राथमिकी में एसबीसीओ के पदाधिकारियों के नाम भी जोड़ सकती है।


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