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जीवन के लिए बड़ा खतरा बना तम्‍बाकू, चपेट में बिहार की अधिकांश आबादी

तम्‍बाकू आज मानव जीवन के लिए बड़ा खतरा है। बिहार की बात करें तो यहां की अधिकांश आबादी इसकी चपेट में है। विश्‍व तम्‍बाकू निषेध दिवस के अवसर पर जानिए तम्‍बाकू के खतरे व बचाव के उपाय।

By Amit AlokEdited By: Published: Thu, 31 May 2018 12:52 PM (IST)Updated: Thu, 31 May 2018 11:55 PM (IST)
जीवन के लिए बड़ा खतरा बना तम्‍बाकू, चपेट में बिहार की अधिकांश आबादी
जीवन के लिए बड़ा खतरा बना तम्‍बाकू, चपेट में बिहार की अधिकांश आबादी

पटना [अमित आलोक]। तम्बाकू का प्रयोग पहली बार घोड़े के पेट में कीड़ों को मारने के लिए किया गया था। तब किसी ने सोचा भी नहीं था एक दिन यह मनुष्य के लिए बड़ा खतरा बन जाएगा। आंकड़ों की बात करें तो भारत में हर एक मिनट में दो लोग तम्बाकू के सेवन से मर रहे हैं। यह लोगाें को कैंसर का मरीज बना रहा है। हृदय की बीमारी के बाद कैंसर देश में मौत का दूसरा बड़ा कारण है।

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तम्बाकू हृदय रोग का भी बड़ा कारण है। इसी कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस साल विश्‍व तम्बाकू निषेध दिवस का थीम 'तम्बाकू और हृदय रोग' रखा है।

कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. वीपी सिंह के अनुसार पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़ दें तो देश में तम्बाकू का सर्वाधिक इस्तेमाल बिहार में होता है। कह सकते हैं कि बिहार खतरनाक तम्बाकू बम पर बैठा है। डॉ.वीपी सिंह के अनुसार बिहार में तम्बाकू के सेवन से न केवल मुंह का कैंसर हो रहा है, बल्कि गला, अमाशय, यकृत, फेफड़े के भी कैंसर हो रहे हैं। इसके अलावा हृदय रोग के मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है। तम्बाकू के कारण रक्त संबंधी व अन्‍य बीमारियां भी बढ़ रही हैं।

भयावह हैं आंकड़े

नेशनल फैमिली हेल्‍थ सर्वे (एनएफएचएस- 4) के अनुसार बिहार में तम्बाकू सेवन के आंकड़े भयावह हैं। यहां दो तिहाई पुरुष तथा आठ फीसद महिलाएं तम्बाकू का किसी न किसी रूप में सेवन करती हैं। इनमें भी पांच फीसद गर्भवती तथा 10.8 फीसद बच्चों को दूध पिलाने वाली महिलाएं शामिल हैं।

बिहार के हाईस्कूलों में पढऩे वाले 61.4 फीसद छात्र तथा 51.2 फीसद छात्राएं और 70 फीसद से अधिक शिक्षक किसी न किसी रूप में तम्बाकू का सेवन करते हैं। प्रदेश में 40 फीसद महिलाएं व 62 फीसद पुरुष चबाने वाले तम्बाकू का सेवन करते हैं।

ग्लोबल एडल्ट तम्बाकू सर्वेक्षण (जीएटीएस-दो) 2016-17 के आंकड़ों पर गौर करें तो भारत तम्बाकू का दूसरा सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है। विश्‍व के 11.2 फीसद धूमपान करने वाले भारतीय हैं। भारत में धुआं रहित तम्बाकू का सेवन धूमपान से अधिक है।वर्तमान में 42.4 फीसद पुरुष, 14.2 फीसद महिलाएं तथा सभी वयस्कों में 28.6 फीसद धूमपान या धुआं रहित तम्बाकू का उपयोग करते हैं।

कैंसर का सबसे बड़ा कारण

पटना मेडिकल कॉलेज अस्‍पताल (पीएमसीएच) के कैंसर रोग विभागाध्यक्ष डॉ. पीएन पंडित बताते हैं कि तम्बाकू दुनिया भर में कैंसर का सबसे बड़ा कारण है। दुनिया का हर तीसरा कैंसर का मरीज तम्बाकू का सेवन करता है। भारत में इसका सेवन लोग खैनी, जर्दा, गुटखा, पान, मसाला, बीडी एवं सिगरेट के रूप में करते हैं। वर्तमान में 12 करोड़ लोग धूमपान कर रहे हैं। भारत में टीबी, एड्स से ज्यादा मरीज कैंसर के कारण मर रहे हैं।

बिहार में बढ़ा तम्बाकू जनित कैंसर

बिहार की बात करें तो यहां के आंकड़े भी भयावह हैं। प्रदेश में कुछ हद तक तम्बाकू के शौकीनों की संख्या घटी तो है, लेकिन तम्बाकू से होने वाले कैंसर रोगियों की संख्या बढ़ी है। इनमें से अधिसंख्य लोगों ने बताया कि वे लंबे समय से तम्बाकू का इस्तेमाल छोड़ चुके हैं। कारण यह कि एक बार तम्बाकू की गिरफ्त में आए शरीर को पूरी तरह से शुद्ध होने में करीब 15 वर्ष लगते हैं।

सायनाइड से भी अधिक खतरनाक

गोपालगंज के डॉ. संदीप कुमार कहते हैं कि तम्बाकू से कैंसर के अलावा हृदय रोग सहित अन्‍य खतरे भी कम नहीं। यह सबसे खतरनाक पोटेशियम सायनाइड जहर से भी घातक है, क्योंकि इससे मरने वाले अधिकांश लोग उत्पादन क्षमता वाले अर्थात 25 से 65 वर्ष के होते हैं। साथ ही साइनाइड जिसके शरीर में जाता है, उसी की जान जाती है। लेकिन, तम्बाकू धुएं के रूप में तो आसपास रहने वालों को भी खतरनाक रोगों को तोहफा देती है। तम्बाकू उत्पाद से निकलने वाले धुएं में 400 से अधिक केमिकल पाए जाते हैं। उनमें से 60 से ज्यादा बेहद घातक होते हैं। उनका पूरे शरीर पर दुष्‍प्रभाव पड़ता है।

शरीर के हर अंग पर दुष्प्रभाव

तम्बाकू के उपरोक्‍त घातक रसायन शरीर पर काफी बुरा प्रभाव डालते हैं।

- मस्तिष्क: ब्रेन हैमरेज (लकवा) का जोखिम अधिक, जो महिलाएं गर्भ निरोधक गोलियों का सेवन करती है उन्हें लकवा का खतरा ज्यादा होता है।

- मुंह-होंठ: मुंह व स्वर ग्रंथि में कैंसर के साथ स्वरयंत्र में सूजन से आवाज भारी हो जाती है।

- रक्त संचार प्रणाली: हृदय संबंधी रोग जैसे हृदयाघात आदि हो सकते हैं। उच्च रक्ताचाप, हृदय की धमनियों की बीमारी के कारण पैरों में खून का ठीक से प्रवाहित नहीं होने की समस्‍या भी हो सकती है। इससे कई बार पैर काटने तक की नौबत आ जाती है।

- पेट व आंत: पेट के भीतर की परत नाजुक हो जाती है। इससे रक्तस्राव की आशंका बढ़ जाती है। आंत के घाव (अल्सर) देर से ठीक होते हैं। कैंसर भी हो सकता है। 

- अग्नाशय, गुर्दे और मूत्राशय का कैंसर होने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।

- बांझपन: पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या व उनकी सक्रियता कम हो जाती है। वहीं महिलाओं में अंडे क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, मासिक अनियमित और हार्मोन स्तर असंतुलित हो जाता है। महिलाओं में रजोनिवृत्ति जल्द हो जाती है और स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। इसके साथ ही तम्बाकू सेवन से स्त्री व पुरुष दोनों की ही यौन इच्छा कम हो जाती है।

- श्वास प्रणाली: ब्रॉन्‍काइटिस, क्रॉनिक ऑब्सट्रेक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) व फेफड़े का कैंसर होने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।

- गर्भस्थ शिशु के लिए भी खतरा: यदि कोई महिला तम्बाकू उत्पादों का सेवन करती है तो शिशु का वजन औसत से कम होने के साथ अचानक मौत होने की आशंका ज्यादा होती है। तम्बाकू सेवन से अक्सर समय पूर्व प्रसूति का जोखिम रहता है। गर्भपात के साथ मृत शिशु के जन्म लेने की आशंका कई गुना ज्यादा होती है। शिशु का शारीरिक व मानसिक विकास बाधित होता है और मां के दूध से शिशु के शरीर में निकोटिन पहुंचने की आशंका होती है।

- हड्डी व इम्यून सिस्टम: तम्बाकू इस्तेमाल से जहां हड्डियां कमजोर होने से ऑस्टियोपोरेसिस रोग हो जाता है वहीं रोगों से लडऩे की प्रतिरोधक शक्ति कम होने से बार-बार संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

तम्बाकू के घातक रसायन

- निकोटिन : कीड़े मारने में इस्तेमाल की जाने वाली दवा।

- अमोनिया : फर्श की सफाई में इस्तेमाल होने वाला पदार्थ।

- आर्सेनिक : चींटी मारने वाला जहरीला पदार्थ।

- कार्बन मोनो ऑक्साइड : कार से निकलने वाली खतरनाक गैस।

- हाइड्रोजन साइनाइड : गैस चैंबर में इस्तेमाल की जाने वाली जहरीली गैस।

- नेप्थलीन : इससे मोथबॉल्स बनाए जाते हैं।

- तारकोल : सड़क निर्माण में इस्तेमाल होने वाला पदार्थ।

- रेडियोएक्टिव पदार्थ : परमाणु हथियार में इस्तेमाल होने वाला पदार्थ।

ऐसे हो सकता बचाव

सवाल यह है कि आखिर क्‍या है बचाव? पीएमसीएच के पीएन डॉ. पंडित कहते हैं कि तम्‍बाकू छोड़कर कैंसर सहित अन्‍य रोगों से बहुत हद तक बचा जा सकता है। इसके लिए लोगों में जागरूकता पैदा करने की जरूरत है। इसके लिए डॉक्‍टर से सलाह ली जा सकती है। कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. वीपी सिंह कहते हैं कि देश के 15 राज्यों में तंबाकू उत्पादों पर प्रतिबंध है। बिहार में भी ऐसा प्रतिबंध लगाना बहुत जरूरी है।

आयुर्वेद में भी है उपाय

मोतिहारी के आयुर्वेदिक चिकित्‍सक डॉ. भास्कर रॉय बताते हैं कि किसी भी नशा को छोड़ने के लिए सबसे जरूरी है इच्‍छाशक्ति। अगर इच्‍छाशक्ति है तो आयुर्वेद में इसके लिए उपाय हैं। नशे की तलब लगने पर लौंग को मुंह में रखकर उसे दबाया जा सकता है। इसी तरह सौंफ में काला नमक व नींबू का रसदो-चार बार डालकर सुखा लें और तलब लगे तो मुेंह में रखें तो धीरे-धीरे तंबाकू का नशा छोड़ने में सहायता मिलती है।


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