एम्स पटना में अब तक एमआइएस के तीन बच्चों की मौत, चार हुए स्वस्थ
कोरोना संक्रमित बच्चों में मल्टी सिस्टम इनफ्लेट्री सिड्रोम (एमआइएस-सी) धीरे-धीरे बढ़ने लगा है।
पटना । कोरोना संक्रमित बच्चों में मल्टी सिस्टम इनफ्लेट्री सिड्रोम (एमआइएस-सी) धीरे-धीरे बढ़ने लगी। कोरोना की दूसरी लहर में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) पटना में अब तक सात मरीजों की पहचान हुई। इसमें से तीन की मौत हो गई, जबकि चार बच्चे स्वस्थ होकर घर लौट गए। इसके साथ ही कोरोना संक्रमित पांच बच्चे अभी भर्ती हैं। वहीं, आइजीआइएमएस से एमआइएस-सी संक्रमित एक बच्चा बुधवार को स्वस्थ होकर घर लौट गया।
एम्स के शिशु विभागाध्यक्ष डॉ. लोकेश कुमार तिवारी ने बताया कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में एमआइएस-सी से पीड़ित सात बच्चे पहुंचे थे। यदि आरंभ में ही बीमारी की पहचान हो जाए तो जान बचाने में सहूलियत होती है। कोरोना होने के दो से छह सप्ताह के बीच बच्चे इस बीमारी की चपेट में आते हैं। कुछ सीवियर तो कुछ मॉडरेट होते हैं। तुरंत पहचान होने से बच्चे की जान बचाने में आसानी होती है।
उन्होंने बताया कि एमआइएस-सी पीड़ित बच्चों में तीन दिनों से बुखार के अलावा स्कीन पर दाने, आंख लाल होना। इसमें आंखों से कीच नहीं आती है। सबसे पहले यह बच्चों के दिल को डैमेज करना शुरू कर देता है। इस समय यदि सही उपचार नहीं हुआ तो मौत भी हो सकती है। खून जमने की प्रक्रिया गड़बड़ हो जाती है। हर्ट से ब्लड वेसेल्स में गड़बड़ी दिखने लगता है। यह कावासाकी डिजिज से मिलती-जुलती बीमारी है। लंग्स की भी समस्या होने लगती है। इससे बच्चे शॉक में आ जाते हैं। तब यह घातक हो जाता है।
-----------------
बच्चों में 20 गुना कम है रिस्क
एम्स शिशु विभागाध्यक्ष लोकेश तिवारी ने बताया अमेरिका में हुए शिशु शोध पर गौर करें तो बच्चों में एक व्यस्क की तुलना में 20 गुना कम संक्रमण का खतरा होता है। कोरोना संक्रमण की पहली लहर में एम्स में महज 52 संक्रमित व 54 संदिग्धों के डाटा मिले थे। दूसरी लहर में यह संख्या 650 को पार कर गई है। लगभग एक दर्जन को छोड़ कर सभी को टेलीमेडिसीन के माध्यम से ही घर से ही उपचार कराया गया। अब सभी स्वस्थ हैं। उन्होंने कहा कि यदि बच्चों को समय पर उपचार मिले तो 96 फीसद घर पर ही ठीक हो जाएंगे। ऐसे में तीसरी लहर से बच्चों को बचाने में अभिभावकों की अहम योगदान साबित होगा।