Loksabha Election राजधानी के रण में इस बार ताज बचाए रखने की चुनौती
पटना साहिब और पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र के प्रमुख चार उम्मीदवारों के नाम किसी पहचान के मोहताज नहीं। सभी के पास खोने के लिए बहुत कुछ है। आइए जानते हैं कैसे बदल सकते हैं समीकरण।
लवलेश कुमार मिश, पटना। शहरी मतदाताओं के बीच विशेष पैठ और राजधानी के महत्व के कारण भाजपा पटना साहिब और पाटलिपुत्र को जीतने के लिए व्याकुल है। केंद्र और राज्य की सत्ता पर काबिज एनडीए की अगुवा भाजपा के लिए स्थानीय समीकरण उम्मीद बंधाने वाले हैं।
पहली बार मैदान में रविशंकर
पटना साहिब में पिछले कुछ चुनावों से भाजपा की जीत होती रही है, जबकि मोदी लहर में पिछली बार पाटलिपुत्र पर भी कब्जे में कामयाबी मिली थी। बिहार की सियासत का सरताज बनने के लिए ये दोनों सीटें उसे दोबारा जीतनी ही होंगी। तैयारी उसी हिसाब से है। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के लिए लोकसभा का यह पहला चुनाव है। रविशंकर को इसलिए भी धुरंधर माना जाता है, क्योंकि वे अभी तक कई चुनावों के रणनीतिकारों में शामिल रहे हैं। उनके मुकाबले में कांग्रेस से अभिनेता व निवर्तमान सांसद शत्रुघ्न सिन्हा हैं, जो हाल-फिलहाल तक भाजपाई थे। शत्रुघ्न के लिए परेशानी यह कि उनके समर्थक दूर हो चुके हैं और कांग्रेस के कार्यकर्ता उन्हें स्वीकार नहीं कर पा रहे।
बिरादरी में गुंजाइश तलाश रहे उम्मीदवार
पटना साहिब में सिख मतदाताओं की संख्या ठीकठाक है, लेकिन इतनी भी ज्यादा नहीं कि वे किसी के भाग्यविधाता बन सकें। अलबत्ता उनके वोट निर्णायक बढ़त दिलाने में मददगार हो सकते हैं। खास बात यह कि यहीं पर तख्त साहिब श्रीहरमंदिरजी भी अवस्थित हैं। दशमेश गुरु गोविंद सिंहजी महाराज के 350वें प्रकाशोत्सव पर राज्य सरकार द्वारा की गई व्यवस्था की देश-दुनिया में तारीफ हो सकती है। इस बिरादरी में भाजपा अपने लिए गुंजाइश देख रही।
कुछ ऐसी ही उम्मीद कायस्थ बिरादरी के मतदाताओं से भी है, जो अभी तक यहां जीत-हार की दिशा तय करते रहे हैं। चूंकि इस बार आमने-सामने के दोनों प्रत्याशी इसी बिरादरी से हैं, लिहाजा गोलबंदी की कोशिश तेज है। इनके अलावा कुर्मी, ब्राrाण, राजपूत, अनुसूचित जाति और मुस्लिम वर्ग के मतदाता भी जातीय राजनीति में ठीकठाक हैसियत रखते हैं।
पुराने परिणाम दे सकते हैं तकलीफ
पाटलिपुत्र में इस बार भी मुख्य मुकाबले के दोनों प्रत्याशी पुराने हैं। पिछली बार राजद की मीसा भारती को शिकस्त देकर भाजपा के रामकृपाल यादव विजेता बने थे। वे ऐन चुनाव के मौके पर राजद छोड़कर भाजपा में आए थे। लालू प्रसाद की पुत्री को पराजित करने का पुरस्कार केंद्र में मंत्री के रूप में मिला। इस बार उसका नाज रखने की चुनौती है।
ग्रामीण आबादी पर रखना होगा ध्यान
इलाके का चुनावी समीकरण इस बार कुछ बदला हुआ है। 2014 में रामकृपाल को महज 40322 मतों के अंतर से जीत मिली थी, जबकि तीसरे नंबर पर रहे जदयू के रंजन प्रसाद यादव 97228 वोट झटक ले गए थे। जदयू इस बार एनडीए के साथ है, जिसका रामकृपाल को फायदा है। मीसा के फायदे के लिए एनडीए से महागठबंधन में आए उपेंद्र कुशवाहा आदि माने जा सकते हैं। पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र में ग्रामीण आबादी बहुतायत है। दानापुर, बिक्रम, मनेर, पालीगंज, मसौढ़ी व फुलवारी शरीफ विधानसभा क्षेत्र इसके अंतर्गत आते हैं। उन इलाकों में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा कराए गए कार्यो की बदौलत भाजपा उम्मीद पाले हुए है। पिछले चुनाव में थोड़े अंतर से चूक गई मीसा भारती भी एड़ी-चोटी का जोर लगाए हैं। उनके पक्ष में दोनों भाई (तेजप्रताप यादव और तेजस्वी) एकजुट हैं, जबकि कई मोर्चो पर वे अंदरखाने टकराते रहे हैं।
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