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मिसाल-बेमिसाल: इन बेटियों ने तोड़ा पुरुषों का वर्चस्व, शादी से श्राद्ध तक करा रहीं कर्मकांड

गायत्री शक्तिपीठ के तहत बिहार की राजधानी पटना में कुछ महिलाएं पूजा-पाठ व कर्मकांड करा रहीं हैं। इस पुरुष प्रधान काम में लगीं महिलाओं के संबंध में जानने के लिए पढ़ें यह खबर।

By Amit AlokEdited By: Published: Fri, 08 Mar 2019 02:48 PM (IST)Updated: Fri, 08 Mar 2019 10:52 PM (IST)
मिसाल-बेमिसाल: इन बेटियों ने तोड़ा पुरुषों का वर्चस्व, शादी से श्राद्ध तक करा रहीं कर्मकांड
मिसाल-बेमिसाल: इन बेटियों ने तोड़ा पुरुषों का वर्चस्व, शादी से श्राद्ध तक करा रहीं कर्मकांड
पटना [प्रभात रंजन]। संस्कृत के श्लोक का शुद्ध उच्चारण करती महिलाएं। हाथ में फूल और अक्षत लिए मंत्रोच्चार करते कुछ ऐसी महिलाओं की टोली इन दिनों पटना में कौतूहल जगाती हैं। ये महिलाएं न केवल घर का चौका-बर्तन करती हैं, बल्कि समाज के हर तबके के लोगों के घरों में पूजा-पाठ भी कराती हैं। वे यज्ञोपवित व विवाह से श्राद्ध तक सभी कर्मकांड कराती हैं। ये महिलाएं गायत्री शक्ति पीठ पटना से जुड़ी हैं।
पुरुष पंडितों का तोड़ा वर्चस्‍व
कल तक जहां कर्मकांड और पूजा-पाठ पर पुरुष-पंडितों का वर्चस्व था, वहीं आज इस मिथक को इन महिलाओं ने तोड़ दिया है। वे जाति से ब्राह्मण भी नहीं। उन्‍हें धाराप्रवाह संस्कृत श्लोक बोलते तथा पूरे विधि-विधान से पूजा-पाठ व अन्य कार्य कराते देख आश्चर्यचकित हो जाते हैं।
इन महिलाओं को जाति बंधन से मुक्त कराने के साथ सेवा भाव का गुण दिल में पैदा कराने में गायत्री शक्तिपीठ (शांतिकुंज हरिद्वार) के साथ गुडिय़ा अर्थात सरस्वती ऋतंभरा का भी योगदान है। सरस्वती ऋतंभरा अपनी जैसी कई महिलाओं को कर्मकांड की शिक्षा देकर समाज को एक नई दिशा देने में लगीं हैं।
सामाजिक ताने को दरकिनार आगे बढऩे का जज्बा
पुरुष वर्ग के दबदबे वाले पुरोहिताई में पटना की गुडिय़ा के लिए यह कार्य किसी चुनौती से कम नहीं था। सामाजिक तानों को दरकिनार कर पिता का हाथ थामे वे इस काम में आगे बढ़तीं रहीं।
ऐसे मिला सरस्वती ऋतंभरा का नया नाम
गुडिय़ा बताती हैं कि पिता सत्येंद्र नारायण राय के ब्राह्मण नहीं होने के बावजूद पूजा-पाठ में उनकी रूचि रही। पिता गायत्री शक्तिपीठ से जुड़ अध्यात्म के रास्ते पर चल पड़े। पिता के सानिध्य में शांतिकुंज हरिद्वार से जुडऩे का मौका मिला। वेदमूर्ति पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य और शक्ति स्वरूपा माता भगवती देवी से मिलने का सौभाग्य मिला। पंडित श्रीराम शर्मा ने मेरा नया नामाकरण सरस्वती ऋतंभरा किया।
पटना लौटकर शुरू किया काम
कुछ महीनों तक हरिद्वार में रहकर वेद-विज्ञान, अध्यात्म और कर्मकांड की शिक्षा प्राप्त कर पटना लौटीं, जहां महिलाओं और बेटियों को घर-घर जाकर उन्हें जागरूक करने के साथ कर्मकांड कार्य से जोड़तीं रहीं। इस कार्य के लिए भगवती महिला मंडल संगठन का निमार्ण किया गया।
ज्ञान के आधार पर होती पूजा
कर्मकांड की शिक्षा पर बात करते हुए भगवती महिला मंडल संगठन की संचालनकर्ता गुडिय़ा ने कहा बताया कि आज महिला मंडल संगठन में 100 से अधिक महिलाएं हैं जो कर्मकांड करती है। गायत्री शक्तिपीठ में ज्ञान के आधार पर पूजा होती है, न कि जाति और धर्म के आधार पर। गुरुदेव श्रीराम आचार्य कहा करते थे कि नर और नारी एक समान हैं। गुरुदेव की बातों पर पूरा गायत्रीपीठ अमल करता है। 
यहां कोई जाति बंधन नहीं
गुडिय़ा बताती हैं कि यहां किसी प्रकार का कोई जाति बंधन नहीं है। बेटियों और महिलाओं को कर्मकांड की शिक्षा प्राप्त करने के लिए शांतिकुंज हरिद्वार में रहकर एक महीने तक प्रशिक्षण लेना होता है। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें युग शिल्पी सत्र के तहत गायन, वादन, कर्मकांड, प्रवचन, वेद-पुराण, यज्ञ संस्कार के साथ कई प्रकार के संस्कार के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद बेटियां जाति बंधन से उपर उठकर घरों में जाकर पूजा पाठ कराती हैं।
सेवा भाव से करतीं काम
पूजा-पाठ व कर्मकांड का कार्य करने वाली बेटियां हर काम सेवा भाव से करती है। इसके लिए उन्हें किसी प्रकार का पैसा नहीं मिलता।  शादी-विवाह व अन्य कार्यो के लिए लोगों को गायत्री शक्ति पीठ में आकर रजिस्ट्रेशन कराना होता है, जिसके लिए कोई फीस नहीं है। इसके बाद शादी-विवाह या अन्य कार्य करने के लिए महिला पंडित उनके घर जाकर पूजा पाठ कराती हैं। इसके एवज में यजमान से जो भी पैसा मिलता है, वह गायत्री शक्तिपीठ ट्रस्ट को जाता है।
यहां दिन में होतीं शादियां
यहां शादियां दिन में होती हैं, क्योंकि रात में होने वाली शादियों की मान्यता नहीं है। महिला मंडल संगठन की गुडिय़ा ने कहा कि अब तक सौ से अधिक शादियां व अन्य धार्मिक कार्य यहां की बेटियों ने संपन्न कराया है।

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