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BiharEnvironmentalNews: बिहार के इस गांव में एक दशक पूर्व थे आठ से 10 पेड़, ग्रामीणों ने 3 सालों में लगाए आठ हज़ार पौधे

बिहार के गोपालगंज जिले के बरवा कपरपूरा गांव में एक दशक पूर्व बचे थे केवल आठ से दस पेड़। तीन साल में लगाए 8 हजार पौधे पदाधिकारियों का भी भरपूर सहयोग मिला। पढ़ें पूरी खबर।

By Bihar News NetworkEdited By: Published: Thu, 10 Sep 2020 12:24 PM (IST)Updated: Fri, 11 Sep 2020 09:59 AM (IST)
BiharEnvironmentalNews: बिहार के इस गांव में एक दशक पूर्व थे आठ से 10 पेड़, ग्रामीणों ने 3 सालों में लगाए आठ हज़ार पौधे
BiharEnvironmentalNews: बिहार के इस गांव में एक दशक पूर्व थे आठ से 10 पेड़, ग्रामीणों ने 3 सालों में लगाए आठ हज़ार पौधे

गोपालगंज, जेएनएन : यह कहानी उस गांव की है कभी जहां मुश्किल से पेड़ पौधे नजर आते थे। दशकों पहले हरा भरा रहने वाले इस गांव में एक-एक कर पेड़ कटते चले गए, खेत खलिहान हो या घर के सड़क किनारे की खाली जमीन। गर्मी में तपती जमीन और गर्म हवाओं के साथ उड़ी धूल ही इस गांव की पहचान बनती चली गई। हम बात कर  रहे हैं बिहार के गोपालगंज जिले के बरवा कपरपूरा गांव की। कभी हरा भरा रहने वाले इस गांव की इस दशा से इस गांव के ग्रामीण चिंतित थे। लेकिन पहल कौन करे। इसी बीच इस गांव के निवासी रामविष्णु प्रसाद तथा दिलीप कुमार श्रीवास्तव ने अपने गांव में फिर से हरियाली लगाने की पहल की। देखते ही देखते इस अभियान से ग्रामीण जुड़ते चले गए। 

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ग्रामीणों ने अपने दम पर अपने गांव में आठ हजार से अधिक पौधे लगाए

तीन साल में ग्रामीणों ने अपने दम पर अपने गांव में आठ हजार से अधिक पौधे लगा दिए। अब यहां हर तरफ हरे भरे वृक्ष नजर आते हैं। इस गांव की हरियाली अब आसपास के गांवों के लोगों को भी लुभा रही है। ग्रामीणों की इस पहल से बरवा कपरपुरा गांव की अब आबोहवा बदल गई है। सड़क किनारे लगे पेड़ों की छाया में ठंडी हवा के बीच इस गांव की सड़क से होकर लोग गुजरते हैं। ग्रामीणों का पौधा लगाने का अभियान अब भी जारी है। ग्रामीण हर साल कम से कम एक हजार पौधे लगाने के अपने लक्ष्य को मूर्त रूप देने में अब भी जुटे हुए हैं।

कभी अपनी हरियाली के लिए जाना जाता था बरवा कपरपूरा गांव, बाद में खेत खलिहान मिला कर आठ दस पेड़ ही बचे थे 

हथुआ प्रखंड का बरवा कपरपुरा गांव इस प्रखंड के मुख्य गांवों में से एक है। यह गांव कभी अपनी हरियाली के लिए जाना जाता था। लेकिन एक दशक पूर्व धीरे-धीरे एक-एक कर पेड़ कटते चले गए। कभी सड़क बनाने के लिए पेड़ काट दिए गए तो कभी नाली निर्माण की भेंट पेड़ चढ़ते चले गए। गांव की आबादी बढ़ने के साथ ही पक्के घरों की संख्या भी बढ़ने लगी। गांव से सटे खेतों का रकबा भी गांव से जुड़ता चला गया। ग्रामीण बताते हैं कि स्थित ऐसी हो गई कि इस गांव में खेत खलिहान मिला कर आठ दस पेड़ ही बच गए। ऐसी स्थिति से ग्रामीण काफी चिंतित थे। वे अपने गांव की हरियाली लौटाने के लिए कुछ करना चाहते थे।

साल 2016 में दो ग्रामीणों ने वृक्षारोपण की पहल की, हर साल एक हजार पौधे लगाने का लिया गया संकल्प

इसी दौरान मनरेगा के तहत पौध रोपण का अभियान शुरू हुआ। लेकिन इस अभियान के तहत लगाए गए पौधे देखरेख के अभाव में मुरझा गए। तभी साल 2016 में चित्रगुप्त सेवा समिति के रामविष्णु गुप्ता तथा दिलीप सिंह ने वृक्षारोपण की पहल की। उन्होंने ग्रामीणों की बैठक बुलाई। बैठक में ग्रामीणों ने यह संकल्प लिया गया वे अब न तो पेड़ काटेंगे और ना ही किसी को काटने देंगे। इसके साथ ही हर साल एक हजार पौधे लगाने का संकल्प भी लिया गया। इसी के साथ इस गांव में वृक्षारोपण करने का अभियान शुरू हो गया।

तीन साल में तीन हजार पौधे की जगह लगा दिए आठ हजार से अधिक पौधे,  पदाधिकारियों का भी मिला पूरा सहयोग

 ग्रामीणों में अपने गांव की हरियाली लौटाने की ललक इतनी थी कि तीन साल में तीन हजार पौधे की जगह आठ हजार से अधिक पौधे लगा दिए गए। अब इस गांव में सड़क किनारे से लेकर खेत खलिहान हर तरफ हरियाली दिखती है। इस गांव की आबोहवा अब पूरी तरह से बदल गई है। इस अभियान की पहल करने वाले रामविष्णु प्रसाद बताते हैं कि वृक्षरोपण अभियान को पदाधिकारियों का भी पूरा सहयोग मिला। एसडीओ से लेकर प्रखंड व अनुमंडल स्तर के कई पदाधिकारियों ने इस अभियान में शामिल होकर पौधे लगाए। वे बताते हैं कि अभी भी यह अभियान जारी है। हर साल एक हजार पौधे लगाए जाएंगे।


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