कोरोना की पड़ी ऐसी मार कि सवा लाख हो गए बेरोजगार, घूम ही नहीं रहा पटना के इस बड़े सेक्टर का पहिया
राजधानी के एक बड़े सेक्टर की स्थिति पूर्ववत है। यह कोचिंग सेंटरों से जुड़ा है। इससे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़े करीब 1.25 लाख लोगों की दुश्वारियां कम नहीं हो रही है। सरकार से फिलहाल कोचिंग सेंटरों को खोलने की इजाजत नहीं मिली है।
जयशंकर बिहारी, पटना। लॉकडाउन और कोविड-19 के प्रभाव से कई सेक्टर धीरे-धीरे उबर रहे हैं। रोजगार का पहिया भी पहिया भी आहिस्ता-आहिस्ता घूमने लगा है, लेकिन राजधानी के एक बड़े सेक्टर की स्थिति पूर्ववत है। यह कोचिंग सेंटरों से जुड़ा है। इससे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़े करीब 1.25 लाख लोगों की दुश्वारियां कम नहीं हो रही है। कोरोना संक्रमण की संभावना को देखते हुए सरकार से फिलहाल कोचिंग सेंटरों को खोलने की इजाजत नहीं मिली है।
निजी कोचिंग का कारोबार लगभग 1500 करोड़ रुपये सालाना
बिहार की शिक्षा-व्यवस्था पर कार्य करने वाले आइआइटी मुंबई के पूर्ववर्ती छात्र मनीष शंकर का कहना है कि स्वतंत्र एजेंसियों के अनुसार पटना में निजी कोचिंग का कारोबार लगभग 1500 करोड़ रुपये सालाना का है। इसमें बड़े कोचिंग सेंटरों की हिस्सेदारी सिर्फ 30 फीसद की है। 70 फीसद कारोबार छोटे और मंझोले कोचिंग सेंटरों की है। अक्टूबर में कराए गए सर्वे के आधार पर लगभग 80 फीसद छोटे और 70 फीसद मंझोले कोचिंग सेंटर दोबारा खुलने की स्थिति में नहीं हैं। बड़े कोचिंग सेंटर 80 फीसद शिक्षक और कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा चुके हैं या उनकी सैलरी एक-तिहाई से भी कम कर दी है। छोटे व मंझोले सेंटरों के शिक्षक व कर्मचारियों की स्थिति ज्यादा दयनीय है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पटना में कोचिंग सेंटर का कारोबार 300 करोड़ का है। इतनी राशि पर सरकार को जीएसटी मिलता है।
पूंजी खत्म कर दिन सुधरने का कर रहे इंतजार
कोचिंग एसोसिएशन ऑफ बिहार के संस्थापक सदस्य सुधीर कुमार सिंह का कहना है कि पिछले नौ माह से सेंटरों में ताला लटका है। शिक्षक, कर्मचारी, मकान मालिक, सफाईकर्मी आदि सभी दिन बेहतर होने के इंतजार में हैं। पिछली जमापंूजी खत्म हो चुकी है। राजधानी के कोचिंग सेंटर फिलहाल कोमा में हैं। सरकार ने जल्द सुध नहीं ली तो स्थिति और बदतर होगी। उत्तरप्रदेश सहित कई राज्यों में कोचिंग खोलने का आदेश जारी हो चुका है।
प्रमुख दुश्वारियां
-मकान का किराया
-मासिक बिजली रेंट
-स्टाफ की मासिक सैलरी
-ऑनलाइन कक्षा के लिए संसाधन का अभाव
-ऑनलाइन कक्षा में बच्चों का अपेक्षित रुझान का अभाव
-सभी छात्रों के पास लैपटॉप, स्मार्ट फोन आदि का नहीं होना
-इंटरनेट का स्पीड कमजोर होना
-लोन की किस्त समय पर नहीं दे पाना
-अनुभवी लोगों का दूसरे प्रोफेशन में पलायन
स्कूल खुल सकते हैं तो कोचिंग क्यों नहीं
सामाजिक कार्यकर्ता सह नेशनल यूथ अवार्डी विरेंद्र शर्मा का कहना है कि जेईई, नीट, क्लैट, यूपीएससी जैसी परीक्षाओं में सफलता स्कूलों व कॉलेजों में पढ़ाई के भरोसे फिलहाल संभव नहीं है। इसके लिए 99 फीसद बच्चे कोचिंग सेंटरों की ओर रुख करते हैं। कुछ शिक्षण संस्थान अपवाद हो सकते हैं। सरकार एक ही बच्चे के लिए दो नियम पर काम कर रही है। जब सरकारी स्कूल-कॉलेजों में कक्षाएं कोविड गाइडलाइन का पालन करते हुए हो सकती है तो कोचिंग सेंटरों में क्यों नहीं? यह बच्चों के भविष्य से जुड़ा मसला है।
दूसरे प्रदेशों में छात्र करेंगे पलायन
दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व फैकल्टी प्रो. एमपी शर्मा का कहना है कि विकल्प के अभाव में पलायन होता है। बिहार के बच्चे बड़ी संख्या में नामचीन शिक्षण संस्थानों की प्रवेश परीक्षा व प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होते हैं। पटना में शिक्षण संस्थानों को चरणवद्ध तरीके से नहीं प्रारंभ किया गया तो कोटा, दिल्ली, हैदराबाद, चेन्नई जैसे कोचिंग हब वाले शहरों में पलायन बढ़ेगा।