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Mahashivratri 2021: वैशाली में है देश का इकलौता तीन मुखी शिवलिंग, ब्रम्हा, विष्णु व सूर्यदेव दे रहे दर्शन

वैशाली जिले में देश का इकलौता चक्रकार शिवलिंग है। यह अनोखा शिवलिंग वैशाली में समुद्र तल से 52 फीट की ऊंचाई पर 26.12 डिग्री अक्षांश एवं 85.4 डिग्री पूर्व देशांतर पर झारखंड के देवघर स्थित बाबा वैद्यनाथ और उत्तर प्रदेश के वाराणसी में काशी विश्वनाथ के मध्य स्थित है।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Thu, 11 Mar 2021 11:34 AM (IST)Updated: Thu, 11 Mar 2021 03:51 PM (IST)
Mahashivratri 2021: वैशाली में है देश का इकलौता तीन मुखी शिवलिंग, ब्रम्हा, विष्णु व सूर्यदेव दे रहे दर्शन
चौमुखी महादेव मंदिर में स्थापित दुर्लभ शिवलिंग। जागरण

रवि शंकर शुक्ला, हाजीपुर: देश में द्वादश ज्योतिर्लिंग की महत्ता से इतर वैशाली जिले में देश का इकलौता चक्रकार शिवलिंग है। यह अनोखा शिवलिंग वैशाली में समुद्र तल से 52 फीट की ऊंचाई पर 26.12 डिग्री अक्षांश एवं 85.4 डिग्री पूर्व देशांतर पर झारखंड के देवघर स्थित बाबा वैद्यनाथ और उत्तर प्रदेश के वाराणसी में काशी विश्वनाथ के मध्य स्थित है। शिवलिंग में शंकर भगवान के साथ ही तीन मुख में ब्रम्हा, विष्णु एवं सूर्यदेव की आकृति है। महाशिवरात्रि पर यहां हजारों लोग जलाभिषेक को उमड़ते हैं। 

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ऐसी मान्यता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जब अपने गुरु विश्वामित्र एवं अनुज लक्ष्मण के साथ जनकपुर जा रहे थे तो आतिथ्य स्वीकार करते हुए यहां ठहरे थे। चौमुखी महादेव की पूजा-अर्चना कर आगे प्रस्थान किया था। एक अन्य किवदंती यह भी है कि इसकी स्थापना द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के समय वाणासुर ने कराई थी।

दुर्लभ है चतुर्मुख शिवलिंग 

वैशाली के कम्मन छपरा में स्थित चतुर्मुख शिवलिंग दुर्लभ है। धरातल से चक्रकार आधार की ऊंचाई करीब 5 फीट है। इसमें सात महल विराजमान है। दक्षिण की ओर शिवलिंग के मुख में त्रिनेत्रधारी भगवान शिव एवं अन्य तीन दिशाओं में भगवान ब्रह्मा, विष्णु एवं सूर्यदेव हैं। सात महल वाले शिवलिंग में एक-दूसरे महल के बीच 30 सेमी की दूरी है। इस बीच में कुछ लिखा है। इस लिपी को आज तक पढ़ा नहीं जा सका है। 

कुएं की खोदाई में निकला दुर्लभ शिवलिंग

करीब 120 वर्ष पूर्व वैशाली के कम्मन छपरा में कुएं की खोदाई में इस दुर्लभ शिवलिंग का पता चला। ग्रामीणों ने तुरंत खोदाई बंद कर दी। कई वर्षों तक यह स्थल उपेक्षित रहा। बाद के दिनों में ग्रामीण घर में कोई भी शुभ कार्य करने के पूर्व यहां मिट्टी के पांच ढेले रख आते थे। मंदिर का स्वरूप लेने के बाद यह जगह ढेलफोरवा महादेव मंदिर के रूप में प्रचलित हुई। 1974 में पहली बार स्थानीय श्रद्धालुओं ने पवित्र नारायणी के रेवा घाट (मुजफ्फरपुर) से कांवर में जल भरकर यहां जलाभिषेक शुरू किया। 

जर्नल में दुर्लभ शिवलिंग का उल्लेख

जर्नल ऑफ रॉयल एशियाटिक सोसायटी आफ बंगाल में एक लेख में इसका वर्णन है। 1945 में जब पुरातत्व विभाग ने इस स्थल पर खोदाई की तो यहां एक सोने का सिक्का मिला जो चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के समय का था। दोबारा 1975 में खोदाई की गई। 2013 तक नाम चौमुखी महादेव था। बाद में प्रबंधन ने विक्रमादित्य शब्द जोड़ दिया। निर्माण के दौरान शिवलिंग के अधिकांश भाग को जमींदोज कर दिया गया है। मात्र दो चक्र ही बाहर हैं। 

काले पत्थर का चौमुखी शिवलिंग

काले पत्थर के अनोखे शिवलिंग के मिलने के बाद मूर्ति विशेषज्ञों का इस ओर ध्यान आकृष्ट हुआ। शोध में यह संभावना जताई गई कि इस शिवलिंग का निर्माण ब्रह्मांड की जानकारी देने वाले विज्ञान कास्मोलॉजी के नियमों के अनुसार सप्त भवन सहित पाताल, पृथ्वी एवं स्वर्ग तत्वों को आधार मानकर किया गया गया था। 

ऐसे बना भव्य मंदिर 

जनसहयोग से यहां भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया है। स्थानीय अभियंता दिनेश सिंह ने हस्तकमल सहित 125 फीट ऊंचे मंदिर का नक्शा बनाया। मंदिर के गर्भगृह में जाने के लिए 22 सीढ़ी हैं। मंदिर का निर्माण कार्य 2000 में प्रारंभ किया गया था। 


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