Bihar Assembly Election 2020: मांझी के नये पैंतरे से बिहार की सियासत में हलचल, एनडीए को राहत तो महागठबंधन में आफत
बिहार की सियासत में अचानक से जीतन राम मांझी फिर सुर्खियों में आ गए हैं। मांझी के पैंतरे से अपने और पराये दोनों हैरत में हैं। लेकिन उनके इस कदम से एनडीए को राहत है। खबर में जानें।
पटना, अरुण अशेष। हिंदुस्तानी आवाम माेर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का मुक्त चिंतन उनके अपने और पराये-दोनों को हैरत में डाल रहा है। एनडीए विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गया है। इधर एनडीए को पराजित करने के लिए मैदान में उतरने से पहले महागठबंधन के दल एक-दूसरे को किनारे करने में लग गए हैं। मांझी की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। वे एक ही समय में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तारीफ कर रहे हैं। भाजपा पर हमलावर हैं। राजद को धमकी दे रहे हैं। बीते पांच साल में उनका राजनीतिक स्टैंड कई बार बदला है। लिहाजा, तय नहीं हो पा रहा है कि विधानसभा चुनाव में मांझी की नाव किस घाट लगेगी।
खामोश हैं उपेंद्र कुशवाहा
मांझी सहज हैं। सपाट बोलते हैं। सच कहें तो वे महागठबंधन के गैर-राजद दलों की छटपटाहट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। बाकी दलों को राजद से मोलभाव करने में संकोच होता है। सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस की राज्य इकाई सीधे हाथ खींच लेती है कि फैसला केंद्रीय नेतृत्व करेगा। विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी भी स्थिर नहीं हैं। उधर, रालोसपा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा खामोश रह कर इस उठापटक में अपनी बेहतर संभावना देख रहे हैं। सबके दिल की इच्छा जाहिर करने का जिम्मा मांझी पर आ गया है।
राजद से अलग मोर्चा बनाने की थ्योरी
इस बीच यह थ्योरी भी आ रही है कि क्यों नहीं राजद से अलग नया मोर्चा बना लिया जाए। इसमें कांग्रेस, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा, रालोसपा, वीआइपी, भाकपा, माकपा और भाकपा माले शामिल रहे। आकलन यह है कि कांग्रेस के रहने के चलते मुस्लिम वोट आसानी से मोर्चा से जुड़ जाएगा। सवर्ण भी आक्रामक नहीं रहेंगे। दूसरा यह कि एनडीए को पराजित करने की इच्छा रखने वाला अप्रतिबद्ध वोटर इस मोर्चे से मुखातिब होगा। मोर्चा इस गणित से खुश है। इसमें वह राजद के उन प्रतिबद्ध वोटरों के एक हिस्से की भी भागीदारी देखता है, जिनके लिए तेजस्वी यादव की ताजपोशी महत्वपूर्ण है, मगर उससे कम महत्वपूर्ण एनडीए को परास्त करने का लक्ष्य भी नहीं है।
तो नीतीश के करीब पाते हैं
फिलहाल, मांझी के रूख से बाकी दल महागठबंधन के दलों की अंदरूनी स्थिति का हाल जानने की कोशिश कर रहे हैं। लोजपा और जदयू के बीच तकरार की छिटपुट खबरें मांझी में जोश पैदा कर देती हैं। इन खबरों को पढऩे के दौरान वे खुद को एनडीए और खासकर नीतीश कुमार के करीब पाते हैं।
तेजस्वी बनाम उपेंद्र कुशवाहा
महागठबंधन की अंदरूनी लड़ाई में सीन भले ही उपेंद्र कुशवाहा ओझल चल रहे हों, मगर वे इसके केंद्र में हैं। पिछड़ा वर्ग से आते हैं। छवि साफ है। विपक्ष का नेता रह चुके हैं। मन ही मन मुख्यमंत्री पद के आधिकारिक दावेदार भी हैं। राजद छोड़कर किसी दल को उनके नाम पर एतराज भी नहीं है। रणनीति यह बन रही है कि नेतृत्व का सवाल उठे तो कुशवाहा का नाम आगे कर दिया जाए। राजद भी इन दलों की मंशा से अपरिचित नहीं है। वह सतर्क भाव से घटनाओं को देख रहा है।