मिथिला का इतिहास तैयार करने की जताई जरूरत
मिथिला में वस्तुनिष्ठ इतिहास की कमी है और इसके लिए भौगोलिक क्षेत्र को ध्यान में रखकर इतिहास तैयार होना चाहिए
पटना। मिथिला में वस्तुनिष्ठ इतिहास की कमी है और इसके लिए भौगोलिक क्षेत्र को ध्यान में रखकर इतिहास तैयार करने की जरूरत है। उक्त बातें पद्मश्री उषा किरण खान ने कहीं। मौका था मैथिली साहित्य संस्थान द्वारा पटना म्यूजियम के सभागार में आयोजित मैथिली दिवस का। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर डॉ. यादव ने कहा कि दुनिया का कोई भी भूभाग बिना विज्ञान और तकनीक का सहारा लिए समुन्नत नहीं हुआ है। आइआइटी पटना के प्रोफेसर डॉ. मानवेंद्र पाठक ने पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से मिथिला के क्षेत्र में विज्ञान एवं तकनीक का उपयोग कर विकास की संभावनाओं पर विस्तार से जानकारी दी। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर जयंत कुमार जो एसपीए भोपाल में अध्ययनरत हैं, ने मिथिलक्षर लिपि का कंप्यूटर के माध्यम से उपयोग करने के लिए आवश्यक संभावनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी। चेतना समिति के अध्यक्ष विवेकानंद झा ने कहा कि मिथिला की ऐसी अनेक समस्याएं हैं, जिनका बिना विज्ञान और तकनीक के सहयोग के समाधान नहीं हो सकता। उन्होंने आध्रप्रदेश के मछली उत्पादन का उदाहरण दिया। सेवानिवृत्त आइएएस गजानंद मिश्रा ने विज्ञान एवं तकनीक की उपयोगिता के जोखिम पर भी बल दिया। दीनदयाल उपाध्याय महाविद्यालय, दिल्ली के प्रोफेसर डॉक्टर राधा माधव भारद्वाज मिथिला ने सरबरू शर्मण द्वारा न्याय के क्षेत्र में किए गए योगदान का विशेष रूप से उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि भारत की न्याय व्यवस्था में मिथिला के पंडितों का विशिष्ट योगदान रहा है। आगत अतिथियों का स्वागत संस्थान के सचिव भैरव लाल दास ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. शिव कुमार मिश्र ने किया। इस अवसर पर पुरातत्वविद तारानंद मिश्र के निधन पर मौन रहकर श्रद्धाजलि दी गई। कार्यक्रम में लेख नाथ मिश, पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश अमरेश कुमार लाल, बासुकीनाथ झा, गंगेश गुंजन,उमेश मिश्र, कथाकार अशोक, बिणा कर्ण, रामानंद झा रमण, रघुवीर मोची, विनय कारण, रामसेवक राय, देवेंद्र पाठक आदि उपस्थित थे।