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Bihar Politics: राजनीति के चश्मे से देखो तो बदली-बदली सी है सियासी तस्वीर

तेजस्वी ने आते ही चिराग की तरफ पासा फेंका कि चिराग भाई तुम्हारे लिए दरवाजा खुला है। हर नकारात्मक चीज का ठीकरा नीतीश पर फोड़ने वाले तेजस्वी ने लोजपा में हुई टूट के लिए भी उन्हें ही जिम्मेदार ठहराया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 26 Jun 2021 09:54 AM (IST)Updated: Sat, 26 Jun 2021 09:59 AM (IST)
Bihar Politics: राजनीति के चश्मे से देखो तो बदली-बदली सी है सियासी तस्वीर
दिल्ली से लौटने के बाद पार्टी पदाधिकारियों के साथ भावी रणनीति बनाते तेजस्वी यादव। जागरण

पटना, आलोक मिश्र। राजनीति के चश्मे से देखो तो सामान्य हालात भी बदले नजर आते हैं। आजकल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आंख विरोधियों के लिए चर्चा का विषय है। आंख का इलाज कराने वह दिल्ली क्या गए, तरह-तरह की चर्चाओं को हवा दे गए। कोई इसे मंत्रिमंडल विस्तार से जोड़कर देख रहा है तो कोई भाजपा को आंख दिखाना बता रहा है। कोई मोदी विरोधियों की जुटान का हिस्सा समझ बयान जारी कर रहा है। दिल्ली में आपरेशन हो गया है और वह स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं, लेकिन राजनीतिक चश्मे वाले लोग अभी भी अलग तस्वीर देखने को टकटकी लगाए हैं।

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दिल्ली में मंत्रिमंडल विस्तार की हवा बन रही है। दो साल पहले जब मोदी सरकार बनी थी तो साथ में रहने के बाद भी एक कुर्सी मिलने के कारण जदयू मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुआ था। अब बिहार में चुनाव जीतने के बाद जब कम सीटें पाकर भी नीतीश मुख्यमंत्री बने हैं तो सरकार में शामिल होने की बात उठने लगी। बात उठाई जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामचंद्र प्रसाद सिंह ने। दावा कम से कम दो पद का है। इस दावेदारी को लेकर भी तमाम अटकलें लग रही हैं। चूंकि इधर भाजपा और जदयू के रिश्ते भी ऊपरी तौर पर ही मधुर दिख रहे हैं। इसलिए विरोधी साथ टूटने को हवा दे रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल में जदयू के शामिल होने से ऐसी अटकलों पर विराम लग जाएगा। इसलिए ही जदयू अध्यक्ष ने दो बार सार्वजनिक तौर पर इसका दावा किया है। ऐसे में जब अपनी आंख का इलाज कराने मंगलवार को नीतीश दिल्ली निकले तो इस बात को हवा मिली कि आंख तो बहाना है, असली मकसद तो मोदी से मुलाकात है। हालांकि लोकसभा में जदयू संसदीय दल के नेता ललन सिंह ने स्पष्ट भी किया कि नीतीश मोदी से मिलने नहीं, इलाज कराने जा रहे हैं। लेकिन कोई मानने को तैयार नहीं। रामचंद्र बाबू का बयान उन पर भारी पड़ा। आखिर में जाते समय नीतीश को स्पष्ट करना पड़ा कि वे इलाज ही कराने जा रहे हैं। लेकिन राजनीति में मेल-मुलाकात तो होती ही है, कहकर वह भी अर्धविराम की मुद्रा में ही सबको छोड़ गए। अब गुरुवार को उनका आपरेशन हो गया है और दिल्ली में उनकी अभी तक कोई गतिविधि इसके अलावा नहीं है, फिर भी सबकी निगाहें उन्हीं पर टिकी हैं।

इधर चाचा से दांव खाए चिराग पासवान अब भाजपा से भी दुखी नजर आ रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश का विरोध करने और खुद को मोदी का हनुमान साबित करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। विरोध के बावजूद न तो नीतीश की कुर्सी ही वह छीन पाए और न ही अपना आधार बना पाए। उन्हें विश्वास था कि भाजपा उनके साथ खड़ी रहेगी। इधर चाचा पशुपति कुमार पारस ने छह में से पांच सांसदों के बल पर संसदीय दल के नेता पद से उन्हें बेदखल करके पार्टी पर भी दावा कर दिया तो चिराग की नींद टूटी। संसदीय दल के नेता पद हाथ से जाने के बाद पार्टी बचाए रखने के लिए चुनाव आयोग तक उन्होंने दौड़ लगा दी। पारस, भाई रामविलास पासवान के निधन के बाद रिक्त हुए लोजपा के कोटे के मंत्री पद पर भी दावा करने लगे। अब चिराग को लगने लगा है कि कहीं चाचा मंत्री न बन जाएं। इसलिए अब उनका भरोसा भाजपा से टूटने लगा है। वह चुनाव के समय की याद दिलाने लगे हैं। लेकिन शायद भूल रहे हैं कि राजनीति में साथ ताकत के बूते चलता है। अब चिराग जनता के बीच जाकर अपने वोटों को बचाने की कवायद करने वाले हैं।

दो महीने से दिल्ली में डटे तेजस्वी यादव बुधवार को पटना आ गए। आते ही उन्होंने चिराग पासवान की तरफ पासा फेंका कि चिराग भाई तुम्हारे लिए दरवाजा खुला है। हर नकारात्मक चीज का ठीकरा नीतीश पर फोड़ने वाले तेजस्वी ने लोजपा में हुई टूट के लिए भी उन्हें ही जिम्मेदार ठहराया और चिराग को पुराने दिनों की याद दिला राजद को सच्चा हितैषी बताया। बताया कि 2010 में एक भी सीट न जीतने के बाद भी उनके पिता को राज्यसभा भेजा था। समय-समय पर गायब हो जाने वाले तेजस्वी यादव के दो माह बाद प्रकट होने पर जब जिज्ञासा व्यक्त की गई तो पिता की सेवा का हवाला दे विरोधी स्वरों को वे शांत कर गए। हालांकि उनका जवाब कितना शांत कर सका, यह सवाल करने वाले चेहरों से पता नहीं चल सका। हां, यह संदेश जरूर पता चला कि फिलहाल लालू की तबीयत ठीक है और वह जल्दी पटना आने वाले हैं।

[स्थानीय संपादक, बिहार]


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