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तेजस्वी यादव ने भी कांग्रेस को नहीं दिया भाव, राहुल गांधी से ज्यादा दिखाया ममता बनर्जी से लगाव

तेजस्वी यादव ने पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में बिना शर्त तृणमूल के साथ चुनाव में जाने की घोषणा कर दी जिसके बाद बिहार के बाहर राजद के साथ कांग्रेस एवं वाम दलों के गठबंधन की लालसा धरी की धरी रह गई।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Mon, 01 Mar 2021 09:13 PM (IST)Updated: Tue, 02 Mar 2021 10:41 AM (IST)
तेजस्वी यादव ने भी कांग्रेस को नहीं दिया भाव, राहुल गांधी से ज्यादा दिखाया ममता बनर्जी से लगाव
तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी और राहुल गांधी। जागरण आर्काइव।

अरविंद शर्मा, पटना। राजद नेता तेजस्वी यादव के सामने पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में सियासी दोस्ती के दो विकल्प थे, ममता बनर्जी और राहुल गांधी। इन्हीं दोनों में से एक को चुनना था। उन्होंने राहुल गांधी में दिलचस्पी नहीं ली। दो दिनों से कोलकाता में बैठकर ममता से मुलाकात का इंतजार करते रहे। आखिरकार सोमवार को मिलने की घड़ी आई। किंतु दोनों शीर्ष नेताओं में तालमेल या सीटों की लेन-देन पर बातें नहीं हुईं। तेजस्वी ने बिना शर्त तृणमूल के साथ चुनाव में जाने की घोषणा कर दी, जिसके बाद बिहार के बाहर राजद के साथ कांग्रेस एवं वाम दलों के गठबंधन की लालसा धरी की धरी रह गई। 

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सीटें नहीं हैं प्राथमिकता

राजद और तृणमूल के शीर्ष नेताओं की मुलाकात के बाद मीडिया के सामने भाजपा के खिलाफ बिहार से लेकर बंगाल तक जंग जारी रखने का दावा तो किया गया पर यह नहीं बताया गया कि तालमेल का आधार क्या होगा और राजद को कितनी सीटें मिलेंगी। तेजस्वी यादव के साथ कोलकाता में जमे राजद के राष्ट्रीय महासचिव श्याम रजक ने दावा किया कि उनकी प्राथमिकता में सीटें नहीं हैं। हम पश्चिम बंगाल में भाजपा को हराने-भगाने के लिए एक हुए हैैं। तृणमूल के साथ राजद की कोई शर्त नहीं है। बिना शर्त साथ आए हैैं। 

बिहार कांग्रेस में हैरानी

तेजस्वी के इस रवैये से बिहार कांग्रेस में हैरानी है। कोई कुछ खुलकर बोलने के लिए तैयार नहीं है, किंतु कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता अजीत शर्मा ने इतना जरूर कहा कि तेजस्वी पटना लौटेंगे तो उनसे पूछा जाएगा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया। 

पश्चिम बंगाल में भी इंतजार

बहरहाल, बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और वामदलों के साथ गठबंधन करके राजद को नंबर वन पार्टी बनाने वाले तेजस्वी का पश्चिम बंगाल में भी इंतजार किया जा रहा था। वाम दलों का मोर्चा बेकरार था। कुछ सीटों का भी ऑफर किया जा रहा था। फिर भी तेजस्वी ने उन्हें भाव नहीं दिया। तृणमूल को ही गले लगाना मुफीद माना। ऐसा क्यों किया? इसका संकेत वह पहले से ही दे रहे थे। ममता बनर्जी से लालू परिवार का करीबी रिश्ता रहा है। कई मामलों में दोनों साथ खड़े नजर आए हैैं। यही कारण है कि तेजस्वी ने पिछले दो सप्ताह से अपने दो वरिष्ठ नेताओं अब्दुल बारी सिद्दीकी और श्याम रजक को तृणमूल को मनाने के काम में लगा रखा था। दोनों ने ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी से मुलाकात करके बंगाल में राजद की संभावनाओं वाली छह सीटों की सूची भी सौंपी थी। बावजूद कोई जवाब नहीं आया तो तेजस्वी ने खुद पहल करके ममता से मुलाकात की और बिना शर्त समर्थन की पेशकश की। 


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