Surya Grahan Timing in Bihar: साल का पहला सूर्य ग्रहण पूर्ण, जानिए इसकी धार्मिक कहानी व बिहार में सूतक का प्रभाव
Surya Grahan 2021 Timing in Bihar साल 2021 का पहला सूर्य ग्रहण गुरुवार को लगा। सूर्य ग्रहण के वैज्ञानिक कारणों से इतर इससे जुड़ी देव-दानवों व भगवान विष्णु की एक धार्मिक कहानी भी है। ग्रहण के सूतक काल का भी अपना महत्व होता है। आइए जानें।
पटना, ऑनलाइन डेस्क। Surya Grahan 2021 Timing in Bihar साल 2021 का पहला सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse June 2021) गुरुवार को अपराह्न 01:42 बजे शुरू होकर शाम 06:41 बजे तक रहा। विज्ञान के अनुसार चंद्रमा (Moon) के पृथ्वी (Earth) व सूर्य (Sun) के बीच से गुजरने के दौरान सूर्य ग्रहण (Surya Grahan) लगता है। सूर्य व पृथ्वी के बीच चंद्रमा के आ जाने के कारण कुछ समय के लिए चंद्रमा के पीछे सूर्य का बिम्ब ढ़कता है। इस खगोलीय घटना को ही सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse) कहते हैं। सूर्य ग्रहण से जुड़ी धार्मिक मान्यता भी है। इसके अनुसार जब राहु (Rahu) व केतु (Ketu) सूर्य को खाने या निगलने की असफल कोशिश करते हैं, जब उस दौरान सूर्य ग्रहण लगता है। गुरुवार के सूर्यग्रहण का सूतक काम मान्य नहीं है। इस कारण गुरुवार को शनि जयंती व वट सावित्री पूजा भी हुई।
समुद्र मंथन और भगवान विष्णु से जुड़ी है कहानी
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रहण अशुभ होता है। इस दौरान सूर्य (Sun) पीड़ित हो जाता है। सूर्य ग्रहण से जुड़ी धार्मिक कथा (Religious Story) के अनुसार इस दौरान राहु (Rahu) और केतु (Ketu) सूर्य को पकड़ लेते हैं। इसके पीछे समुद्र मंथन और भगवान विष्णु द्वारा देवताओं को अमृतपान कराने से जुड़ी कहानी है।
भगवान ने अमृत पीने वाले दानव का सिर काटा
धार्मिक मान्यता के अनुसार जब देवों व दानवों मंधन के समुद्र मंथन से अमृत निकला तो दोनों के बीच अमृत पीने को लेकर विवाद हो गया। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर देवों व दानवों को अलग-अलग बैठा दिया। देवों की पंक्ति में बैठे चंद्रमा व सूर्य ने देखा कि एक दानव अपनी पंक्ति छोड़कर देवों की पंक्ति में बैठ गया है। उन्होंने इसकी जानकारी दी। लेकिन इस बीच देवों को अमृत पिलाते विष्णु उस दानव को अमृत दे चुके थे। अमृत उसके गले से नीचे उतरता, इसके पहले ही भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट दिया। लेकिन अमृत पी लेने के कारण उसकी मौत नहीं हो सकी। उसका सिर राहु बना तो धड़ केतु बन गया।
राहु व केतु ने सूर्य व चंद्रमा काे मान लिया शत्रु
इस घटना के बाद से राहु और केतु ने सूर्य व चंद्रमा का अपना शत्रु मान लिया। वे पूर्णिमा के दिन चंद्रमा और अमावस्या के दिन सूर्य को खाने की कोशिश करते हैं। इसमें सफल नहीं होने पर निगलने की कोशिश करते हैं। इसी घटना को ग्रहण कहते हैं। जब राहु और केतु सूर्य को खाने या निगलने की कोशिश करते हैं तब सूर्य ग्रहण लगता है।
सूर्य ग्रहण से 12 घंटे पहले लगता है सूतक
सूर्य ग्रहण लगने के 12 घंटे पहले उसका सूतक काल लग जाता है। ग्रहण के दौरान नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है। इस दौरान राहु व केतु कमजोर भी पड़ जाते हैं। इसलिए सूतक काल में शुभ कार्यों को करने की मनाही रहती है। मंदिर बंद रहते हैं। ग्रहण के दौरान भोजन नहीं करने की की मान्यता है। धार्मिक मान्याता के अनुसार लोगों को घरों से बाहर नहीं निकलना चाहिए। बच्चों व गर्भवती महिलाओं को खास सावधानी बरतनी चाहिए।
बिहार में मान्य नहीं है इस ग्रहण का सूतक
बिहार की बात करें तो यह सूय ग्रहण यहां दिखाई नहीं दिया। इसलिए यहां इसका सूतक काल मान्य नहीं रहा। इस कारण महिलाओं ने वट सावित्री पूजा की। शनि जयंती भी मनाई गई।