ओपीडी तक सिमटा सुपरस्पेशियलिटी विभाग
प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल पीएमसीएच का गैस्ट्रोइंट्रोलाजी सुपरस्पेशियलिटी विभाग कमोवेश बंद होने की कगार पर है। गत एक वर्ष से यहां पेट एवं लिवर रोग के उपचार को जरूरी इंडोस्कोपी सेगमायडोस्कोपी या कोलनोस्कोपी जांच मशीनें बंद पड़ी हैं।
पटना। प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल पीएमसीएच का गैस्ट्रोइंट्रोलाजी सुपरस्पेशियलिटी विभाग कमोवेश बंद होने की कगार पर है। गत एक वर्ष से यहां पेट एवं लिवर रोग के उपचार को जरूरी इंडोस्कोपी, सेगमायडोस्कोपी या कोलनोस्कोपी जांच मशीनें बंद पड़ी हैं। विभाग में विभागाध्यक्ष ही एकमात्र एक डाक्टर हैं। इस विभाग को न तो पीजी छात्र मिलते हैं और न ही इंटर्न। नतीजा, अब यहां पेट रोगियों को भर्ती नहीं किया जा रहा। अधीक्षक डा. आइएस ठाकुर से इस बाबत बात करने की कोशिश की गई लेकिन उनका पक्ष नहीं मिल सका। वहीं प्राचार्य डा. विद्यापति चौधरी ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग को जरूरतों के संबंध में पत्र अग्रेषित किया गया है। पेट के छोटी समस्याओं की अनदेखी बन जाता गंभीर रोग : व्यस्त जिदगी, जहां जो मिला खाने-पीने, खाद्यान्न व सब्जियों में रासायनिक खादों, कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से पेट और लिवर रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इससे इरिटेबल बोवेल सिड्रोम, पैंक्रियाज में सूजन, खाना निगलने में कठिनाई, पेट में दर्द, एसिडिटी, बदहजमी, फैटी लिवर, भूख नहीं लगना, लगातार दस्त या कब्ज, कमजोरी महसूस होना पेट की ऐसी समस्याएं हैं जिनका समुचित उपचार नहीं होने पर ये गंभीर रोगों में बदल जाते हैं। पेट में गड़बड़ी से ही बवासीर, शुगर-बीपी, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर, हेपेटाइटिस, पीलिया, लिवर सिरोसिस, पेप्टिक अल्सर रोग, कोलाइटिस, पित्ताशय की थैली और पित्त पथ के रोग, पोषण संबंधी समस्याएं होती हैं। इसे देखते हुए पूर्व विभागाध्यक्ष पद्मश्री डा. विजय प्रकाश ने संघर्ष कर मेडिसिन से इतर गैस्ट्रोइंट्रोलाजी विभाग की स्थापना कराई थी। उस समय इंडोस्कोपी, कोलनोस्कोपी, सेगमायडोस्कोपी आदि जांच मशीनें भी आईं थी। विभाग में रोगियों को भर्ती भी किया जाता था। अब ये सभी सुविधाएं गुजरे जमाने की बात हो गई हैं। ओपीडी में परामर्श देकर ही कर रहा सेवा : गैस्ट्रोइंट्रोलाजी के विभागाध्यक्ष डा. शिशिर कुमार ने कहा कि मंगलवार को विधिवत ओपीडी संचालित की जाती है। इसके अलावा अन्य दिन वे पेट के रोगियों को विभाग में परामर्श देते हैं। विभाग में अन्य कोई नियमित डाक्टर, जूनियर डाक्टर, इंटर्न या सीनियर रेजिडेंट नहीं होने से रोगियों को भर्ती कर उपचार करना संभव नहीं है। इंडोस्कोपी व सेगमायडोस्कोपी समेत अन्य आवश्यक जांच के लिए अधीक्षक व प्राचार्य को कई बार पत्र लिखे गए हैं।