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नक्सली संगठन के सब जोनल कमांडर का आत्मसमर्पण, गया-औरंगाबाद में कई वारदात को दिया था अंजाम

गया में नक्सली संगठन के सब जोनल कमांडर ने आत्मसर्पण कर दिया। पुलिस अधीक्षक राजीव मिश्रा के समक्ष आत्मसमर्पण किया है।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Wed, 22 Jul 2020 04:24 PM (IST)Updated: Wed, 22 Jul 2020 04:24 PM (IST)
नक्सली संगठन के सब जोनल कमांडर का आत्मसमर्पण, गया-औरंगाबाद में कई वारदात को दिया था अंजाम
नक्सली संगठन के सब जोनल कमांडर का आत्मसमर्पण, गया-औरंगाबाद में कई वारदात को दिया था अंजाम

गया, जेएनएन। माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी)के सब जोनल कमांडर अखिलेश मांझी ने बुधवार को वरीय आरक्षी अधीक्षक राजीव मिश्रा के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। उसके खिलाफ गया और औरंगाबाद जिले में दर्जनों अपराधिक मामले दर्ज हैं। 30 वर्षीय नक्सली गया जिले के सोहैल- सलैया थाना अंतर्गत निमिया रेहला पुरनाडीह टोला का निवासी है। 

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अखिलेश मांझी पर गया जिले के आमस थाना क्षेत्र में सॉवकला खैराखुर्द के समीप सोलर पावर प्लांट को जलाने व बम विस्फोट से उड़ाने का आरोप है। लुटुआ थाना में आइईडी लगाने, बांकेबाजार थाने में उत्क्रमित मध्य विद्यालय सोनदाहा को संदीप यादव को नेतृत्व में डायनामाइट से क्षतिग्रस्त करने, सुरक्षा बलों पर फायङ्क्षरग करने आदि के मामले भी उस पर दर्ज हैं। औरंगाबाद जिले के देव थाना क्षेत्र में तत्कालीन विधान पार्षद राजन सिंह का घर उड़ाने का भी उस पर आरोप है। 

एसएसपी ने बताया कि मुख्यधारा में लौटे नक्सली अखिलेश को प्रत्यर्पण सह पुनर्वास योजना के तहत खाते में प्रति माह चार हजार रुपये की राशि दी जाएगी। साथ ही कौशल विकास के तहत प्रशिक्षण एवं स्वरोजगार के लिए साधन मुहैया कराया जाएगा। 

अपनी जमीन को छुड़ाने के लिए बना था नक्सली

एसएसपी ने नक्सली अखिलेश से पूछताछ की तो उसने बताया कि पड़ोसी द्वारा 11 एकड़ भूमि कब्जा कर लिया था। जमीन को मुक्त कराने के लिए नक्सली संगठन में शामिल हुआ। 

21 की उम्र में शामिल हुआ संगठन में 

एसएसपी ने बताया कि अखिलेश नागेश्वर मांझी, सुखदेव मांझी एवं रामदेव मांझी से जमीनी विवाद होने के कारण दिसंबर 2011 में प्रतिबंधित एमसीसी में शामिल हुआ था। उस वक्त उसकी उम्र 21 साल थी। अखिलेश ने एसएसपी को बताया कि नक्सलियों द्वारा युवाओं को प्रलोभन देकर संगठन में शामिल कराया जाता है। बाद में मानसिक और शारीरिक यातना दी जाती है। प्रताडऩा से तंग आकर उसने संगठन छोड़ा। उसे उम्मीद थी कि नक्सली संगठन में जाने के बाद कब्जा की गई जमीन वापस मिल जाएगी। वह उम्मीद पूरी नहीं हुई। कहा, संगठन में बंधक बनाकर रखा जाता है। भोजन और निर्धारित वेतन भी नहीं दिया जाता है। इसलिए अब मुख्यधारा में लौटने का निर्णय किया।


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