बिहार म्यूजियम में गूंजी जलियांवाला बाग नरसंहार की कहानी
जलियांवाला बाग नरसंहार के 100 वर्ष पूरे होने पर शनिवार को अर्थशिला की ओर से आयोजन
पटना। जलियांवाला बाग नरसंहार के 100 वर्ष पूरे होने पर शनिवार को अर्थशिला की ओर से बिहार म्यूजियम सभागार में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य वक्ता के रूप में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्रो. केएल टुटेजा मौजूद थे। उन्होंने अपनी बातों को रखते हुए कहा कि जलियांवाला बाग नरसंहार ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन को नया आयाम दिया था।
उन्होंने कहा कि हर आदमी यह जानता है कि जनरल डायर ने निहत्थी भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दिया था, लेकिन कही भी इतिहास में भी इसका जिक्र नहीं है कि 20 हजार लोग वहां इकट्ठा क्यों हुए थे। जनरल डायर ने विधि-व्यवस्था का हवाला देते हुए भीड़ को घेरकर 1650 राउंड गोलियां चलवाई थीं। ब्रिटिश सरकार के मुताबिक इस नरसंहार में 389 लोगों की मौत हुई थी और एक हजार से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इस वारदात के बाद स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति आम जनता और नेताओं के विचारों में काफी एकरूपता आई। इस घटना के बाद देशवासियों में अंग्रेजों के प्रति नफरत बढ़ी थी।
संगीतमय प्रस्तुति से मोहा मन
कार्यक्रम के दौरान 'भगत सिंह की देशभक्ति' और 'जलियांवाला बाग' पर संगीतमय प्रस्तुति दी गई। सांस्कृतिक प्रस्तुति दे रही टीम का नेतृत्व मदन गोपाल सिंह ने किया। कार्यक्र में सुमंगला दामोदरन और मनु कोहली ने अपने सुर दिए। अपनी प्रस्तुति की शुरुआत इन्होंने दादरी कविता के साथ की। उन्होंने 'सो जा मेरे मालिक वीरान हुई है रात..' से सभी को भावुक किया। अपनी प्रस्तुति के दौरान मदन गोपाल ने अपने बचपन के किस्से भी सुनाए कि कैसे बचपन में उन्हें जलियांवाला बाग में जाने की इजाजत नहीं थी। और कैसे एक नन्हा बच्चा जलियांवाला बाग की मिट्टी लेकर ताउम्र अपने पास रखता है और आगे चल कर एक सच्चा देशभक्त भगत सिंह बन जाता है।