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अध्यात्म की ओर बढ़ा झुकाव, घर वालों से अभिनय पर करते चर्चा

कोरोना के कारण मानो जिदगी ठहर गई हो

By JagranEdited By: Published: Mon, 30 Mar 2020 12:16 AM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2020 06:14 AM (IST)
अध्यात्म की ओर बढ़ा झुकाव, घर वालों से अभिनय पर करते चर्चा
अध्यात्म की ओर बढ़ा झुकाव, घर वालों से अभिनय पर करते चर्चा

पटना। कोरोना के कारण मानो जिदगी ठहर गई हो। आज मुंबई में रहने वाले लोग सुबह जल्दी सोकर जग जा रहे हैं। मुंबई नगर निगम ने सुबह आठ बजे से 10 बजे तक पानी घरों में मुहैया करा रही है। पानी को लेकर नींद भी जल्दी खुल जा रही है। पानी को लेकर जिस प्रकार लोगों की बेचैनी देखने को मिल रही है। ऐसे में अपने गांव की याद खूब आती है, जहां पर किसी चीज के लिए परेशान होने की जरूरत नहीं होती है। कोरोना ने हमें प्रकृति सरंक्षण और अपने आप को समझने का भी मौका दिया है। जड़ों से जुड़ा रहने की अहमियत पता चल रही है। आजकल सुबह जल्दी उठना, पार्क में टहलने के साथ योग और अध्यात्म के प्रति जागरूकता और अधिक बढ़ी है। अपने आप को जानने का प्रयास कर रहा हूं। नहाने-धोने के बाद पूजा-पाठ पर विशेष ध्यान देने लगा हूं। पहले जहां कामकाज के लेकर भगवान के आगे सिर झुकाकर घर से बाहर निकल जाते थे, वही आज अपने आप को ईश्वर को जोड़ने का प्रयास करने में लगा हूं। मां भगवती की पूजा-अर्चना करने के बाद मन को काफी शांति मिल रही है। ईश्वर से हर दिन यही प्रार्थना कर रहा हूं कि इस महामारी को जल्द से जल्द निपटारा करें। पूजा पाठ में पत्नी आरोति सिंह भट्टाचार्य और पुत्र आकाश सिंह यादव का भी समय बीत रहा है। पूजा-पाठ करने के बाद दोपहर का भोजन कर सोशल मीडिया और फोन के जरिए परिवार और दोस्तों का हालचाल लेने के साथ कोरोना से बचने को लेकर जागरूकता का संदेश देने में लगा हूं। साथ ही धाíमक पुस्तकों का अध्ययन करने के साथ लेखन का भी कार्य भी कर रहा हूं, जिससे अपने आप को शांति मिल रही है। फुरसत के क्षणों में प्रकृति को लेकर मन में तरह-तरह की बातें उभर कर सामने आ रही हैं। जिस प्रकार हम सभी प्रकृति से छेड़छाड़ करने में लगे हैं, कहीं ऐसा न हो कि आने वाले दिनों में पानी के साथ ऑक्सीजन सिलेंडर भी लोगों को खरीदना पड़े। ऐसे स्थिति को देखते हुए सभी को प्रकृति के बारे में सोचने की जरूरत है। प्रकृति का संतुलन बना रहे, इसके लिए कुछ कविताएं भी लिखने में समय बीत रहा है। शाम के समय पुरानी और नयी फिल्में देखने के साथ ही गीतों को सुन रहे हैं। रात के समय जब पूरा परिवार भोजन करने को बैठता है तो फिल्म, अभिनय पर खूब बात होती है, जिससे सभी का मन भी लगा रहता है। परिवार के साथ एक साथ बैठकर बातें करना पहले जहां अरसे बाद होती थी वो आज रोजाना हो रही है। ऐसे दौर में संयुक्त परिवार की परिकल्पना खूब याद आती है। आज ऐसा लग रहा कि शहर की उंची-उंची इमारतों में बहुत कुछ पीछे छूट गया हो, जिसे फिर से पकड़ने की जरूरत है।

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- कुणाल सिंह, भोजपुरी अभिनेता


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