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संगीत के साथ अध्यात्म की डुबकी, एकतारा की तरंगों ने किया सम्मोहित

सोमवार की शाम बिहार म्यूजियम के खुले मैदान में एक सुंदर सा मंच बनाया गया था।

By JagranEdited By: Published: Sun, 23 Feb 2020 11:14 PM (IST)Updated: Sun, 23 Feb 2020 11:14 PM (IST)
संगीत के साथ अध्यात्म की डुबकी, एकतारा की तरंगों ने किया सम्मोहित
संगीत के साथ अध्यात्म की डुबकी, एकतारा की तरंगों ने किया सम्मोहित

पटना। सोमवार की शाम बिहार म्यूजियम के खुले मैदान में एक सुंदर सा मंच बनाया गया था। मंच को टोकरी, दीपक और गेंदे के फूलों से बहुत ही खूबसूरत तरीके से सजाया गया था। मंच के ठीक सामने लोग बैठे हुए थे। तभी भगवा वस्त्र पहने, एक हाथ में एकतारा और गले में डुग्गी लटकाए एक महिला मंच पर आती है और लोग तालियों से उनका जोरदार स्वागत करते हैं। दरअसल ये महिला कोई और नहीं पार्वती बाऊल थीं, जिनकी प्रस्तुति देखने के लिए लोग काफी देर से इंतजार कर रहे थे।

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मौका था तक्षशिला फाउंडेशन की पहल पर अर्थशिला की ओर से बिहार म्यूजियम में पार्वती बाऊल द्वारा यौगिक और आध्यात्मिक गीतों और नृत्य की परंपरा बाऊल गान के आयोजन का। पार्वती बाउल ने कभी बैठकर तो कभी खड़े होकर और घूम-घूमकर बाउल की प्रस्तुति से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने कहा कि बाऊल यौगिक परंपरा है। गुरु-शिष्य परंपरा है। कहा कि शांति निकेतन की छात्रा हूं। पहले पेंटिंग की छात्रा भी थी।

उन्होंने कार्यक्रम की शुरुआत में 'नृत्या शुद्धम..' बंगाली गीत पर अपनी प्रस्तुति दी। मंच की चारों ओर घूम कर वह बाऊल नृत्य के हर स्टेप को बखूबी प्रस्तुत कर रही थीं। उनकी प्रस्तुति ने सभी के दिलों के तार को छू लिया। शुरू से लेकर अंत तक लोग एक टक उनकी प्रस्तुति देख रहे थे। प्रस्तुति में सूफी, शिव नृत्य, राधा-कृष्ण की झलक भी देखने को मिली। एकतारा और डुग्गी की जुगलबंदी देखते ही बन रही थी। उन्होंने डुग्गी और नुपुर का इस्तेमाल करते हुए दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। कहा कि बाऊल परंपरा वैष्णव, सूफी, बौद्ध और संगीत की अन्य परंपराओं को एक साथ जोड़ती है। उन्होंने अपने प्रस्तुति में प्रेम के साथ-साथ अहिसक प्रतिरोध पर जोर दिया। संगीत नाटक अकादमी से मिल चुका है पुरस्कार

भारत और दुनिया में गूढ़ अखाड़ों और विश्व संगीत के बीच की खाई को कम करने और बाऊल संगीत के बारे में जो गलत धारणाएं हैं, उन्हें दूर करने के लिए पार्वती बाऊल लगातार प्रयासरत हैं। बाऊल जैसी सुंदर परंपरा के जादू को लोगों तक पहुंचाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए उन्होंने कई गानों और नृत्यों की प्रस्तुति की। गीत और नृत्य की सबसे प्राचीन परंपरा बाऊल के लिए जाने जाने वाली पार्वती बाऊल एक वादक, कहानीकार और चित्रकार भी है। वह पहली महिला बाऊल कलाकार हैं, जिन्हें प्राचीन बाऊल परंपरा को आगे बढ़ाने में योगदान के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिल चुका है।


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