Move to Jagran APP

विशेष राज्‍य दर्जा: आंध्र प्रदेश ने फिर ताजा कर दी बिहार की पुरानी चाह

केंद्रीय मंत्रिमंडल से तेलगुदेशम के दो मंत्रियों के अलग हो जाने के बाद विशेष श्रेणी राज्य के मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। बिहार की यह पुरानी चाहत फिर से ताजा हो गई है।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Sun, 11 Mar 2018 04:31 PM (IST)Updated: Mon, 12 Mar 2018 10:36 PM (IST)
विशेष राज्‍य दर्जा: आंध्र प्रदेश ने फिर ताजा कर दी बिहार की पुरानी चाह
विशेष राज्‍य दर्जा: आंध्र प्रदेश ने फिर ताजा कर दी बिहार की पुरानी चाह

पटना [एसए शाद]। ''केंद्रीय मंत्रिमंडल से तेलगुदेशम के दो मंत्रियों के अलग हो जाने के प्रकरण ने विशेष श्रेणी राज्य के मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। बिहार की यह पुरानी चाहत फिर से ताजा हो गई है। बिहार अपनी यह मांग पिछले कई सालों से पुरजोर ढंग से उठाता रहा है। बिहार की इस मांग के मद्देनजर पांच वर्ष पूर्व केंद्र सरकार ने आरबीआइ के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन की अध्यक्षता में कमेटी भी बनाई थी। उस समय रघुराम राजन प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार थे।

loksabha election banner

पिछले 10-12 सालों से राज्य की विकास दर 10 प्रतिशत से अधिक रहने के बावजूद बिहार कई मानकों पर राष्ट्रीय औसत से बहुत पीछे है। बात चाहे गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाली आबादी की हो या प्रति व्यक्ति आय की, बिहार बहुत पीछे है। प्रति व्यक्ति आय में तो हाल के वर्षों में इजाफा हुआ है, लेकिन राज्य की प्रति व्यक्ति आय अन्य राज्यों की तुलना में सबसे कम है। औद्योगिकीकरण, सामाजिक एवं भौतिक आधारभूत संरचना के मामले में भी प्रदेश बहुत पिछड़ा है। इसके मद्देनजर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले कई सालों से बिहार को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग करते रहे हैं।

यह मांग संपूर्ण बिहार की चाहत उस समय बनी जब मई, 2010 में नीतीश कुमार ने हस्ताक्षर अभियान लांच किया। करीब 1.25 करोड़ बिहारवासियों के हस्ताक्षर हासिल किए गए और इन्हें राष्ट्रपति को सौंपा गया। फिर 4 नवंबर, 2012 को गांधी मैदान में अधिकार रैली आयोजित कर नीतीश कुमार ने इस मुद्दे को उठाया। विशेष दर्जा को उन्होंने बिहार का अधिकार बता सभी पिछड़े राज्यों को इस श्रेणी में शामिल करने की मांग की थी।

उन्होंने फिर अगले वर्ष 2013 में 17 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में अधिकार रैली आयोजित की। तब उन्होंने केंद्र सरकार को मुखातिब कर कहा था कि विकसित राज्यों की श्रेणी में आने में बिहार को 25 साल लगेंगे। बिहार की जनता, विशेषकर युवा आबादी, 25 साल इंतजार नहीं कर सकती। बिहार को आगे बढऩे के लिए विशेष दर्जा बहुत जरूरी है। बिहार की इस मांग पर गौर करने के लिए ही तत्कालीन यूपीए सरकार ने 2013 में रघुराम राजन कमेटी गठित की थी।

 प्रदेश में सभी पार्टियों भी विशेष दर्जा की मांग पर एकजुट हैं। सभी दलों ने जदयू का समर्थन किया है। विधानमंडल के दोनों सदनों में इस सिलसिले में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर इसे केंद्र सरकार की मंजूरी के लिए भी भेजा गया है। देखा जाए तो इस मांग से बिहार कभी पीछे नहीं हटा है। पिछले वर्ष 29 मई को भी मुख्यमंत्री ने इस संबंध में प्रधानमंत्री को तीन पृष्ठों का पत्र लिखा है।

आंध्र प्रदेश की पहल ने अब एक बार फिर बिहार में इस मुद्दे को ताजा कर दिया है। तर्क दिए जा रहे हैं कि आंध्र प्रदेश का विभाजन 2015 में हुआ, जबकि बिहार का बंटवारा तो 2000 में ही हुआ था। आंध्र प्रदेश की तुलना में बिहार काफी पिछड़ा राज्य रहा है। केंद्र सरकार के समक्ष बिहार को विशेष दर्जा देने की मांग बहुत अर्से से लंबित है। केंद्र सरकार को इस बात का भी ख्याल करना होगा कि आजादी के बाद बनी 'इकुअल फ्रेट पॉलिसीÓ का खमियाजा भुगतना पड़ा है। एकीकृत बिहार में खनिज का भंडार रहने के बावजूद यहां कारखाने नहीं खुल पाए। इन खनिज के बल पर अन्य राज्यों में बड़े उद्योग एवं कल-कारखाने लगे। ऐसे में बिहार को उसका वाजिब हक मिलना ही चाहिए और इसके लिए विशेष दर्जा से अधिक उचित और कुछ नहीं होगा। 

बनी थी रघुराम राजन कमेटी

''तत्कालीन यूपीए सरकार ने बिहार की विशेष राज्य के दर्जा की मांग के मद्देनजर मई, 2013 में रघुराम राजन की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमेटी बनाई। राजन उस समय प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार थे। समिति ने 10 मानक तय किए थे जिनके आधार पर 28 राज्यों की रैंकिंग की गई। समिति ने 26 सितंबर, 2016 को अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें 10 राज्य अधिक पिछड़े, 11 राज्य कुछ कम पिछड़े और सात राज्य थोड़ा विकसित पाए गए। इस रिपोर्ट के आधार पर केंद्रीय राशि का आवंटन होना था। परन्तु केंद्र में अगले ही वर्ष सरकार बदल गई और इस रिपोर्ट पर आगे कार्रवाई नहीं हुई। योजना आयोग की जगह नीति आयोग ने ली, जिसके जिम्मे राज्यों को राशि आवंटित करने का काम सौंपा गया।'

रघुराम राजन कमेटी के 10 पैमाने

1. प्रति माह प्रति व्यक्ति उपभोग

2. शिक्षा

3. स्वास्थ्य

4. घरों में सुविधाएं

5. गरीबी दर

6. महिला साक्षरता

7. अनुसूचित जाति-जनजाति की आबादी का प्रतिशत

8. शहरीकरण की दर

9. आर्थिक समावेश

10. कनेक्टिविटी

डा. शैबाल गुप्ता ने जताया था एतराज

''कमेटी में बिहार से एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीच्यूट(आद्री) के सदस्य सचिव को भी सदस्य के रूप में शामिल किया गया था। उन्होंने यह कह कमेटी की रिपोर्ट पर एतराज जताया था कि प्रति माह प्रति व्यक्ति उपभोग की जगह प्रति व्यक्ति आय को पैमाना बनाना चाहिए। विरोध में उन्होंने अपना 'नोट ऑफ डिसेंट' भी लिखा था।'

रघुराम राजन कमेटी के तहत श्रेणीबद्ध राज्य

क. सबसे पिछड़े राज्य

1. ओडिशा

2. बिहार

3. मध्य प्रदेश

4. छत्तीसगढ़

5. झारखंड

6. अरुणाचल प्रदेश

7. असम

8. मेघालय

9. उत्तर प्रदेश

10. राजस्थान

ख. कम पिछड़े राज्य

1. मणिपुर

2. पश्चिम बंगाल

3. नगालैंड

4. आंध्र प्रदेश

5. जम्मू-कश्मीर 

6. मिजोरम

7. गुजरात

8. त्रिपुरा

9. कर्नाटक

10. सिक्किम

11. हिमाचल प्रदेश

ग. अपेक्षाकृत विकसित राज्य

1. गोवा

2. केरल

3. तमिलनाडु

4. पंजाब

5. महाराष्ट्र

6. उत्तराखंड

7. हरियाणा

पहले राशि आवंटन के लिए था गाडगिल-मुखर्जी फार्मूला

नीति आयोग से पहले तक गाडगिल-मुखर्जी फार्मूले के तहत केंद्रीय राशि का आवंटन होता रहा है। 1969 में योजना आयोग के तत्कालीन उपाध्यक्ष डीआर गाडगिल ने जो फार्मूला तय किया, उसे गाडगिल फार्मूला कहा गया। गाडगिल प्रसिद्ध सोशल साइंटिस्ट थे। बाद में योजना आयोग के उपाध्यक्ष की हैसियत से 1991 में प्रणब मुखर्जी ने कुछ संशोधन प्रस्तावित किए। संशोधित फार्मूले को गाडगिल-मुखर्जी फार्मूले का नाम दिया गया। इसके निम्न चार पैमाने थे।

1. आबादी

2. प्रति व्यक्ति आय

3. वित्तीय प्रबंधन

4. विशेष समस्याएं

वर्तमान में 11 हैं विशेष दर्जा वाले राज्य

1. अरुणाचल प्रदेश

2. असम

3. हिमाचल प्रदेश

4. जम्मू और कश्मीर

5. मणिपुर

6. मेघालय

7. मिजोरम

8. नगालैंड

9. सिक्किम

10. त्रिपुरा

11. उत्तराखंड

विशेष दर्जा के लिए पैमाने

1. संसाधन का आधार कम हो

2. पहाड़ी और मुश्किल रास्ते वाले इलाके

3. आबादी के कम घनत्व वाले इलाके

4. अनुसूचित जनजाति की बड़ी आबादी

5. अंतर्राष्ट्रीय बार्डर पर स्थित इलाके

विशेष दर्जा के लाभ

1. केंद्रीय सहायता मिलने में प्राथमिकता।

2. केंद्रीय योजनाओं में 90 प्रतिशत केंद्र से राशि। साधारण राज्य को अभी मिलते हैं 60 फीसद।

3. वाणिज्य कर में छूट। इसके कारण निवेशकों को आकर्षित करने में मिलती है मदद।

4. केंद्रीय बजट का 30 प्रतिशत विशेष श्रेणी राज्यों के लिए होता है आवंटित।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.