Solar Eclipse 2021: बिहार में लिखी गई खगोल विज्ञान की यह पुस्तक, इसमें हजार साल के ग्रहणों की जानकारी
Solar Eclipse 2021 बिहार के दरभंगा राज परिवार के सदस्य रहे महामहोपाध्याय हेमांगद ठाकुर ने चार र्सा साल पहले अपनी पुस्तक ग्रहण माला में 1100 साल के सूर्य और चंद्र ग्रहणों की जानकारी दी थी। यह पुस्तक दरभंगा के कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में उपलब्ध है।
पटना, आनलाइन डेस्क। Solar Elcipse 2021: आज साल 2021 का अंतिम सूर्यग्रहण है। यह भारत में नहीं देखा जा सकेगा। हालांकि, ज्योतिषिय दृष्टि से इसका असर माना जा रहा है। यह तो हुई कल के सूर्यग्रहण की बात, लेकिन क्या आप जानते हैं कि बिहार में लिखी गई एक पुस्तक में 1100 वर्षों तक लगने वाले सूर्य और चंद्र ग्रहण (Solar and Lunar Eclipse) की जानकारी दी गई है? हम बात कर रहे हैं करीब चार सौ साल पहले महामहोपाध्याय हेमांगद ठाकुर द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘ग्रहण माला’ (Grahan Mala) की। यह पुस्तक बिहार के दरभंगा स्थित कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय (Kameshwar Singh Darbhanga Sanskrit University) में उपलब्ध है।
पुस्तक में 1088 वर्षों तक की है जानकारी
पुस्तक ‘ग्रहण माला’ में 1088 वर्षों तक के सूर्य व चंद्र ग्रहणों की जानकारी दी गई है। करीब चार सौ साल पहले लिखे जाने के कारण यह आज भी अगले 708 वर्षों तक लगने वाले सूर्य व चंद्र ग्रहणों की जानकारी देती है। पुस्तक में दी गई ऐसी जानकारियां अभी तक लगभग सटीक रही हैं। कहीं-कहीं गणना में थोड़ा अंतर दिखता है, लेकिन हमें सह नहीं भूलना वाहिए कि यह पुस्तक चार सौ साल पहले लिखी गई थी। यह अंतर उस वक्त लिखने की विधि लिपिबद्ध करने वाले पर भी निर्भर करता है।
दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में उपलब्ध
पुस्तक के लेखक हेमांगद ठाकुर दरभंगा राज परिवार के सदस्य थे। ज्योतिष व खगोल विज्ञान में उनकी खास दिलचस्पी थी। उनका जीवन काल सन् 1530 से 1590 के बीच का था। दरभंगा में 26 जनवरी 1961 को कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय की गई। इसके बाद राज परिवार के विद्वान सदस्य रहे हेमांगद ठाकुर की उक्त पुस्तक 'ग्रहण माला' को विश्वविद्यालय के प्रकाशन विभाग ने प्रकाशित किया। यह पुस्तक विश्वविद्यालय के लाइब्रेरी व पुस्तक विक्रय केंद्र से खरीदी जा सकती है।
1620 से 2708 तक के ग्रहणों की गणना
कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति रामचंद्र झा कहते हैं कि इस पुस्तक की गणना शक संवत 1542 से 2630 के बीच की है। अंग्रेजी साल की बात करें तो पुस्तक सन् 1620 से 2708 तक के 1088 साल तक लगने वाले ग्रहणों की जानकारी देती है।