Bihar Intermediate Result 2017: 62 फीसदी बच्चे फेल, खराब रिजल्ट की वजह?
बिहार बोर्ड की 12 वीं के रिजल्ट ने जहां एक ओर बोर्ड की इस बार की परीक्षा प्रणाली को दोषमुक्त करार दिया है तो वहीं बोर्ड के स्कूलों में होने वाली पढ़ाई की पोल खोल दी है।
पटना [काजल]। इस साल बिहार बोर्ड 12वीं के रिजल्ट ने बिहार में शिक्षा की व्यवस्था की पोल खोल दी है। बुनियादी सुविधाओं का अभाव किस कदर है और यहां के बच्चे किस स्थिति में अपनी पढ़ाई करते हैं इसपर भी बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा है। देश के सभी राज्य की बोर्ड परीक्षाओं में सबसे खराब प्रदर्शन बिहार बोर्ड का रहा है।
अगर बात करें परीक्षा की व्यवस्था की तो इस बार बोर्ड ने सख्ती दिखाई और पुराने ढर्रे पर चल रही परीक्षा प्रणाली पर नकेल कसा, जिसमें नकल और कॉपी बदलकर नंबर बढ़ाने का खेल जो देश-विदेश की सुर्खियां बनता रहा उस पर लगाम लगाने की कोशिश की गई। यह एक अच्छी पहल के रूप में देखा जा रहा है।
टॉपर्स स्कैम और रूबी राय, खराब रिजल्ट की वजह
पॉलिटिकल साइंस को प्रॉडिकल साइंस बताने वाली रूबी राय पिछले साल की टॉपर घोषित की गई थी, उसके बाद जब टॉपर लिस्ट की जांच की गई तो टॉपर्स के खेल का बड़ा घोटाला सामने आया था। तब आर्ट्स की फर्जी टॉपर रूबी राय ने जांचकर्ताओं के सामने कहा था कि वह सिर्फ पास होना चाहती थी लेकिन उनके पिता ने उन्हें टॉप करवा दिया।
पिछले साल साइंस और अार्ट्स टॉपर हो गए थे फेल
रूबी ने तो अपने इंटरव्यू के दौरान पॉलिटिकल साइंस विषय को 'प्रोडिकल साइंस' कहा था। जब उनसे पूछा गया कि इस विषय में क्या-क्या होता है तो रूबी ने कहा कि इसमें खाना बनाना सिखाया जाता है। वहीं साइंस टॉपर सौरभ श्रेष्ठ ने भी आसान से सवालों का बेतुका जवाब दिया था। इस वीडियो के बाद इन टॉपर्स का रिव्यू एग्जाम लिया गया था, जिनमें ये फेल हो गए थे।
इस बार ओवर ऑल 64 प्रतिशत छात्र फेल हो गए हैं
लेकिन इस बार तो बिहार बोर्ड में ओवर ऑल 64 प्रतिशत छात्र फेल हो गए हैं, जिसमें 70 फीसदी साइंस स्ट्रीम, 63 प्रतिशत आर्ट्स और 26 फीसदी कॉमर्स के स्टूडेंट शामिल हैं, तो क्या इसकी वजह कड़ाई से ली गई परीक्षा है। नहीं, पहली बार आए एेेसे रिजल्ट ने बोर्ड के अधीन चलने वाले स्कूलों और स्कूलों में होने वाली पढ़ाई को भी उजागर किया है।
रूबी राय और बच्चा राय की जरूरत क्यों?
आखिर क्यों किसी रूबी राय या सौरभ को नकल की या बच्चा राय जैसे लोगों की मदद से टॉपर बनने की जरूरत पड़ती है। क्योंकि प्राथमिक शिक्षा भी भगवान भरोसे है। बच्चों को पढ़ाई के लिए बुनियादी सुविधाएं जैसे क्लास रूम, ब्लैक बोर्ड, कॉपियां, किताबें, पेंसिल वगैरह मुहैया नहीं होतीं।
गाहे-बगाहे ये बातें उजागर होती रही हैं कि बिना क्लास रूम के मास्टजी पेड़ के नीेचे क्लास लेते हैं। एक ब्लैकबोर्ड पर दो कक्षाओं के बच्चे पढ़ते हैं। शिक्षकों का अभाव है। वगैरह...वगैरह
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रिजल्ट खराब होने की एक सबसे बड़ी वजह ये भी रही कि पिछले साल बिहार में जो टॉपर्स स्कैम की आंधी आई थी वो भी ठीक परीक्षा के बाद इसकी एक भी चिंगारी इस बार के रिजल्ट पर ना पड़े इसी को ध्यान में रखकर बोर्ड ने इस बार हर कदम फूंक-फूंककर रखा है।
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