प्रकाशोत्सव : मुरादें ले सात समुंदर पार से 'गुरु का बाग' पहुंच रही संगत
गुरु गोविंद सिंह प्रकाशोत्सव में शामिल होने दूर-दूर से आए सिख श्रद्धालु पटना सिटी स्थित 'गुरु का बाग' जाकर मुरादें मांग रहे हैं। मान्यता है कि यहां मांगी गई मुराद पूरी होती है।
पटना [अहमद रजा हाशमी]। गुरु गोविंद सिंह के 350वें प्रकाशपर्व पर सात समंदर पार और देश के कोने-कोने से सिख श्रद्धालुओं के पटना पहुंचने का सिलसिला जारी है। तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब में मत्था टेकने के बाद श्रद्धालु फुर्सत में गुरु का बाग पहुंच रहे हैं। मान्यता है कि हरे-भरे इस बाग में फलदार पेड़ लगाने से मुरादें पूरी होती हैं। यहां स्थित कुएं के पानी तथा सरोवर में स्नान करने पर बीमारियां दूर हो जाती हैं।
गुरु का बाग में पेड़ लगाने, स्नान करने तथा यहां नीम के पेड़ की धूल को प्रसाद स्वरूप सहेजने वालों की मुरादों को टटोलना वाजिब नहीं। पर, अधिकांश औलाद पाने की इच्छा रखते हैं।
मान्यता है कि दिल में उपजी मुरादें गुरु तेग बहादुर सिंह के आशीर्वाद से पूरी होने के बाद खुशियों में तब्दील हो जाती हैं। ऐसे कई खिले चेहरे भी गुरु का बाग में देखने को मिले। पूछने पर सिर्फ इतना कहा कि पहले यहां आकर जो मांगा वो मिल गया। अब गुरुजी का शुक्रिया अदा करने आए हैं। देश-विदेश से पहुंचे कई संगतों ने कहा कि पटना दोबारा आने की वजह गुरु का बाग बनेगा। पूरे परिवार के साथ सात समंदर पार से फिर आऊंगा।
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नवाब भाइयों ने बाग गुरु के नाम किया
दशमेश गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज का जन्म पटना साहिब में 22 दिसंबर 1666 को हुआ था। पुत्र के जन्म लेने की खबर पाकर पिता गुरु तेग बहादुर सिंह असम से चलकर पटना साहिब पहुंचे थे। विश्व में दूसरे तख्त श्री हरिमंदिर जी पटना साहिब से चार किलोमीटर पहले इस बाग में गुरु जी महाराज रुके।
बताते हैं कि दो भाई नवाब रहीम बक्श और करीम बक्श के इस फलदार बाग के माली से एक भूखे साधु ने खाने के लिए फल मांगा तो माली ने मालिक से पूछने के बाद ही देने की बात कही। इससे आक्रोशित साधु ने बाग सूख जाने का श्राप दे दिया। तबसे यह बाग सूखा था। सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर सिंह जी के कदम पड़ते ही बाग फिर से हरा-भरा हो गया। नवाब की पत्नी को कोढ़ था। यहां के कुएं के पानी से स्नान करते ही ठीक हो गया। बेऔलाद पत्नी की गोद भर गई। नवाब भाइयों ने अपने बाग को गुरु का बाग कह उन्हें समर्पित कर दिया।
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यहां महफूज हैं कई निशानियां
गुरु का बाग परिसर में गुरु तेग बहादुर सिंह जी ने नीम की जिस दातून को गाड़ा था वो विशाल वृक्ष बन गया। आज भी नीम के उस पेड़ की डाल मौजूद है। देश-विदेश से मुरादें लेकर आने वाले श्रद्धालु इसकी छाल और धूल प्रसाद स्वरूप ले जाते हैं। गुरु जी का कड़ा, जिस इमली के पेड़ के नीचे गुरुजी बैठे थे उसकी डाल, वरदान दिया हुआ कुआं, साधु का कमंडल, आसन सुरक्षित है। गुरु का बाग में हर वर्ष स्नान मेला लगता है।
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