क्रिकेट का शौकीन शहाबुद्दीन कैसे बना बिहार का विलेन, ताज्जुब करते हैं बचपन को देखने वाले बुजुर्ग
Mohammad Shahabuddin News बिहार के बाहुबली नेता और हत्या के मामले में तिहाड़ जेल में सजा काट रहे शहाबुद्दीन की मौत के बाद उनकी जिंदगी से जुड़े अनछुए पहलू सामने आने लगे हैं। बक्सर जिले में पढ़ाई के दौरान बेहद शांत था स्वभाव।
बक्सर, कंचन किशोर। Mohammad Shahabuddin News: बिहार के बाहुबली नेता और हत्या के मामले में तिहाड़ जेल में सजा काट रहे शहाबुद्दीन की मौत के बाद उनकी जिंदगी से जुड़े अनछुए पहलू सामने आने लगे हैं। क्रिकेट में अच्छी रुचि रखने वाले शहाबुद्दीन के बारे में बहुत कम लोगों को पता है कि उनका क्रिकेट प्रेम बक्सर में ही जवां हुआ था और मल्टी परपस हाइस्कूल के ग्राउंड पर उन्होंने खूब चौके-छक्के जड़े थे। दरअसल, शहाबुद्दीन ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण ढाई-तीन साल यहीं बताए थे। इस दौरान एमपी हाइस्कूल से नवमी-दशवीं की पढ़ाई की थी।
- बक्सर में जवां हुआ था शहाबुद्दीन का क्रिकेट प्रेम, खूब उड़ाए थे चौके -छक्के
मुंसिफ नाना के साथ तीन साल रहे थे यहां, एमपी हाइस्कूल में पढ़े थे दसवीं तक
बात 1979-80 की है, तब शहाबुद्दीन के मामा मो.मुस्तकीम बक्सर अनुमंडल कोर्ट में मुंसिफ हुआ करते थे। बेहतर शिक्षा-दीक्षा के लिए उन्होंने शहाबुद्दीन को सिवान से अपने पास बुला लिया था और एमपी हाइस्कूल में उनका दाखिला करा दिया था। वर्ष 1982 तक मो. मुस्तकीम बक्सर में ही रहे और यहीं प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के तौर पर उनकी प्रोन्नति हुई। यहां से जाने के बाद जिला जज के पद से वे सेवानिवृत्त हुए। तीन साल बक्सर में रहने के दौरान पुराना कोर्ट भवन के पीछे बंगला घाट पर वे किराए के मकान में रहते थे।
हाई स्कूल में पढ़ाई के बाद क्रिकेट खेलते थे शहाबुद्दीन
उनकी कोर्ट में पेशकार रह चुके रविशंकर पांडेय बताते हैं कि वे जब केस का ब्यौरा और जजमेंट लिखने के लिए मुंसिफ साहब के घर जाते थे तो शहाबुद्दीन भी वहां होते थे। 80 वर्षीय श्री पांडेय बताते हैं कि उन्हें तब क्रिकेट खेलने का बड़ा शौक था और मामा उनको क्रिकेट किट लाकर दिए थे। एमपी हाइस्कूल में पढ़ाई के बाद वहां क्रिकेट भी खेला करते थे।
बचपन में बेहद शांत और शालीन थे शहाबुद्दीन
पांडेय बताते हैं कि तब शहाबुद्दीन बेहद शांत और शालीन थे, वे जब घर जाते थे तो अक्सर वे उनसे पढ़ाई के बारे में पूछते थे और बहुत अच्छे से उसका जवाब देते थे, जज साहब के जाने के बाद उन लोगों से संपर्क टूट गया, लेकिन बाद में जब वे शहाबुद्दीन के बारे में खबरों में बाहुबली की कहानी सुनने लगे तो उन्हें बहुत हैरानी हुई। पांडेय बताते हैं कि जिस शहाबुद्दीन उन्होंने देखा था, वह उनकी बाहुबली वाली छवि से मेल नहीं खाता था और आज भी जब कोरोना से उनकी मौत की सूचना मिली तो उनका वही बचपन वाला मासूम चेहरा उनकी आंखों के सामने घूम गया।