बिहार उपचुनाव पर परिवारवाद का साया, कहीं मां तो कहीं भाई या पति को मिला टिकट
बिहार में लोकसभा की एक व विधानसभा की पांच सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं। इसमें अधिकांश जगह पहले के सांसद-विधायकों के परिजन चुनाव लड़ रहे हैं।
पटना [अरुण अशेष]। वोट देने के लिए प्यारी जनता, झंडा ढोने के लिए कर्मठ कार्यकर्ता, लेकिन टिकट के समय अपना परिवार। परिवार की गुंजाइश आम चुनाव में तो रहती ही है, उप चुनाव में भी बना ली जाती है। बिहार में पांच विधानसभा और एक लोकसभा क्षेत्र के उप चुनाव (By Election) में परिवार का कौन सदस्य नहीं है? मां, भाई, पति और पुत्र। बहन, बुआ और पिता, सभी हैं। सीटें कम हैं न।
समस्तीपुर: दिवंगत सांसद के बेटे को टिकट
सांसद-विधायक पिता की मौत के बाद पुत्र या विधवा का उप चुनाव में टिकट हासिल कर लेना राजनीति की परंपरा सी बन गई है। इसे वोटर भी स्वीकार कर लेते हैं। इसी परंपरा का पालन समस्तीपुर में हो रहा है। लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के दिवंगत सांसद रामचंद्र पासवान (Ram Chandra Paswan) के पुत्र प्रिंंस राज (Prince Raj) उप चुनाव में एलजेपी के उम्मीदवार हैं। वैसे, इस पार्टी का परिवारवाद सभी दलों को स्वीकार्य है। इसमें भी प्रिंस के साथ तो पिता की सहानुभूति भी जुटी हुई है।
दरौंदा: पत्नी के सांसद बनने पर पति लड़ रहे चुनाव
दरौंदा विधानसभा उपचुनाव में पत्नी के सांसद बनने के बाद अजय सिंह (Ajay Singh) चुनाव लड़ रहे हैं। अजय पहली बार विधानसभा में जाने की गंभीर कोशिश कर रहे हैं। इससे पहले उनकी मां जगमातो देवी (Jagmato Devi) और पत्नी कविता सिंह (Kavita Singh) विधायक रह चुकी हैं। जगमातो के निधन के बाद कविता उनकी उत्तराधिकारी बनीं। कविता संसद में चली गईं तो क्षेत्र की जनता की सेवा अजय सिंह करेंगे।
किशनगंज: यहां ताल ठोक रहीं सांसद की मां
पारिवारिक विरासत की झंडाबरदार रही कांग्रेस (Congress) के पास इसबार सिर्फ एक परिजन को टिकट देने का अवसर था। किशनगंज से सांसद चुने गए डॉ. जावेद की मां सइदा बानो (Saida Bano) विधानसभा उप चुनाव लड़ रही हैं। उनके पति और डॉ. जावेद (Dr. Javed) के पिता मो. हुसैन आजाद (Md. Hussain Azad) भी ठाकुरगंज और किशनगंज से विधायक रह चुके हैं।
बेलहर: यहां भी दिख रहा परिवारवाद
बेलहर में गिरिधारी यादव (Giridhari Yadav) के भाई लालधारी यादव (Laldhari Yadav) जनता दल यूनाइटेड (JDU) के उम्मीदवार हैं। लालधारी के लिए यह पहला चुनाव है। गिरिधारी की जीत में उनका योगदान रहा है।
अपवाद बने नाथनगर व सिमरी बख्तियारपुर
सिर्फ नाथनगर और सिमरी बख्तियारपुर विधानसभा क्षेत्रों में विरासत आगे नहीं बढ़ पाई। पूर्व विधायक अरुण यादव (Arun Yadav) को जेडीयू ने मौका दिया है। दिनेश चंद्र यादव (Dinesh Chandra Yadav) के सांसद बनने से इस सीट पर विधानसभा का उप चुनाव हुआ था। दिनेश लोकलाज वाले हैं। इसलिए परिवारिक परंपरा को आगे बढ़ाने के सवाल पर अड़े नहीं। नाथनगर में भी जेडीयू ने पुराने कार्यकर्ता को उम्मीदवार बनाया।
जेडीयू ने परिवारवाद व कार्यकर्ताओं में बैठाया तालमेल
वैसे, संख्या के हिसाब से देखें तो जेडीयू ने परिवार और कार्यकर्ताओं के बीच बराबर सीटों का बंटवारा किया। उसके चार विधायक सांसद बने। सिर्फ दो परिजनों को टिकट दिया।