नित्यानंद के गृह राज्यमंत्री बनने के बाद बिहार BJP को नए अध्यक्ष की तलाश, चर्चा में आधा दर्जन नाम
बिहार बीजेपी के अध्यक्ष नित्यानंद राय अब केंद्रीय गृह राजयमंत्री बन गए हैं। इसके बाद पार्टी राज्य में नए अध्यक्ष की तलाश में जुट गई है। इस संबंध में जानकारी के लिए पढ़ें यह खबर।
पटना [स्टेट ब्यूरो]। बिहार के भारतीय जनता पार्टी (BJP) अध्यक्ष नित्यानंद राय (Nitya Nand Rai) अब पीएम नरेंद्र मोदी Narendra Modi) की सरकार में गृह राज्यमंत्री बन गए हैं। इसके बाद पार्टी नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश में जुट गई है। हालांकि, वे नए अध्यक्ष के चयन तक इस पद पर बने रहेंगे। नए अध्यक्ष के लिए आाधा दर्जन से अधिक नाम चर्चा में हैं।
चर्चा में हैं कम-से-कम छह-सात नाम
केंद्रीय नेतृत्व नित्यानंद राय का ऐसा विकल्प खोज रहा है, जो आगामी विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) में पार्टी की नैया पार लगाने में मददगार बन सके। सामाजिक समीकरण के अलावा विवादरहित होना इसके लिए प्राथमिक शर्त है। नेतृत्व के पास इस समय कम-से-कम छह-सात नाम हैं, जिनमें अध्यक्ष बनने की संभावना देखी जा रही है।
अध्यक्ष पद सवर्ण को देने की वकालत
विचार का विषय यह भी है कि किस सामाजिक समीकरण के नेता को अध्यक्ष का पद दिया जाए। विधानसभा में बीजेपी विधायक दल के नेता प्रेम कुमार (Prem Kumar) अति पिछड़ी और विधानमंडल दल के नेता सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi) पिछड़ी बिहरादरी के हैं। इस समीकरण को ध्यान में रखकर अध्यक्ष का पद किसी सवर्ण को देने की वकालत की जा रही है। यह विचार अगर धरातल पर उतरा तो विधायक मिथिलेश तिवारी, राजेंद्र सिंह और देवेश कुमार में से किसी को अध्यक्ष पद दिया जा सकता है। ये तीनों युवा हैं।
जबकि, अनुभव के नाम पर दो सांसदों- राधामोहन सिंह (Radha Mohan Singh) और राजीव प्रताप रुडी (Rajiv Pratap Rudi) में से किसी एक को अवसर मिल सकता है। दोनों को मंत्री नहीं बनाया गया है। राधामोहन सिंह पहले भी प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं।
इस आधार पर चल रहा रामकृपाल का नाम
पाटलिपुत्र के सांसद रामकृपाल यादव (Ram Kripal Yadav) का नाम इस आधार पर चल रहा है कि वे नित्यानंद राय की बिरादरी के हैं। बीजेपी अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में यादव वोटरों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है। लोकसभा चुनाव परिणाम से पार्टी का उत्साह बढ़ा हुआ है। यादव बहुल क्षेत्रों में भी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की तुलना में अच्छी कामयाबी मिली है। राम कृपाल को संगठन का अनुभव है। उनके अध्यक्ष बनने से पार्टी की पिछड़ी जाति की छवि और मुखर हो सकती है।
हालांकि, बीजेपी की परिपाटी दूसरे दल से आए किसी नेता को राज्य संगठन में महत्वपूर्ण पद देने की नहीं रही है। संभव है कि केंद्र का नया नेतृत्व इस परिपाटी को खत्म कर दे। तब रामकृपाल को यह पद मिल सकता है। उस हालत में सवर्ण अध्यक्ष का दावा इस आधार पर खारिज हो सकता है कि केंद्रीय मंत्रिपरिषद में इस वर्ग के चार सांसद मंत्री बनाए गए हैं।
संघ से जुड़ाव के चलते राजेंद्र सिंह का दावा भी मजबूत
सांगठनिक अनुभव और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से गहरे जुड़ाव के चलते राजेंद्र सिंह का दावा भी मजबूत है। एक कमजोरी हाल के दिनों में नोटिस में आई है कि वे राज्य की साझा सरकार की आलोचना करने से परहेज नहीं करते हैं। बुधवार को उन्होंने रोहतास के डीएम से मिलकर सीधा आरोप लगाया कि नल-जल योजना में भारी भ्रष्टाचार है। इसके कारण आम लोगों को पेयजल नहीं मिल रहा है। नेतृत्व को आशंका हो सकती है कि अगर वे प्रदेश अध्यक्ष बनते हैं तो सरकार से जब-तब तकरार की नौबत आती रहेगी। चुनावी वर्ष के लिहाज से यह ठीक नहीं होगा।
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