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बिहार के लाडले इशान किशन को संतोष ने बनाया अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेटर, बचपन से लिपटा रहा साये की तरह

छह साल की उम्र से साये की तरह साथ रहकर इशान किशन (चप्पी) को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर बनाने वाले उसके बचपन के कोच संतोष कुमार ने इसके लिए स्वयं अपने करियर का बलिदान कर दिया।

By Rajesh ThakurEdited By: Published: Mon, 06 Jul 2020 03:44 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2020 03:44 PM (IST)
बिहार के लाडले इशान किशन को संतोष ने बनाया अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेटर, बचपन से लिपटा रहा साये की तरह
बिहार के लाडले इशान किशन को संतोष ने बनाया अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेटर, बचपन से लिपटा रहा साये की तरह

पटना, अरुण सिंह। छह साल की उम्र से साये की तरह साथ रहकर इशान किशन (चप्पी) को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर बनाने वाले उसके बचपन के कोच संतोष कुमार ने इसके लिए स्वयं अपने करियर का बलिदान कर दिया। संतोष का जीवन आज भी पटना के राजेंद्र नगर के पास एक छोटे से शाखा मैदान में चंद प्रशिक्षुओंं के साथ व्यतीत हो रहा है । उन्हें इस बात का भी मलाल नहीं कि बदले में उन्हें क्या मिला। बस उन्हें अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमक बिखेर रहे अपने नायाब हीरे पर गर्व है । 

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निस्वार्थ भाव से अपने काम को अंजाम दे रहे संतोष की नजर 2004 में मोइनुल हक स्टेडियम में पहली बार इशान पर पड़ी थी। इतनी कम उम्र में विकेट के आगे और पीछे उसकी चपलता देखकर उन्होंंने उसे शार्गिद बनाने की ठान ली। इसके बाद शाखा मैदान से शुरू हुए इशान के सफर में संतोष हमसफर बनकर साथ चले। अपनी स्कूटी के पीछे बिठाकर उन्होंने पटना या उसके आसपास में हो रहे विभिन्न टूर्नामेंट में उसे शिरकत करने का मौका दिया।
 
इस दौरान उसके अभिभावक की भूमिका में वे स्वयं रहे तो अलीगढ़ में हुए स्कूली विश्व कप में उसकी टीम के कोच भी बने। पढ़ाई में ढिलाई करने पर उसे खूब समझाया। वहीं, एक मैच में 94 रन बनाने के बाद भी उसे फटकार भी लगाई, क्योंकि जल्दबाजी में विकेट गंवाने से उसकी टीम हार गई थी। उस समय बिहार में क्रिकेट के बिगड़ते हालात के बीच 2011 में उन्होंने इशान को झारखंड जाने की सलाह भी दी। वहां से वह अंडर-19 विश्व कप में भारतीय टीम का कप्तान बना। आइपीएल में गुजरात लायंस व मुंबई इंडियंस का प्रतिनिधित्व किया। वर्तमान में भारतीय ए टीम के नियमित सदस्य बनने के बाद इशान सीनियर टीम की दहलीज पर खड़ा है। 
 
इस बाबत क्रिकेटर इशान किशन कहते हैं कि आज मैं जिस मुकाम पर हूं, वह संतोष सर की देन है। उन्होंने मुझे अपने से सीनियर क्रिकेटरों के साथ ज्यादा से ज्यादा टूर्नामेंट खिलाकर मैच अभ्यास का मौका दिया। जिससे मैंने दबाव झेलना सीखा और मेरे खेल में निखार आया। 

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