सत्ता संग्राम: कर्पूरी की कर्मभूमि रहा समस्तीपुर, अब पासवान से जुड़ी पहचान
समस्तीपुर कर्पूरी ठाकुर की कर्मभूमि है। अब इसकी पहचान रामविलास पासवान व उनके भाई रामचंद पासवान से जुड़ी है। अगले आम चुनाव में यहां की राह आसान नहीं है।
पटना [अरविंद शर्मा]। समस्तीपुर संसदीय क्षेत्र की सियासत की गौरवशाली परंपरा रही है। अभी यहां से लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) प्रमुख रामविलास पासवान के भाई रामचंद्र पासवान सांसद हैं, लेकिन आजादी से अबतक कई बड़ी हस्तियों ने इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है। 1977 में कांग्रेस विरोधी लहर में लोकदल से कर्पूरी ठाकुर के सांसद बनने से पहले 1952 में सत्यनारायण सिन्हा ने समस्तीपुर का प्रतिनिधित्व किया था। कानून के जानकार सिन्हा को 'प्रिंस ऑफ पार्लियामेंट' भी कहा जाता था। जवाहर लाल नेहरू की सरकार में उन्हें संसदीय कार्य मंत्री बनाया गया था।
दोनों हस्तियों ने परिवारवाद से खुद को अछूता रखा, लेकिन नए परिसीमन में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने के बाद यह सिलसिला टूट गया। रामविलास के भाई फिर दावेदार हैं, किंतु पिछले चुनाव में मात्र छह हजार मतों से जीतने वाले रामचंद्र पासवान के लिए इस बार आसान लड़ाई नहीं होने जा रही है। मैदान में जाने और पुराने प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के अशोक राम से मुकाबला से पहले उन्हें जदयू के महेश्वर हजारी की कोशिशों से ही पार पाना होगा, जिन्होंने 2014 में दो लाख से अधिक वोट काटकर रामचंद्र को कड़ी चुनौती दी थी।
महेश्वर के दादा और पिता ने यहां अरसे तक सियासत की है। पिता रामसेवक हजारी कई बार पुराने रोसड़ा क्षेत्र से लोकसभा भी पहुंच चुके हैं। खुद महेश्वर भी 2009 में यहां से सांसद चुने गए थे। इसलिए समस्तीपुर सीट को उन्हें किसी भी हाल में छोडऩा मंजूर नहीं होगा।
वर्तमान में संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाली छह विधानसभा क्षेत्रों में से चार पर जदयू का कब्जा है। एक-एक पर राजद और कांग्रेस हैं। भाजपा और लोजपा किसी भी सीट पर नहीं हैं। जाहिर है, प्रचंड मोदी लहर में भी महज कुछ हजार वोटों के अंतर से जीतने वाले रामचंद्र को घर-बाहर की चुनौतियों से कठिन मुकाबले के लिए तैयार रहना होगा।
मुश्किल तो अशोक राम के सामने भी कम नहीं है। राजद के मुस्लिम-यादव (माय) समीकरण के सहारे लोजपा को चुनौती देने वाली कांग्रेस को पहले सीट पर दावेदारी के लिए राजद से निपटना होगा। हालांकि, राजद के साथ भी प्रत्याशी का संकट है। पितांबर पासवान के निधन के बाद यहां कोई ऐसा दमदार नेता नहीं है, जो राजद समर्थकों को ऊर्जान्वित कर सके। अगर इधर-उधर से आरक्षित वर्ग के किसी नेता की राजद में इंट्री हो गई तो कांग्रेस को यहां से बेदखल भी किया जा सकता है।
अतीत की राजनीति
समस्तीपुर क्षेत्र 2009 के पहले सामान्य था। 1957 और 1962 में यहां से कांग्रेस के सत्यनारायण सिन्हा चुने गए थे। 1977 में लोकदल से कर्पूरी ठाकुर एमपी बने। यहां से यमुना प्रसाद मंडल, अजीत कुमार मेहता, रामदेव राय, मंजय लाल, महेश्वर हजारी एवं आलोक मेहता ने भी प्रतिनिधित्व किया। कर्पूरी ठाकुर का गांव पितौंझिया (अब कर्पूरी ग्राम) भी इसी जिले में है। कर्पूरी एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे।
समस्तीपुर की स्थापना 14वीं सदी में हुई थी। गयासुद्दीन तुगलक ने राजा हरिसिंह देव को परास्त कर अपना राज कायम किया था। 1340 में उसने शम्सुद्दीन हाजी इलियास को शासक बनाया। उसी ने शम्सुद्दीन गांव की स्थापना की जो आगे चलकर समस्तीपुर हो गया।
2014 के महारथी और वोट
रामचंद्र पासवान : लोजपा : 270401
अशोक कुमार : कांग्रेस : 263529
महेश्वर हजारी : जदयू : 200124
विधानसभा क्षेत्र
कुशेश्वर स्थान (जदयू), हायाघाट (जदयू), कल्याणपुर (जदयू), वारिसनगर (जदयू), समस्तीपुर (राजद), रोसड़ा (कांग्रेस)