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Bihar Assembly Election 2020 : आरक्षण फिर बनेगा चुनावी मुद्दा; लालू से नीतीश राज आ गया, पर नहीं बदला विषय

करीब पांच साल से सो रहे आरक्षण के मुद्दे को झकझोर कर जगाया जा रहा है। यह जागेगा और बिहार विधान सभा चुनाव में काम करेगा।

By Rajesh ThakurEdited By: Published: Sat, 13 Jun 2020 06:08 PM (IST)Updated: Sat, 13 Jun 2020 10:09 PM (IST)
Bihar Assembly Election 2020 : आरक्षण फिर बनेगा चुनावी मुद्दा; लालू से नीतीश राज आ गया, पर नहीं बदला विषय
Bihar Assembly Election 2020 : आरक्षण फिर बनेगा चुनावी मुद्दा; लालू से नीतीश राज आ गया, पर नहीं बदला विषय

पटना, अरुण अशेष। करीब पांच साल से सो रहे आरक्षण के मुद्दे को झकझोर कर जगाया जा रहा है। यह जागेगा और बिहार विधान सभा चुनाव में काम करेगा। बीते 30 वर्षों से यह राज्य में होने वाले में चुनाव का केंद्रीय विषय रहा है। 1990 में मुख्यमंत्री बने लालू प्रसाद यादव तो इस एक मुद्दे पर बिहार में 15 साल शासन में रहे। सामान्य वर्ग की ओर से आरक्षण का विरोध कम हुआ तो कुछ दिनों के लिए यह गौण हो गया। आसार बन रहे हैं। विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा बनेगा। 

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इस बार श्‍याम रजक ने की शुरुआत

इस बार शुरुआत उद्योग मंत्री श्याम रजक ने की। वे जदयू से हैं। उन्होंने अनुसूचित जाति-जनजाति के  विधायकों को एक किया। इनकी संख्या 41 है। प्रमुख मांग है- आरक्षण को संविधान की नौवीं अनुसूची में जोड़ा जाए, ताकि इसकी न्यायिक समीक्षा न हो सके। तर्क यह कि मनुवादी शक्तियां संविधानिक संस्थाओं के जरिए आरक्षण को खत्म करने की साजिश रच रही हैं। शुरुआत में सभी दलों के विधायक मोर्चा में शामिल हुए। बाद में बिना मुद्दा बदले राजद के विधायकों ने अलग मोर्चा बना लिया।

पासवान से मिला बल

इस बीच, नीट से होने वाले दाखिले के मामले में सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी आई- 'आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है।' इसके बाद केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान भी आरक्षण को संविधान की नौवीं अनुसूची में  शामिल करने की मुहिम में शामिल हो गए। इससे अभियान को बल मिला। यह भी तय हो गया विधानसभा चुनाव में भी यह मुद्दा कायम रहेगा। लोजपा में अनुसूचित जाति के कोई विधायक नहीं हैं। इसलिए वह अभियान से अलग थी। पासवान ने बयान देकर अपनी पार्टी की उपस्थिति दर्ज करवा दी। पासवान के हस्तक्षेप के बाद माना जा रहा है कि चुनाव से पहले केंद्र सरकार इस मुद्दे पर आधिकारिक वक्तव्य जरूर देगी।

भाजपा को हो चुका है नुकसान

2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा आरक्षण को लेकर भारी नुकसान उठा चुकी है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की बात कही थी। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने लोगों को समझा दिया कि समीक्षा का मतलब आरक्षण खत्म। अपनी बात को असरदार बनाने के लिए वे लोगों को एमएस गोलवलकर की पुस्तक बंच ऑफ थॉट दिखाते थे। बताते थे कि इसमें आरक्षण खत्म करने की योजना है। उनका दांव चल गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर सभी नेताओं ने कहा कि आरक्षण को कोई खत्म नहीं कर सकता है। सब बेअसर रहा। साल भर पहले भाजपा के पक्ष में खड़ी हुई पिछड़ी,अति पिछड़ी और अनुसूचित जाति की बड़ी आबादी विमुख हो गई। 

नीतीश को भी मिला है लाभ

2005 का विधान सभा चुनाव विकास और कानून व्यवस्था के नाम पर लड़ा औऱ जीता गया। बाद के चुनावों में नीतीश कुमार की जीत में आरक्षण का बड़ा योगदान रहा है। खासकर त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली में अति पिछड़ों, अनुसूचित जातियों और महिलाओं को दिए गए आरक्षण से एक बहुत बड़ा वर्ग नीतीश कुमार का मुरीद बन गया है। बाद के दिनों में सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 35 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया गया। इसने भी एक वर्ग के तौर पर महिलाओं को जदयू से जोड़ा।  आर्थिक आधार पर दिए गए आरक्षण का लाभ बीते लोकसभा चुनाव में एनडीए को मिला। राजद पड़ताल में जुट गया है कि कैसे इस नए विवाद का राजनीतिक लाभ लिया जाए।


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