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बिहार में अफसरगिरी के सामने आरटीआइ कानून की धार खत्‍म, हाईकोर्ट जाने की तैयारी में एक्टिविस्‍ट

RTI in Bihar अफसरों द्वारा सूचना को इग्नोर किए जाने पर राज्य सूचना आयोग भी कोई सार्थक कार्रवाई नहीं कर पा रहा है जिससे अफसरों में भय पैदा हो। थक-हारकर आरटीआइ कार्यकर्ताओं ने पूरे मामले में अब पटना उच्च न्यायालय में लोकहित याचिका दाखिल करने का फैसला किया है।

By Shubh Narayan PathakEdited By: Published: Sat, 29 May 2021 07:22 PM (IST)Updated: Sat, 29 May 2021 07:22 PM (IST)
बिहार में अफसरगिरी के सामने आरटीआइ कानून की धार खत्‍म, हाईकोर्ट जाने की तैयारी में एक्टिविस्‍ट
बिहार में सूचना के अधिकार का बुरा हाल। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

पटना, दीनानाथ साहनी। बिहार सरकार के विभिन्न महकमों में लोक सूचना का अधिकार (आरटीआइ) कानून के तहत आने वाले आवेदनों को अफसरों द्वारा मजे की अनदेखी की जा रही है। हाल कुछ इस तरह है कि जिलों एवं प्रखंडों के सरकारी दफ्तरों में 94,427 आवेदन धूल चाट रहे हैं। रोचक यह कि लोक सूचना अधिकारियों द्वारा कुल खारिज आवेदनों में 40 फीसद में 'अन्य' कारणों के चलते तकनीकी आधार पर सूचना देने से इंकार कर दिया गया है। वहीं 20 फीसद जानकारी 'निजता के उल्लंघन' के नाम पर नहीं दी गई है।

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उच्‍च न्‍यायालय में मामला ले जाने की तैयारी

अफसरों द्वारा सूचना को 'इग्नोर' किए जाने पर राज्य सूचना आयोग भी कोई सार्थक कार्रवाई नहीं कर पा रहा है जिससे अफसरों में भय पैदा हो। थक-हारकर आरटीआइ कार्यकर्ताओं ने पूरे मामले में अब पटना उच्च न्यायालय में लोकहित याचिका दाखिल करने का फैसला किया है। राज्य सूचना आयोग के एक अधिकारी ने स्वीकार किया कि सूचना नहीं दिए जाने की ज्यादातर शिकायतें जिलों और प्रखंडों से मिल रही हैं। यह गंभीर मामला है।

कानून से अलग बना लिया अपना 'कानून'

आरटीआइ कानून की धारा-8, 9, 11 और 24 में सूचना न देने की छूट लोक सूचना अधिकारियों को मिली हुई है। जो 40 फीसद आवेदन खारिज किए गए हैं, उनमें कारण 'अन्य' बताए गए हैं, जबकि आरटीआइ कानून में ऐसी श्रेणी नहीं है। आयोग पहले से मुख्य सचिव एवं गृह सचिव समेत प्रधान सचिवों और सचिवों को निर्देश दे रखा है कि सूचना मांगने जाने पर आरटीआइ कानून का अनुपालन सुनिश्चित कराएं और जानकारी को लोकहित में उपलब्ध कराएं।

  • आरटीआइ का सरकारी मतलब, अब एक ही 'राइट-टू इग्नोर'
  • कुल खारिज आवेदनों में 40 फीसद में 'अन्य' कारण बताया
  • 20 फीसद जानकारी निजता के उल्लंघन के नाम नहीं दी गई
  • सरकारी दफ्तरों में अब भी 94,427 आवेदन लंबित

कोरोना महामारी से मामलों की सुनवाई बाधित

कोरोना महामारी और फिर लॉकडाउन के कारण भी सरकारी दफ्तरों में कार्य प्रभावित हैं। इसका असर आरटीआइ से सूचना मांगने वाले आवेदकों पर भी है। ऑल इंडिया आरटीआइ वर्कर्स फोरम के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवप्रकाश राय के मुताबिक किसी भी लोक सूचना अधिकारी को 30 दिनों में जानकारी देना जरूरी है, लेकिन कोरोना महामारी के नाम पर सूचनाएं नहीं उपलब्ध कराए जा रहे हैं।

झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी देते हैं अफसर

पिछले तीन वर्षों में लंबित आवेदनों की संख्या 94,427 पहुंच गई है। इनमें ग्रामीण विकास विभाग में 9,617, पंचायती राज विभाग में 8,152, स्वास्थ्य विभाग में 6467, कृषि विभाग में 6257, ग्रामीण कार्य विभाग में 6207 और शिक्षा विभाग में 5328 आवेदन लंबित हैं। राय के मुताबिक प्रदेश में सूचना के अधिकार कानून को पंगु बना दिया गया है। अफसर सूचना मांगने पर झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी देते हैं तो कभी तकनीकी और निजता के उल्लंघन के नाम पर सूचना देने से मना कर आवेदन खारिज कर देते हैं। इसीलिए उच्च न्यायालय में लोकहित याचिका दाखिल करने का निर्णय लिया है।


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