RamVilas Paswan Death: चंदे के पैसे से पहली बार आजमाई थी किस्मत, जेपी के कहने पर हाजीपुर से लड़े थे चुनाव
केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान को पहली बार हाजीपुर लोकसभा से चुनाव में हाथ आजमाने के लिए दस हजार रुपये मिले थे। यहां के लोगों ने ही उनके चुनाव का सारा खर्च वहन किया था। पार्टी से मिले दस हजार रुपये धरे के धरे रह गए थे।
रविशंकर शुक्ला, हाजीपुर। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का गुरुवार को दिल्ली में निधन हो गया। वे 74 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। सियासी गलियारे में किए गए उनके कार्यों को हमेशा याद किया जाएगा।
बात आज से 42 वर्ष पूर्व 1977 की है। तब रामविलास पासवान की उम्र 31 साल थी। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर चले आंदोलन में जेल से छूटकर आए थे। जेपी ने हाजीपुर से चुनाव लड़ने को कहा। तब उनके पास पैसे भी नहीं थे। भारतीय लोक दल से उम्मीदवार बनाए जाने के बाद तब उन्हें चुनाव लड़ने को दस हजार रुपये मिले थे। यहां के लोगों ने ही उनके चुनाव का सारा खर्च वहन किया था। पार्टी से मिले दस हजार रुपये धरे के धरे रह गए थे। रहने को घर भी नहीं था। तब अधिवक्ता उमेश शाही के यहां शरण ली थी।
बक्से में धरे के धरे रह गए पैसे
चुनाव के बाद अचानक शाही जी ने फोन कर बताया कि उनका दस हजार रुपया वैसे ही जस का तस बक्से में रखा हुआ है। तब उन्होंने कहा कि अब तो उस पैसे की कोई जरूरत नहीं है। बाद में उस पैसे को पार्टी फंड में जमा करा दिया था। रामविलास ने हाजीपुर के संस्कृत कॉलेज परिसर में अपने अनुज पशुपति कुमार पारस के नामांकन के दौरान बीते वर्ष सभा में खुद ये बातें कही थीं।
तब नहीं चाहते थे हाजीपुर से चुनाव लड़ना
रामविलास पासवान तब हाजीपुर से चुनाव लड़ना नहीं चाहते थे। कारण यह था कि उस वक्त यहां उनकी किसी से जान-पहचान नहीं थी। उनकी चाहत तब सासाराम से चुनाव लड़ने की थी। जेपी ने उनसे कहा कि उन्हें यहीं से चुनाव लड़ना है। वे उनका आदेश टाल नहीं सके। उसके बाद वे जो यहां के हुए तो बस यहीं के होकर ही रह गए। आज बहुत कम लोग ही यह जानते हैं कि वे खगड़िया के शहरबन्नी के रहने वाले हैं। देश-दुनिया में लोग उन्हें हाजीपुर से ही जानते हैं।
जेपी के आदेश के बावजूद उन्हें नहीं दिया जा रहा था सिंबल
पासवान ने बताया कि जेपी ने उन्हें 1977 में हाजीपुर से नामांकन करने का आदेश दिया। इसी बीच रामसुंदर दास को सिंबल दे दिया गया। इसके बाद वे निश्चिंत हो गए। सोचा, ठीक ही हुआ। वैसे भी वे यहां से चुनाव लड़ना नहीं चाहते थे। फिर एक दिन अचानक जेपी का बुलावा आया। वहां गये तो पूछा गया कि नामांकन किया कि नहीं। उन्होंने बताया कि रामसुंदर दास को टिकट दे दिया गया है। इतना सुनते ही वे गुस्से में आ गए। तुरंत कर्पूरी ठाकुर से बात की। बताया कि सत्येन्द्र बाबू का समर्थन है। जेपी ने मुझे आदेश दिया कि जाकर तुरंत नामांकन करें। कागज पर लिखकर दिया कि जनता पार्टी का नहीं जानता, जेपी का उम्मीदवार रामविलास है। उन्हें पैसे भी दिए। जेपी की नाराजगी का आभास ऊपर तक लोगों को हो गया। मधुलिमय तब प्रधान महासचिव थे। राजनारायण हमलोगों के नेता थे। वे मधुलिमय ये झगड़ा करने लगे। तब जाकर तीन-चार दिन बाद उन्हें सिंबल दिया गया।