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Raghuvansh Singh Death News: लालू के वंशवाद पर जाते-जाते प्रहार कर गए रघुवंश बाबू

Raghuvansh Singh Death News राजद की राजनीति को समाजवाद पर लाने की आखिर तक कोशिश करते रहे। कामयाब नहीं हुए तो लालू प्रसाद के चार दशक के साथ से कर लिया किनारा ।

By Sumita JaswalEdited By: Published: Sun, 13 Sep 2020 03:46 PM (IST)Updated: Mon, 14 Sep 2020 09:55 AM (IST)
Raghuvansh Singh Death News: लालू के वंशवाद पर जाते-जाते प्रहार कर गए रघुवंश बाबू
Raghuvansh Singh Death News: लालू के वंशवाद पर जाते-जाते प्रहार कर गए रघुवंश बाबू

पटना, अरविंद शर्मा । Raghuvansh Singh Death News : लालू प्रसाद से रघुवंश प्रसाद सिंह का करीब चार दशक का साथ था। गहरा लगाव था। राजनीति में दोनों दूसरे के पूरक बने हुए थे। शायद आगे भी रहते, लेकिन राजद में नए नेतृत्व की कार्यशैली ने रघुवंश को व्यथित कर दिया था। हालांकि तब भी उन्होंने राजद की राजनीति को मनाने-समझाने और समाजवाद के पुराने रास्ते पर लाने की बहुत कोशिश की, किंतु कामयाब नहीं हुए तो आखिरी वक्त पर अपने मन की व्यथा निकाल दी।

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विपरीत परिस्थितियों में भ्‍ाी लालू का साथ नहीं छोड़ा, अंत समय में उपेक्षा से दुखी थे

कोरोना पॉजिटिव होने के पहले से ही उन्हें लगने लगा था कि राजद में अब उनके मनमाफिक माहौल नहीं रह गया है। खासकर कार्यकर्ताओं की उपेक्षा से वह ज्यादा दुखी थे। तभी उन्होंने कहा था कि अनुशासन के नाम पर पार्टी को सरकारी दफ्तरों की तरह नहीं चलाया जा सकता है। कार्यकर्ता परिवार के हिस्सा होते हैं। सरकारी बाबू नहीं। आने-जाने पर प्रतिबंध लगाने से उनका मनोबल टूट सकता है। विपरीत माहौल में भी रघुवंश ने राजद का साथ नहीं छोड़ा। लालू के साथ डटकर खड़े रहे। उनके समाजवादी चरित्र ने उनके कदमों को रोक रखा था।

लालू के साथ रघुवंश के लगाव को सिर्फ इस बात से समझा जा सकता है कि 2009 के लोकसभा चुनाव में जब लालू ने रामविलास पासवान के साथ मिलकर बिहार में कांग्रेस की हैसियत को दरकिनार करते हुए मात्र तीन सीटें छोड़कर बाकी सीटें आपस में बांट ली थी तो यूपीए के नतीजे पर भी असर पड़ा था। रघुवंश तो जीत गए थे। किंतु केंद्र में जब मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी और सोनिया गांधी ने लालू प्रसाद की पार्टी को सरकार में शामिल नहीं किया तो भी रघुवंश की अहमियत कम नहीं हुई। तब सोनिया ने रघुवंश को केंद्र में मंत्री या लोकसभा अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया था। किंतु सोनिया की इस शर्त को रघुवंश ने खारिज कर दिया कि उन्हें लालू का साथ छोडऩा मंजूर नहीं। उनके लिए पद कोई मायने नहीं रखता है, पार्टी सबसे बड़ी है। रघुवंश की इस भावना का लालू ने भी हमेशा सम्मान किया।

लालू के बाद राजद में नंबर दो थे

राजद के कार्यक्रमों में रघुवंश के लिए हमेशा दो नंबर का स्थान सुरक्षित रहता था। हालांकि कई मौकों पर तेजस्वी यादव को भी रघुवंश के लिए इसी तरह का सम्मान करते देखा गया था। किंतु बाद में नए नेतृत्व की राजनीतिक जरूरतों के आगे रघुवंश अपनी ही बनाई पार्टी में हाशिये की ओर खिसकते जा रहे थे। उन्हें लगने लगा कि जिस दर्द को लेकर वह चल रहे हैं, उसे ज्यादा दिनों तक झेला नहीं जा सकता है। लोगों की जुबान तक उनके मन की बातें आनी ही चाहिए। लिहाजा उन्होंने मृत्यु शैय्या से ही 10 सितंबर को एक ही दिन में अलग-अलग छह पत्र लिखे और अपने पुत्र सत्यप्रकाश सिंह को कहा कि मीडिया में जारी करें।

नाराजगी तीन प्रमुख वजहें

1. रघुवंश की इच्छा के विरुद्ध लोजपा के पूर्व सांसद रामा सिंह को राजद में लाने की तैयारी थी। तेजस्वी जरूरी मान रहे थे। रघुवंश विरोध कर रहे थे। बात लालू तक गई। कोई समाधान नहीं निकला तो नाराजगी बढ़ती चली गई।

2. इसी क्रम में तेजप्रताप यादव ने उस रघुवंश प्रसाद की तुलना राजद में एक लोटा पानी से कर दी, जिन्होंने 1997 में राजद की स्थापना से भी पहले से लालू के साथ खड़े थे। बयान देने के पहले चार दशक की वफादारी का भी ख्याल नहीं किया गया।

3. शुरुआत हुई सवर्णों के लिए आरक्षण प्रस्ताव से। रघुवंश पक्ष में थे। तेजस्वी विरोध में। राज्यसभा में राजद ने विरोध किया। रघुवंश ने लालू को समझाया कि इससे लोकसभा चुनाव में नुकसान होगा। लालू मान गए, किंतु तेजस्वी अड़े रहे। रघुवंश का मन खïट्टा हो गया।


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