Raghuvansh Prasad Singh: तब तीन दिनों तक पिता से नहीं की थी बात, कर्पूरी का आग्रह भी किया था दरकिनार
Raghuvansh Prasad Singh News रघुवंश बाबू के कुछ किस्से बहुत रोचक हैैं। राजनीति में सादगी व इमानदारी ऐसी कि पैरवी लेकर आए पिता तक से उन्होंने तीन दिनों तक बात नहीं की थी।
पटना, भुवनेश्वर वात्स्यायन। Raghuvansh Prasad Singh News: रघुवंश प्रसाद सिंह नहीं रहे, लेकिन उनकी सादगी व इमानदारी के किस्से याद आ रहे हैं। राजनीति में शुचिता के ऐसे किस्से अब कम ही सुनने को मिलते हैं। बात 1977 की है। रघुवंश प्रसाद सिंह उन दिनों ऊर्जा मंत्री हो गए थे। उनके पिता जी एक दिन अचानक उनके घर आ गए। रघुवंश बाबू ने उनके पटना पहुंचने पर कोई प्रतिक्रिया ही व्यक्त नहीं की। उनके पिता जी ने सोचा कि संभव है व्यस्तता की वजह से ऐसा हुआ। पर दूसरे दिन भी उन्होंने कोई बात नहीं की। तीसरे दिन भी यही सिलसिला था।
पैरवी लेकर आए पिता से नहीं की बात
उसी दिन रघुवंश बाबू के स्कूल के दिनों के साथी रघुपति पहुंचे। रघुवंश बाबू के पिता जी ने रुआंसा होते हुए उन्हें बताया कि- बउआ त हमरा से बाते नय करैय। रघुपति जी को यह बड़ा खराब लगा। वे तुरंत रघुवंश बाबू से मिलने पहुंचे और कहा कि- हद है भाई, आपके पिता जी के आए दो दिन हो गए हैैं और आप उनसे बात ही नहीं कर रहे। रघुवंश बाबू ने उन्हें पूरी बात बतायी। कहा, बाबूजी को बिजली विभाग का एक इंजीनियर यहां अपनी पैरवी के लिए लेकर आया है। अगर उनसे बात करने लगें तो इंजीनियर समझ जाएगा कि बाबूजी को लेकर हम किस तरह से कमजोर हैैं। इसलिए उनसे बात नहीं कर रहे हैं।
सरकारी गाड़ी के बदले रिक्शे से पिता को भेजा
इसके बाद रघुवंश बाबू ने अपने बाल सखा रघुपति जी को पैसा देते हुए कहा कि बाबू जी के लिए कपड़ा और जूता खरीद दीजिए। कपड़ा और जूता जब खरीद कर आ गया तो कहा कि रिक्शे से जाकर इन्हें बच्चा बाबू का स्टीमर पकड़वा दीजिए। रिक्शे की बात सुन भौंचक रह गए रघुपति। सवाल किया कि जब आपके पास गाड़ी है ही तो फिर रिक्शा से क्यों जाएंगे? रघुवंश बाबू ने कहा कि यह सरकारी गाड़ी है। इस पर भेजने से संदेश ठीक नहीं जाएगा। ऐसा नहीं था कि वह अपने पिता का मान-सम्मान नहीं करते थे। बाद के दिनों में जब उनके पिता बीमार पड़े तो पटना लाकर अपने घर में रखा। उनकी मृत्यु भी उनके पटना स्थित आवास पर ही हुई।
गेस्ट हाउस में रुकने पर पैसे देने की कर दी जिद
रघुवंश बाबू के किस्से काफी रोचक भी हैैं। जिन दिनों वह ऊर्जा मंत्री थे उसी समय उन्हें राजगीर के पास एक गांव में किसी वैवाहिक आयोजन में जाना था। पटना से वह निकले। साथ में रघुपति भी थे। तय हुआ कि बख्तियारपुर में नीतीश कुमार को भी साथ में ले लेना है। सभी राजगीर के लिए निकले। जिस गांव में उन्हें जाना था वहां कार नहीं जा सकती थी। बिजली विभाग की एक जीप से सभी वहां गए। लौटकर बिजली विभाग के एक गेस्ट हाउस में रूके। सुबह भोजन के बाद लौटने लगे तो नीतीश कुमार को पैसा देते हुए कहा कि इसे गेस्ट हाउस वाले को दे दीजिए। गेस्ट हाउस वाले ने पैसा लेने से इनकार कर दिया। इंजीनियर साहब को बुलाया गया। इंजीनियर साहब ने कहा कि विभागीय नियम के अनुसार विभाग के मंत्री से भोजन का पैसा नहीं लेना है। इसके बाद उस नियम को पढ़ा गया। तब जाकर वहां से रघुवंश बाबू निकले।
कर्पूरी ठाकुर की भी नहीं मानी थी बात
बात उन दिनों की है जब कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री थे। रघुवंश प्रसाद सिंह ने कई बार उनकी बात भी नहीं मानी। एक समय धार्मिक न्यास बोर्ड के मामले में कुछ परिवर्तन की बात थी। कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि क्यों झंझट मोल ले रहे? रघुवंश बाबू अड़ गए और कहा कि आपको फाइल पर जो लिखना हो लिख दीजिएगा। हमको जो समझ में आ रहा वह लिख रहे हैं।