पटना का संजय गांधी जैविक उद्यान अब इस मामले में हुआ आत्मनिर्भर, बाहर से खरीदने की जरूरत नहीं
पटना का संजय गांधी जैविक उद्यान वर्मी कंपोस्ट के मामले में आत्मनिर्भर बन गया है। इससे पहले पटना जू के प्रशासन को पौधों के लिए बाहर से वर्मी कंपोस्ट खरीदना पड़ रहा था। लेकिन पिछले वर्ष से पटना जू में वर्मी कंपोस्ट बनाया जा रहा है।
पटना, जागरण संवाददाता। Patna Zoo News: पटना का संजय गांधी जैविक उद्यान (Sanjay Gandhi Botanical Garden) वर्मी कंपोस्ट (vermi compost) के मामले में आत्मनिर्भर बन गया है। इससे पहले पटना जू के प्रशासन को पौधों के लिए बाहर से वर्मी कंपोस्ट खरीदना पड़ रहा था। लेकिन, पिछले वर्ष से पटना जू में वर्मी कंपोस्ट बनाया जा रहा है। इस पर तेजी से काम किया जा रहा है। नतीजा, अब पटना जू को वर्मी कंपोस्ट बाहर से खरीदने की जरूरत नहीं पड़ रही है। चिड़ियाघर से निकलने वाले जैविक कचरा (Bio waste) जैसे जानवरों के मल, पेड़-पोधों की सूखी पत्तियों से वर्मी कंपोस्ट तैयार किया जा रहा है।
तीन महीने में 500 बोरा वर्मी कंपोस्ट तैयार कर रहा जू
पटना जू तीन महीने में लगभग 500 बोरा वर्मी कंपोस्ट तैयार कर रहा है। जू के जल उद्यान के पास वर्मी कंपोस्ट को तैयार करने के लिए शेड बनाया गया है। कंपोस्ट को तैयार करने से पहले 20 फीट चौड़े और 40 फीट लंबे पॉली बैग में पेड़-पौधों की पत्ती और जानवरों के मल को परत दर परत डाल दिया जाता है। इसके बाद इसमें नमी बनाएं रखने के लिए समय-समय पर पानी का छिड़काव किया जाता है।
मेन पीट में तैयार होता है वर्मी कंपोस्ट
पॉली बैग में रखी गई सूखी पत्तियों और जानवरों के मल को निकाल कर बाद में इसे मेन पिट में ले जाया जाता है, जहां इसमें केंचुआ मिलाया जाता है। समय-समय पर पत्तियों और मल को उलट-पलट किया जाता है। तीन महीने तक इसे तैयार होने के लिए छोड़ दिया जाता है।
मिट्टी की बनी रहती है उर्वरा शक्ति
वर्मी कंपोस्ट के इस्तेमाल करने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बरकरार रहती है। पौधे के विकास के लिए जिन पोषक तत्वों की जरूरत होती है, उसे वर्मी कंपोस्ट से काफी हद तक मिल जाता है।
पटना जू के रेंजर राजेश प्रसाद चौधरी ने बताया कि पर्यावरण के दृष्टिकोण से वर्मी कंपोस्ट बहुत ही अच्छा है। आगे इसे और बढ़ाने की तैयारी चल रही है। पटना जू की हरियाली बढ़ गई है। यहां की हरियाली दर्शकों को काफी आकर्षित कर रही है।