बिहार के प्रियांक ने मुफलिसी में IIT से किया B.Tech, अब गरीब बच्चों को बना रहे IITians
राजधानी के फुलवारीशरीफ क्षेत्र के रहने वाले प्रियांक प्रतीक का प्रारंभिक जीवन मुफलिसी में बीता। आर्थिक रूप से कमजोर रहने के बावजूद उसने अपने पिता के अरमानों को बखूबी पूरा किया।
पटना, चंद्रशेखर। राजधानी के फुलवारीशरीफ क्षेत्र के रहने वाले प्रियांक प्रतीक का प्रारंभिक जीवन मुफलिसी में बीता। आर्थिक रूप से कमजोर रहने के बावजूद उसने अपने पिता के अरमानों को बखूबी पूरा किया और डीएवी से 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद पहले ही प्रयास में आइआइटी की परीक्षा में सफल हुआ। वह पहले 100 स्थानों में जगह बनाने में कामयाब रहा। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मुंबई की मैकेनिकल शाखा में उसने दाखिला लिया। पिता ने किसी तरह उसका दाखिला इस कॉलेज में करवाया था। घर की खराब आर्थिक स्थिति को देखते हुए प्रियांक ने पढ़ाई के दौरान ही मुंबई जैसे शहर में बच्चों को आइआइटी की कोचिंग देनी शुरू कर दी। इससे उसका कॉलेज का खर्च निकल जाता।
पटना में गरीब बच्चों काे कराता था तैयारी
प्रियांक ने 2016 में आइआइटी मुंबई से बीटेक की और बड़े पैकेज पर नारायणा कोचिंग क्लासेज में पढ़ाना शुरू कर दिया। इस बीच वह जब भी अपने घर पटना आता तो गरीब स्कूली बच्चों को आइआइटी की तैयारी और 10वीं में अच्छे अंक कैसे प्राप्त करें, बताता था। एक साल नारायणा में पढ़ाने के बाद उसने आइआइटी खडग़पुर से एमटेक किया। कई बड़े संस्थानों में नौकरी का ऑफर छोड़ उसने गरीब बच्चों को आइआइटी की तैयारी कराने की ठानी। अपने खर्च के लिए उसने ऑनलाइन ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। ऑनलाइन मॉक टेस्ट से महीने में वह अच्छी कमाई कर लेता है।
आठवीं से हो आइआइटी की तैयारी
एमटेक करने के बाद प्रियांक पूरी तरह से पटना में ही आकर बस गए। प्रियांक का मानना है कि आइआइटी की तैयारी 10वीं अथवा 12वीं से नहीं, बल्कि आठवीं कक्षा से ही शुरू करनी चाहिए। वे अपने सहपाठी विवेक कुमार के साथ 250 गरीब स्कूली बच्चों को मुफ्त शिक्षा दे रहे हैं। साथ ही 40 बच्चों को क्रैश कोर्स करवाया जा रहा है। किसी भी बच्चे से कोई राशि नहीं ली जा रही है। प्रियांक खुद गणित पढ़ाते हैं तो विवेक रसायन शास्त्र। भौतिकी पढ़ाने की जिम्मेवारी रोहित ने संभाल रखी है।
गरीबी को काफी नजदीक से देखा
इस संबंध में प्रियांक ने बताया कि उसने गरीबी को काफी नजदीक से देखा है। आइआइटी की तैयारी में काफी पैसे खर्च होते हैं। पैसों के अभाव में गरीब मेधावी बच्चे कोचिंग नहीं कर पाते हैं। फिलहाल हॉस्टल की सुविधा उपलब्ध नहीं है। बच्चे अपने अभिभावक के साथ रहकर उनसे जुड़ रहे हैं। अगले साल से परिणाम मिलने लगेगा।