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खुद भोगी पीड़ा तो बाल विवाह के खिलाफ ढाल बनीं पूनम

बुलंद हौसला मजबूत इरादा और मन में सच्ची लगन हो तो कोई भी काम असंभव नहीं होता

By JagranEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 08:42 AM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2020 08:42 AM (IST)
खुद भोगी पीड़ा तो बाल विवाह के खिलाफ ढाल बनीं पूनम
खुद भोगी पीड़ा तो बाल विवाह के खिलाफ ढाल बनीं पूनम

पिंटू कुमार, पटना। बुलंद हौसला, मजबूत इरादा और मन में सच्ची लगन हो तो कोई भी काम असंभव नहीं होता। मुंगेर के गोरगामा की रहने वाली पूनम इसकी मिसाल हैं। वह छह बहनों में सबसे बड़ी थीं। गरीब पिता दहेज देने में सक्षम नहीं थे, इसलिए उनकी शादी 13 वर्ष की उम्र में ही कर दी गई। तब वह आठवीं कक्षा में पढ़ती थीं। 1993 में वह अपनी ससुराल गई तो उनके साथ अक्सर मारपीट होने लगी। एक बार पति ने कोई धारदार चीज पैर पर चला दी। पैर कट गया और पांच टांके लगाने पड़े। खुद के साथ ज्यादती हुई तो पूनम ने ठान लिया कि वह बाल विवाह और घरेलू हिसा के खिलाफ आवाज बुलंद करेंगी।

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बाल विवाह के खिलाफ उठाई आवाज : वर्ष 2002 में पूनम ने 'दिशा विहार' नाम की एक संस्था बनाई। इसके तहत वह महिलाओं के साथ बैठक कर उन्हें बाल विवाह रोकने के लिए जागरूक करने लगीं।

500 बच्चों का स्कूल में करवा चुकी हैं नामांकन : पूनम अबतक 500 बच्चों का स्कूलों में नामांकन करवा चुकी हैं। उनके 'मुन्ना-मुन्नी मंच' में बच्चों को बाल विवाह से होने वाले नुकसान के बारे में बताया जाता है।

350 बाल विवाह रोकने में रहीं सफल : 'दिशा विहार' के बैनर तले 45 गांवों में 'ग्राम विकास' से मंच चला रहा है। इसमें महिला दस्तक, पुरुष दस्तक, किशोरी दस्तक और युवा दस्तक घरेलू हिसा को रोकने का काम कर रही हैं। इन संस्थाओं के जरिये अब तक 350 से अधिक बाल विवाह रोके जो चुके हैं। 250 से अधिक घरेलू हिसा के मामले इनके प्रयास से खत्म हुए हैं।

बच्चों को दिखा रहीं शिक्षा की राह : पिछले 20 सालों से समाजसेवा कर रहीं पूनम 'किशोरी संवाद मंच' बनाकर किशोरियों और युवतियों को शिक्षा की राह दिखा रही हैं। यह संस्था वैसी बच्चियों को फिर से स्कूल जाने को प्रेरित करती है, जिनकी पढ़ाई छूट चुकी है। स्वावलंबन की चाह रखने वाली युवतियों को मशरूम, जैम, जेली बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है।

समाजसेवा को समर्पित कर दिया जीवन : छह बहनों में सबसे बड़ी पूनम कहती हैं कि जो दिन मुझे देखने पड़े वो किसी और बेटी को नहीं देखना पड़े। इसलिए मैं अपना पूरा जीवन समाजसेवा में ही लगाना चाहती हूं। इस काम में गांव और परिवार का पूरा सहयोग मिल रहा है।


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