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Bihar Flood: नदियां ढलान पर सियासत में उफान, इस कहानी में रहस्य-रोमांच भी

बिहार में बाढ़ के साथ सियासी उबाल आया। बाढ़ का पानी तो अब उतर रहा है लेकिन सियासत नन-स्‍टॉप जारी है। स्थिति कर पड़ताल करती खबर।

By Amit AlokEdited By: Published: Mon, 07 Oct 2019 09:46 AM (IST)Updated: Tue, 08 Oct 2019 07:13 PM (IST)
Bihar Flood: नदियां ढलान पर सियासत में उफान, इस कहानी में रहस्य-रोमांच भी
Bihar Flood: नदियां ढलान पर सियासत में उफान, इस कहानी में रहस्य-रोमांच भी

पटना [अरविंद शर्मा]। बिहार में हर साल बाढ़ आती है। इस पर राजनीति भी होती है। किंतु इस बार कुछ ज्यादा ही उफान है। नदियों से ज्यादा सियासत बेकाबू हो रही है। पटना में जल-जमाव के मुद्दे पर बिहार में हफ्ते भर से सियासत जारी है। इस बीच गंगा-पुनपुन समेत सभी नदियों के जलस्तर में कमी आ गई है।  पैटर्न बताता है कि बाढ़ का पानी उतरते ही सियासत भी सुस्त पड़ जाती है। प्रभावित-पीडि़त भी दुख-दर्द भूल जाते हैं। राजनीति का रुख किसी और दिशा में घूम जाता है। किंतु इस बार की कहानी में रहस्य-रोमांच-राजनीति सब है।

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कुसहा त्रासदी में तबाह हो गए थे जदयू और भाजपा के संबंध

भयानक बाढ़ तो 2007 और 2008 में आई थी। उस वक्त भी राजनीति हुई थी। 2007 में 22 जिलों में असर था। 2.40 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे और 1287 लोगों की जान भी गई थी। संयुक्त राष्ट्र ने उसे बिहार के इतिहास की सबसे भीषण बाढ़ करार दिया था। 2008 की कुसहा त्रासदी ने तो एनडीए के दो घटक दलों-जदयू और भाजपा के वर्षों पुराने संबंध को ही तबाह कर दिया था।

2017 में चूहों पर मढ़ दिया था त्रासदी का इल्‍जाम

लगभग ऐसी ही बड़ी बाढ़ वर्ष 1987 में भी आई थी। 30 जिलों में 1399 लोगों की मौत हो गई थी। 678 करोड़ रुपये की फसलें तबाह हो गई थीं। लालू प्रसाद ने 2017 की बाढ़ में भी सरकार पर हमले की कमान संभाल ली थी। बाढ़ की सियासत में चूहे भी बदनाम हुए थे। तटबंध तोडऩे का इल्जाम मढ़ दिया गया था। खूब हो-हल्ला हुआ था। किंतु बाद में सबकुछ यथावत हो गया था।

इस बार कुछ ज्यादा ही तल्ख हैं तेवर

मगर इस बार...। तेवर कुछ ज्यादा ही तल्ख हैं। दोनों गठबंधनों में विरोध-प्रतिरोध है। सिर्फ पक्ष-विपक्ष के बीच ही नहीं, बल्कि अपने भी अपनों के लिए आईना लेकर खड़े हैं। नाली दिखा रहे हैं। कीचड़ उछाल रहे हैं। भाजपा और जदयू के बोल-बचन लगाम तोड़ चुके हैं। राहत को आफत में बदलने की राजनीति है। बयानबाजी का ऐसा दौर चल पड़ा है कि छह सीटों पर होने वाले उपचुनाव का शोर भी नहीं सुनाई दे रहा है। प्रभावित क्षेत्रों के दौरे में भी राजनीति है।

घायल कर रहे बयानों के तीर

उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को छोड़कर किसी के उद्गार पर नियंत्रण नहीं है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के शब्द तीर की तरह निकल रहे हैं। भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल के शब्द भी सियासी दोस्ती पर बड़े सवाल खड़े कर रहे हैं। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद एवं अश्वनी चौबे के तेवर जरूर संतुलित हैं। नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा, सांसद रामकृपाल यादव, विधायक नितिन नवीन की बोली भी संबंधों को घायल कर रही है। दूसरी तरफ से भी रुकने-झुकने के संकेत नहीं हैं। जैसा सवाल, वैसा ही जवाब हाजिर है। जदयू के प्रवक्ता संजय सिंह का मोर्चा सक्रिय हो गया है।

आगे-आगे देखिए होता है क्‍या

ऐसे में सियासत किस करवट बैठेगी, किसी को पता नहीं। इसका रहस्‍य बरकरार है। अब आगे-आगे देखिए होता है क्‍या।

बिहार में बाढ़ और बर्बादी के दो दशक

2017 : 19 जिलों में असर। 514 लोगों की मौत। एक करोड़ 71 लाख लोग प्रभावित।

2016 : 11 जिले चपेट में। 121 लोगों की मौत।

2013 : 20 जिलों में असर। 200 लोगों की मौत।

2011: 25 जिलों में असर। 249 लोगों की मौत।

2008 : 18 जिले चपेट में। 258 लोगों की मौत।

2007 : 22 जिलों में असर। 1287 की जान गई।

2004 : 20 जिलों में असर। 885 लोगों की मौत।

2002 : 25 जिलों में असर। 489 लोगों की मौत।

2000 : 33 जिलों में असर। 336 की जान गई।

(स्रोत: आपदा प्रबंधन विभाग, बिहार सरकार)


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