शराबबंदी कानून के उल्लंघन में फंसे थानाध्यक्ष को मिल सकती है राहत, जाने पूरा मामला
पटना हाईकोर्ट ने शराबबंदी कानून के पालन में केवल छोटे पुलिस पदाधिकारियों को ही दोषी ठहराए जाने पर सवाल उठाया है। पूछा कि केवल संबंधित थानाध्यक्षों पर ही क्यों कार्रवाई की जा रही है?
पटना [राज्य ब्यूरो]। शराबबंदी कानून के पालन में केवल छोटे पुलिस पदाधिकारियों को ही दोषी ठहराए जाने पर पटना हाईकोर्ट ने सवाल उठाया है। शराबबंदी कानून लागू कराने में लापरवाही के आरोप में निलंबित किये गये थानाध्यक्षों की याचिका पर शुक्रवार को कोर्ट में सुनवाई हुई।
कोर्ट ने आरक्षी महानिदेशक (डीजीपी) से एक सप्ताह में बताने को कहा है कि आखिर ऐसे मामलों में केवल संबंधित थानाध्यक्षों पर ही क्यों कार्रवाई की जा रही है? जिले के वरिष्ठ अधिकारियों को जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया जाता है?
न्यायाधीश ज्योति सरन की पीठ ने शुक्रवार को निलंबित किये गये एक दर्जन थानाध्यक्षों की याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की। कोर्ट ने पूछा कि क्या सूबे में डकैती, हत्या, रेप, अपहरण, लूट जैसे संगीन अपराधों में कमी आ गई है जो थानाध्यक्षों को शराबबंदी कानून के पालन में लगा कर रखा है।
अदालत ने डीजीपी को इस बात की भी जानकारी देने को कहा कि जब उत्पाद अधिनियमों जुडे मामले के लिए स्वतंत्र रूप से उत्पाद एवं मद्यनिषेध विभाग कार्यरत है तो पुलिस को इसमें क्यों लगाया जाता है?
विभिन्न थानाध्यक्षों द्वारा डीजीपी के निलंबन आदेश के खिलाफ अलग अलग याचिका दायर की गई है। अदालत ने सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर रही है।
वरीय अधिवक्ता युगलकिशोर ने कहा कि केवल इतना ही नहीं जिन थानाध्यक्षों को निलंबित किया गया है, उन्हें दस साल तक थाने में पोस्टिंग से भी वंचित कर दिया गया है।
उन्होने राज्य सरकार पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए कहा कि सिवान में जहरीली शराब पीने से 16 लोग मर गये थे। इसी प्रकार अन्य कुछ थानों में घटना हुई। वहां के थानाध्यक्ष को तुरंत निलंबन से मुक्त कर थाने में पोस्टिंग कर दी गई।