Move to Jagran APP

पटना में कमजोर मुखबिरी से पुलिस के सूचना मंत्र की खुल रही पोल, अब तीसरी आंख ने जगाई उम्मीद

पटना पुलिस कमजोर मुखबिरी से परेशान है। अब तो पुलिस हर केस का तकनीकी जांच और सीसीटीवी कैमरे की फुटेज के आधार पर उद्भेदन करने का दावा करती है।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Mon, 14 Sep 2020 09:42 PM (IST)Updated: Mon, 14 Sep 2020 09:42 PM (IST)
पटना में कमजोर मुखबिरी से पुलिस के सूचना मंत्र की खुल रही पोल, अब तीसरी आंख ने जगाई उम्मीद
पटना में कमजोर मुखबिरी से पुलिस के सूचना मंत्र की खुल रही पोल, अब तीसरी आंख ने जगाई उम्मीद

पटना, जेएनएन। एक जमाना था, जब पुलिस के पास मुखबिरों की लंबी लिस्ट होती थी। पुलिस अफसर इन्हें अपना नेटवर्क समझते थे और उनके भरोसे चोरी से लेकर मर्डर, लूट व डकैती तक के मामलों पर से पर्दा उठा देते थे और कातिल व लुटेरे सलाखों के पीछे पहुंच जाते थे। अब तो पुलिस हर केस का तकनीकी जांच और सीसीटीवी कैमरे की फुटेज के आधार पर उद्भेदन करने का दावा करती है। जबकि यह सिर्फ कुछ केसों में ही काम आते हैं। अब तो फुटेज से लेकर डंप डाटा तक पुलिस के पास है, लेकिन केस का पर्दाफाश नहीं हो पा रहा है। तकनीकी जांच और कैमरे के चक्कर में पुलिस ने भी मुखबिरों से नाता तोड़ दिया है। कमजोर मुखबिरी की वजह से पुलिस के सूचना मंत्र की पोल भी लगातार खुल रही है।

loksabha election banner

फुटेज काम नहीं आ रहा, मोबाइल का इस्तेमाल नहीं

ताजा मामला शहर में चोरियों का है। पिछले डेढ़ माह में तीन करोड़ से अधिक की चोरियां हो चुकी हैं। पुलिस जिनके भरोसे केस उद्भेदन का दावा करती है, वह फुटेज भी हर वारदात में मिले हैं। लेकिन, किसी भी गैंग की पहचान नहीं हो सकी। यहां तक कि पुलिस रात में अपने थाना क्षेत्र में पहरेदारी भी कर रही है, बावजूद इसके चोर अपना काम बखूबी कर जा रहे हैं। कौन संदिग्ध रेकी कर रहा है, चोर मोहल्ले में घूम रहे हैं, इसकी सूचना तक पुलिस को नहीं मिल पा रही है। थक-हारकार अब पुलिस चोर पकडऩे के बजाय अन्य कहीं चोरी न हो जाए, इसे बचाने में जुटी है। यहां तक कि चोर वारदात के समय मोबाइल का भी इस्तेमाल नहीं कर रहे, ताकि पुलिस डंप डाटा निकालकर ही उनकी लोकेशन निकाल सके। फुटेज काम नहीं आ रहा और तकनीकी जांच के लिए चोर कोई सुबूत नहीं छोड़ रहे हैं। 

मुखबिरों पर एतबार नहीं कायम कर सकी पुलिस

मुखबिरों को पुलिस पर भरोसा नहीं। कारण यह कि कई मुखबिरों ने अगर पुलिस को जानकारी दे दी तो वह लीक हो जाती है। सूत्रों की मानें तो इसमें पुलिस के ही कुछ लोग शामिल हंै, जो बाद में उस गैंग को खबर कर देते हैं। ऐसे में उसकी जान पर आफत आ जाती है। ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं, जिसमें मुखबिरी के शक पर हत्या कर दी गई। मुखबिर पुलिस को सूचना देने से पहले निश्चिंत होना चाहते हैं कि विश्वास पूरा हो और सूचना लीक न हो। लेकिन, ऐसा करने में पुलिस नाकाम रही है। कुछ सालों तक तो पुलिस काफी सतर्क रही, जबकि तब आज की तरह टेक्नोलॉजी नहीं थी। नेटवर्क की मजबूती के लिए पुलिस ने कई तरह की योजना बनाई। क्विक मोबाइल सिस्टम बना, हरेक इलाके तक इनकी पहुंच हुई, लेकिन थाने की पुलिस को इनका फायदा कम शिकायतें अधिक मिलने लगीं। फिर तत्कालीन डीआइजी राजेश कुमार ने हर वार्ड में जवानों का मोबाइल नंबर शेयर करने के साथ उन्हें एक ही इलाके में रहकर लोगों से संपर्क बढ़ा वार्ड पुलिसिंग शुरू की। पुलिसिंग शुरू तो हुई, पर वह काम नहीं आ सकी।

तैयार करनी पड़ती है मुखबिरों की टीम

एक पुलिस अधिकारी की मानें तो पहले पटना पुलिस मुखबिर तैयार करती थी। इन मुखबिरों को जोडऩे के लिए उन पर विश्वास के साथ आम्र्स से लेकर जेब खर्च भी देना पड़ता था। पूर्व में ऐसा कई अफसर कर चुके हैं। यहां तक कि जेल और जेल के बाहर भी कई अपराधियों से संपर्क हुआ करता था। 

हाल में लूट, हत्या व डकैती की कई घटनाओं का किया गया पर्दाफाश

एसएसपी उपेंद्र कुुमार शर्मा ने कहा कि अधिकांश वारदातों में फुटेज, तकनीकी जांच और मुखबिर की सूचना पर केस का उद्भेदन किया गया है। हाल में लूट, हत्या व डकैती की कई घटनाओं का पर्दाफाश किया गया है। सूचनाएं मिलती रहती हैं। अक्सर उससे मदद भी मिलती है। सूचना तंत्र को और मजबूत किया जा रहा है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.